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Kavi Sammelan: बचपन की यादों को कवियों ने किया ताजा, जानिए जीएनटी कवि सम्मेलन में

कागज की कश्ती थी, पानी का किनारा था, खेलने को मस्ती थी, ये दिल आवारा था, ये कहा गए हम समझदारी की दलदल में वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था. चलिए आज वक्त की पहिए को थोड़ा पीछे लेकर चकते है और निकले है उसी सफर पर दोबारा, जब गर्मियों की छुट्टियों पर नाना-नानी के पते होते थे, जून के तपते दिन दीदी के कहानियों से सजे होते थे. न फिक्र थी कुछ पाने की न कुछ गवाने का गम था. गर्मियों के वो दिन थे लेकिन जिंदगी का मजा एकदम था. तो आज कवियों के अंदाज में हम बचपन की याद को ताजा करते है.

When there were maternal grandparents' addresses on summer vacations, the hot days of June were decorated with stories of didi. There was neither worry about getting anything nor there was the sorrow of losing anything. Those were the days of summer but life was fun. So today, in the style of poets, we refresh the memory of childhood.