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बीते कुछ सालों में भारत की गिग इकॉनमी तेज़ी से बढ़ी है. ज़ोमैटो, स्विगी और ज़ेप्टो जैसे एप्स ने लोगों को डिलीवरी पार्टनर के तौर पर काम करने का मौका दिया है.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि तेज़ी से बढ़ती हुई इकॉनमी अपने 'पार्टनर्स' को क्या दे रही है.
दरअसल आजतक की एक हालिया रिपोर्ट ने एक ग्रोसरी ऐप में डिलीवरी राइडर के तौर पर काम करने वाले शिवम पांडे से बात की.
यह रिपोर्ट शिवम के हवाले से बताती है कि एक राइडर हर डिलीवरी पर 10-15 रुपए कमाता है. एक राइडर पूरे दिन के दौरान 30-40 डिलीवरी कर पाता है.
रिपोर्ट के अनुसार, डिलीवरी भले ही 50 रुपए की हो या 500 रुपए की, राइडर को किलोमीटर के हिसाब से ही पैसे मिलते हैं.
औसतन एक किलोमीटर के लिए राइडर को नौ रुपए मिलते हैं. हर डिलीवरी के बाद राइडर के खाते में पैसे क्रेडिट हो जाते हैं.
ग्रोसरी ऐप्स पर डिलीवरी आमतौर पर आसपास की ही होती है, इसलिए राइडर एक राइड पर ज्यादा कमाई नहीं कर पाते.
कुछ अन्य रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि राइडर प्रति राइड 40-50 रुपए तक कमाते हैं, हालांकि इस दावे की पुष्टि के लिए कोई सोर्स नहीं दिया गया है.