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Mahananda Navami 2023: 30 जनवरी को मनाई जाएगी महानंदा नवमी, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

साल 2023 के पहले महीने में 30 जनवरी के दिन महानंदा नवमी मनाई जाएगी.गुप्त नवरात्रि के नवमी तिथि को पड़ने के कारण इस दिन का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है. इस दिन मां लक्ष्मी के साथ मां दुर्गा की पूजा की जाती है.

मां लक्ष्मी और मां दुर्गा की करें पूजा. मां लक्ष्मी और मां दुर्गा की करें पूजा.
हाइलाइट्स
  • माघ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महानंदा नवमी का रखा जाता है व्रत

  • मां लक्ष्मी के साथ मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है

महानंदा नवमी का व्रत माघ, भाद्रपद और मार्गशीर्ष के महीनों के दौरान पड़ने वाले शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को रखा जाता है. पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महानंदा नवमी का व्रत रखा जाता है. गुप्त नवरात्रि के नवमी तिथि को पड़ने के कारण इस दिन का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है. महानंदा नवमी की पूजा का शुभ मुहुर्त 30 जनवरी को सुबह 10 बजकर 12 बजे से पहले बताया जा रहा है. 

पवित्र नदियों में करें स्नान 

मान्यतानुसार महानंदा नवमी पर मां दुर्गा और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. मां दुर्गा शक्ति और ऊर्जा की प्रतीक हैं और उनकी पूजा करने पर हर कष्ट दूर हो जाते हैं. इसके साथ ही मां लक्ष्मी की पूजा होती है जिन्हें धन की देवी कहा जाता है और उनकी पूजा करने पर घर में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं. महानंदा नवमी के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही व्यक्ति को वर्तमान और पिछले जन्मों के सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है.

व्रत कथा

महानंदा नवमी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है कि एक साहूकार की बेटी पीपल की पूजा करती थी. उस पीपल में लक्ष्मीजी का वास था. लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से मित्रता कर ली.एक दिन लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी को अपने घर ले जाकर खूब खिलाया-पिलाया और ढेर सारे उपहार दिए. जब वो लौटने लगी तो लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से पूछा कि तुम मुझे कब बुला रही हो. अनमने भाव से उसने लक्ष्मीजी को अपने घर आने का निमंत्रण तो दे दिया किंतु वह उदास हो गई. साहूकार ने जब पूछा तो बेटी ने कहा कि लक्ष्मीजी की तुलना में हमारे यहां तो कुछ भी नहीं है. मैं उनकी सेवा कैसे करूंगी? साहूकार ने कहा कि हमारे पास जो है, हम उसी से उनकी सेवा करेंगे.
 
मां लक्ष्मी ने समृद्धि प्रदान की

फिर बेटी ने चौका लगाया और चौमुख दीपक जलाकर लक्ष्मीजी का नाम लेती हुई बैठ गई. तभी एक चील नौलखा हार लेकर वहां डाल गया. उसे बेचकर बेटी ने सोने का थाल, शाल दुशाला और अनेक प्रकार के व्यंजनों की तैयारी की और लक्ष्मीजी के लिए सोने की चौकी भी लेकर आई. थोड़ी देर के बाद लक्ष्मीजी गणेशजी के साथ पधारीं और उसकी सेवा से प्रसन्न होकर सब प्रकार की समृद्धि प्रदान की.