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रत्न एक विशेष तरीके की ऊर्जा का स्रोत है. ये शरीर की ऊर्जा को ग्रहों की ऊर्जा के साथ मैच कर देता है. इसी आधार पर लाभ या हानि होती है.
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रत्नों को पहनने से पहले दो चीज़ों पर ध्यान देना आवश्यक है. पहला वजन और दूसरा समय. इन दोनों चीज़ों को देखे बिना रत्नों को पहनना खतरनाक हो सकता है.
रत्न पहनते समय ग्रहों की स्थिति और आवश्यकता दोनों देखना होगा. तब जाकर रत्नों के वजन का अनुमान कर सकते हैं.
किसी रत्न की रश्मि की ज्यादा आवश्यकता है तो बड़ा रत्न पहनें और कम आवश्यकता है तो छोटा रत्न धारण करें.
रत्न बन जाने के बाद उसे गंगाजल या दूध से धो लें. इसके बाद इसे ईश्वर को समर्पित करें. समर्पित करने के बाद इसे उपयुक्त अंगुली में धारण कर लें.
रत्नों को अगर शुभ मुहूर्त में बनवाया जाए तो उत्तम होगा. इसके अलावा इनको शुक्ल पक्ष में ही धारण करना चाहिये.
मोती और माणिक्य को विशेष रूप से शुक्ल पक्ष में ही पहनें.
रत्नों की एक ऊर्जा होती है. जो शरीर की ऊर्जा को संतुलित करती है. कुछ समय बाद उस रत्न की ऊर्जा शरीर के साथ मिल जाती है.