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मंदिर के बाहर जूते-चप्पल उतारने की प्रथा भारत में सदियों से चली आ रही है.
इसका पहला कारण है पवित्रता; मंदिर को भगवान का निवास माना जाता है, और जूते गंदगी ला सकते हैं.
दूसरा, यह आदर और समर्पण का प्रतीक है; जूते उतारकर हम भगवान के प्रति नम्रता दिखाते हैं.
तीसरा, स्वच्छता का ध्यान रखा जाता है, क्योंकि मंदिर में लोग जमीन पर बैठकर पूजा करते हैं.
आयुर्वेद के अनुसार, नंगे पांव मंदिर में प्रवेश करने से पृथ्वी की ऊर्जा शरीर में प्रवेश करती है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है.
यह प्रथा संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है, जो हमें विनम्रता और अनुशासन सिखाती है.
कुछ मान्यताओं में जूते उतारना मन की शुद्धि का प्रतीक भी है, ताकि हम नकारात्मक विचारों को बाहर छोड़कर मंदिर में प्रवेश करें.
इसके अलावा, यह सामाजिक समानता को दर्शाता है, क्योंकि अमीर-गरीब सभी नंगे पांव ही मंदिर में जाते हैं.
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