scorecardresearch

Ladakh Day 2022: 3 साल पहले लद्दाख को मिली थी अनुच्छेद 370 की बेड़ियों से आजादी, जानें कैसा रहा है इस क्षेत्र का इतिहास 

Ladakh Day 2022: इस साल लद्दाख अनुच्छेद 370 की बेड़ियों से आजादी मिलने की तीसरी सालगिरह मना रहा है. 3 साल पहले यानि 5 अगस्त 2019 को गृह मंत्री अमित शाह ने लद्दाखियों की दशकों पुरानी मांग को पूरा करने की घोषणा की थी. उसी के बाद से लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में एक अलग पहचान मिल गई थी. अपनी इस अलग पहचान के साथ लद्दाख एक बेहतर भविष्य की राह पर आगे बढ़ने लगा.

Ladakh Ladakh
हाइलाइट्स
  • लद्दाख पर रही हमेशा पाकिस्तान और चीन की नजर 

  • जन्नत का ये टुकड़ा कश्मीर से अलग होकर भी जन्नत ही रहा

आज केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख अनुच्छेद 370 की बेड़ियों से आजादी के तीन साल पूरा होने का जश्न मना रहा है. 3 साल पहले यानी 5 अगस्त 2019 को गृह मंत्री अमित शाह ने लद्दाखियों की दशकों पुरानी मांग को पूरी करने का परवान सुनाया था. बस उसी दिन से लद्दाखियों के लिए इस तारीख की अलग अहमियत हो गई थी. उसके बाद से ही हर साल 5 अगस्त को लद्दाख डे मनाया जाता है. अनुच्छेद 370 खत्म होने के साथ ही लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में एक अलग पहचान मिल गई. 

लद्दाख का इतिहास है काफी पुराना 

आपको बताते चलें कि लद्दाख का इतिहास शताब्दियों पुराना है. 19वीं सदी के अंत से ही ये क्षेत्र कश्मीर का हिस्सा रहा है. लेकिन लद्दाख को यूनियन टेरिटरी बनाना लद्दाखियों के अस्तित्व से जुड़ी एक ऐसी मांग है जिसे वो आजादी के बाद से लगातार उठाते रहे हैं. पहले बुद्धिस्ट एसोसिएशन ने इसके लिए कड़ी जद्दोजहद की. 2010 में यूटी की मांग को पूरा करने के लिए यूनियन टेरिटरी फ्रंट ने बीजेपी से हाथ मिलाया था. साल 2014 में लद्दाख यूनियन टेरेटरी फ्रंट के उम्मीदवार थुप्स्तन छिवांग बीजेपी के उम्मीदवार के रूप में लद्दाख से सांसद बने. 

बीजेपी में आने के बाद वर्ष 2014 में सांसद के रूप में भी थुप्स्तन छिवांग यूटी के लिए पार्टी पर दवाब बनाते आए. लेकिन जब एनडीए के पहले कार्यकाल में उन्हें यह मांग पूरी होती नहीं दिखी तो उन्होंने विरोध में सांसद के पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद यूनियन टेरिटरी फ्रंट की मांग को लेकर चुनाव लड़ने वाले बीजेपी के जामियांग त्सीरिंग नांग्याल सांसद बने और आखिरकार 2019 में लद्दाखियों की ये मांग पूरी हुई. 

जन्नत का ये टुकड़ा कश्मीर से अलग होकर भी जन्नत ही रहा

हालांकि, ये सच है कि भारत के नक्शे में अब लद्दाख को कश्मीर का हिस्सा नहीं कहा जाता लेकिन ये भी उतना ही सच है कि जन्नत का ये टुकड़ा कश्मीर से अलग होकर भी जन्नत ही रहा. शायद तभी तो शताब्दियों से लेकर आज तक विदेशी आक्रांताओं के कपट और पड़ोसियों की तिरछी नज़र सदा से भारत के इस अखंड भूभाग पर बनी रहीं. हिमालय और कराकोरम की पर्वतमालाओं के बीच बसे लद्दाख का इतिहास दो हज़ार साल से भी ज्यादा पुराना है. इतिहास गवाह रहा है कि समय समय पर ताकतवर रहे तमाम देशों की नजर लद्दाख पर हमेशा रही है. 

