एक्सपर्ट्स मानते हैं कि सुसाइडल विचार आना कोई बीमारी नहीं है, बल्कि ये एक तरह का मेंटल डिसऑर्डर है.
अगर समय रहते पता चल जाए तो इससे बचा जा सकता है और सामने वाले को भी बचाया जा सकता है.
सही समय पर काउंसलिंग हो जाए तो व्यक्ति के माइंडसेट को बदला जा सकता है.
ऐसे में जरूरी है कि अपने परिवार और दोस्तों के व्यवहार पर नजर रखें.
कई बार ऐसे लोग खुद को अकेला रखने लगते हैं. लेकिन सुसाइडल बिहेवियर के लक्षणों को पहचाना जा सकता है.
अगर आपका कोई परिचित अचानक खुद को दूसरों से अलग कर रहा है और सोशल इवेंट से दूरी बना रहा है तो उसका ध्यान रखें.
अचानक शराब या नशीली दवाओं का सेवन बढ़ जाना भी इसका एक लक्षण है.
ऐसा व्यक्ति बार-बार मौत की बात करने लगता है और जिंदगी को बोझ समझने लगता है.
इसके अलावा, उनके एकेडमिक परफॉर्मेंस में गिरावट दिखने लगती है.
गुस्सा अगर कंट्रोल में न रहे और वे खुद को चोट पहुंचाने वाली चीजों में जाने लगें तो उनसे बात करें.
सबसे जरुरी है कि ऐसे व्यक्ति को डॉक्टर और थेरेपिस्ट से संपर्क करवाएं.
उससे बात करें और उसके डिप्रेशन की वजह पूछें और दवाओं के बारे में बात करें.
उसे अकेला न छोड़ें और मोटीवेट करते रहें.
सबसे जरूरी बात है कि आत्महत्या को रोका जा सकता है. और इसके लिए किसी को मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट होने की भी जरूरत नहीं है.
सहानुभूति और दूसरों को प्रेरणा देकर भी सामने वाले व्यक्ति को बचाया जा सकता है.