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एक अंग्रेज अफसर ने जब पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह की खुराक को देखा तो वह हैरान ही रह गया.
कहा जाता है कि महाराजा भूपिंदर सिंह लंच और डिनर के समय 15-15 तरह के पराठें अकेले ही खा लेते थे.
इन पराठों में कीमा पराठा, दाल भरवा पराठा, सूखे मेवे का पराठा और मटन रोगन जोश पराठा जैसे नायाब स्वाद होते थे.
पराठों के साथ वे कबाब के भी काफी शौकीन थे. लेकिन उनका पसंदीदा था मखमल पराठा.
‘मखमल पराठा’ नाम सुनते ही ज़हन में रेशमी मुलायम परतों वाला घी से चमचमाता एक शानदार पराठा तस्सवुर में आता है.
असल में मखमल पराठा भारतीय शाही रसोईयों की एक बेहद नायाब और लुप्त हो चुकी डिश है, जिसका ज़िक्र खासकर पटियाला, अवध, और हैदराबाद की दरबारी बावर्चीखानों में मिलता है.
महाराजा का खाना चांदी और सोने की थालियों में परोसा जाता था. कभी-कभी जड़े हुए हीरे-मोती की थाल भी इस्तेमाल होती थी.
महाराजा एक बार में 15 के आसपास पराठे आराम से गटक जाते थे. साथ में उनकी थाली के साथ 2-3 प्लेट कबाब, एक कटोरी मलाईदार दाल और दम में पका मटन भी होता था.