किस किसने किया लद्दाख पर शासन 

17वीं सदी के अंत में तिब्बत के साथ विवाद के चलते लद्दाख ने खुद को भूटान के साथ जोड़ा था. फिर कश्मीर के डोगरा शासकों ने लद्दाख को 19वीं सदी में हासिल किया. साल 1834 में महाराजा रणजीत सिंह के सिपहसालार ज़ोरावर सिंह ने लद्दाख को डोगरा वंश के लिए जीता था. इसके बाद लद्दाख को डोगराओं के जम्मू और कश्मीर का अभिन्न हिस्सा बना लिया गया. लद्दाख के शासक रहे नामग्याल वंश को स्तोक की जागीर दी गई और वज़ीरे-वज़ारत की पदवी भी. इसके बाद तिब्बत, भूटान, चीन और बाल्टिस्तान के साथ कई संघर्षों के बाद 19वीं सदी से लद्दाख कश्मीर का ही हिस्सा बना रहा.

भारत की आजादी के बाद 1948 में पाकिस्तानी हमलावरों ने लद्दाख में कारगिल और जांस्कर तक घुसकर इस हिस्से को हथियाने की कोशिश की, लेकिन समय रहते भारतीय सैनिकों ने इस हिस्से से पाकिस्तानियों को खदेड़ दिया. इसके बाद जब महाराजा हरि सिंह की सरपरस्ती में जम्मू कश्मीर ने भारत के साथ सशर्त विलय का ऐलान किया तो भारतीय सेना का आभारी लद्दाख भी जम्मू कश्मीर राज्य के हिस्से के रूप में भारत का अभिन्न अंग बन गया. 

लद्दाख पर रही हमेशा पाकिस्तान और चीन की नजर 

लेकिन जम्मू और कश्मीर समेत भारत के इस हिस्से पर हमारे पड़ोसी पाकिस्तान और चीन की नज़र हमेशा बनी रही. लद्दाख को 1979 में दो जिलों कारगिल और लेह में बांटा गया था. खासतौर पर इनमें से लद्दाख का कारगिल क्षेत्र 1948 से लेकर 1965, 1971 और उसके बाद 1999 के युद्ध तक हमेशा फोकस में रहा. 1989 में इस क्षेत्र में बौद्धों और मुस्लिमों की आबादी के बीच पैदा हुए तनाव के कारण यहां पहली बार सांप्रदायिक दंगे छिड़ गए. और तब लद्दाख में कश्मीर से अलग होकर केंद्रशासित राज्य का दर्जा पाने की मांग और मजबूत होती चली गई.

लद्दाख में बुद्धिस्ट एसोसिएशन का गठन किया गया

इस मांग को लेकर साल 1989 में लद्दाख में बुद्धिस्ट एसोसिएशन का गठन किया गया. एसोसिएशन ने अपने गठन के साथ ही इस मांग को लेकर एकजुट होकर आंदोलन छेड़ दिया. यूनियन टेरिटरी की मांग को लेकर लेह और कारगिल जिलों में राजनीतिक पार्टियों के साथ लोग भी एकजुट हो गए. साल 2002 में लद्दाख यूनियन टेरिटरी फ्रंट के गठन के साथ इस मांग को लेकर सियासत और तेज हो गई. साल 2005 में लद्दाख यूनियन टेरिटरी फ्रंट ने लेह हिल डेवेलपमेंट काउंसिल की. इसके बाद से लद्दाख ने इस मांग को लेकर पीछे मुड़ कर नहीं देखा. इसी मुद्दे को लेकर साल 2004, 2014 और 2019 में लद्दाख ने सांसद जिताकर दिल्ली भेजे थे.

लेकिन आखिरकार लद्दाखियों को उनकी मंजिल मिली 5 अगस्त 2019 को जब धारा 370 हटाने के साथ भारत सरकार ने लद्दाख को जम्मू कश्मीर से अलग करके एक अलग केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया. लद्दाख आज उसी सपने के मुकम्मल होने का जश्न मना रहा है.