मूषक की ही सवारी
क्यों करते हैं गणेशजी
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार इंद देव अपनी सभा में किसी गंभीर विषय पर चर्चा कर रहे थे. वहां क्रौंच नाम का गांधर्व भी मौजूद था.
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इस दौरान क्रोंच कुछ अनुचित कार्य कर सभा को भंग कर रहा था. ऐसे में क्रोंच का पैर गलती से मुनि वामदेव को लग गया.
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क्रोध में आकर मुनि वामदेव ने क्रोंच को चूहा बनने का श्राप दे दिया. मुनि वामदेव के इस श्राप से वो विशालकाय मूषक बन गया.
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मुनि के श्राप से बेहोश होकर वो सीधे ऋषि पराशर के आश्रम में गिर पड़ा. वहां उसने बहुत उद्दंडता की. वाटिका तहस नहस कर दी.
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उस दौरान भगवान गणेश भी वहां मौजूद थे. उन्होंने मूषक को पकड़ने के लिए अपना पाश फेंका.
भगवान गणेश के पाश ने पाताल लोक से मूषक को ढ़ूंढकर गजानन जी के सामने उपस्थित कर दिया.
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पाश मूषक के गले में बंधा था, जिससे वो मूर्छित हो गया था. होश में आने के बाद उसने गणेश जी से अपने प्राणों की भीक मांगी.
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गणेश जी ने मूषक से वरदान मांगने के लिए कहा तो उसने इनकार कर दिया. मूषक ने कहा कि आप चाहें तो मुझसे वर की याचना कर सकते हैं.
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ये सुनकर गणेश जी मुस्काए और बोले तू मेरा वाहन बन जा. इस तरह मूषक गणेश जी की सवारी बन गया.
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