बजट पर पूरे देश की निगाहें टिकी होती हैं. ये देश का आर्थिक लेखा जोखा होता है.
बजट बनाने की प्रक्रिया काफी लंबी होती है. इसमें 6 से 7 महीने तक लग जाते हैं.
सबसे पहला स्टेप सर्कुलर जारी होना होता है. वित्त मंत्रालय सभी मंत्रालयों, राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और स्वायत्त निकायों को एक सर्कुलर जारी कर आने वाले साल के लिए एक अनुमान तैयार करने को कहता है.
सर्कुलर मिलने के बाद विभिन्न मंत्रालय साल भर के खर्च का अनुमान लगाने की प्रक्रिया शुरू करते हैं.
खर्च के अनुमान के साथ-साथ सरकार के खजाने में कितना राजस्व कहां से आने वाला है इसका आकलन किया जाता है.
इसके बाद सरकार के शीर्ष अधिकारियों द्वारा इन सब कागजों की जांच की जाती है, इसपर परामर्श होता है और फिर इस डेटा को वित्त मंत्रालय को भेजा जाता है.
वित्त मंत्रालय, सभी सिफारिशों पर विचार करने के बाद, अलग-अलग विभागों को उनके भविष्य में होने वाले खर्चों को देखते हुए राजस्व बांटता है.
इसके बाद वित्त मंत्री अलग-अलग हितधारकों के प्रस्तावों और मांगों के बारे में जानने के लिए बजट से जुड़ी कुछ बैठकें करते हैं.
इतना ही नहीं एक बार बजट पूर्व परामर्श किए जाने के बाद, वित्त मंत्री मांगों पर अंतिम निर्णय लेते हैं और इसे अंतिम रूप देने से पहले प्रधानमंत्री के साथ भी चर्चा की जाती है.
सबसे आखिर में केंद्रीय बजट वित्त मंत्री द्वारा लोकसभा में पेश किया जाता है.
बजट दस्तावेज को बड़ी ही गोपनीयता के साथ रखा जाता है. वित्त मंत्रालय के चुनिंदा अफसर इसे तैयार करते हैं.