कोल्हापुरी चप्पलों की दुनिया भर में चर्चा हो रही है. इटली की लक्ज़री फैशन ब्रांड प्राडा ने कोल्हापुरी चप्पलों के डिज़ाइन की नकल करने की आलोचना के बाद कोल्हापुरी चप्पल उद्योग के साथ जुड़ने की इच्छा जताई है. इटली से आई प्राडा कंपनी की छह सदस्यीय टीम ने कोल्हापुरी चप्पल बनाने वाले कारीगरों से मुलाकात की.
महाराष्ट्र चेम्बर ऑफ़ कॉमर्स इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर के अध्यक्ष ललित गांधी के नेतृत्व में इटली से आई प्रोडक्ट टीम ने कोल्हापुर का दौरा किया. प्राडा के प्रतिनिधियों ने कोल्हापुर पहुंचकर कोल्हापुरी चप्पलों के पारंपरिक हुनर को बेहतर तरीके से समझा और कारीगरों के हुनर को करीब से समझने के बाद उन्हें सही पहचान दिलाने का वादा किया.
उन्होंने माना कि उन्होंने कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरणा लेकर ही अपने ब्रांड के तहत डिज़ाइन लॉन्च की थी. प्राडा ने भविष्य में ऐसी गलती नहीं करने की भी घोषणा की है.
मिलान फैशन वीक में विवाद
दरअसल, इटली के मशहूर मिलान फैशन वीक में लक्ज़री कंपनी प्राडा के समर कलेक्शन में मॉडल्स कोल्हापुरी चप्पल पहने नजर आए. इस इवेंट की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई. लोगों की नजरें रैम्प वॉक करते मॉडल्स के पैरों में दिख रही कोल्हापुरी चप्पलों पर गई. फैशन शो फॉलो करने वालों ने चमड़े वाली कोल्हापुरी चप्पल को तुरंत पहचान लिया.
इसके बाद सोशल मीडिया पर मॉडल्स की कोल्हापुरी चप्पल पहने फोटो शेयर की जाने लगी और कंपनी को ट्रोल किया गया. लोगों ने हैरानी जताई कि इतनी बड़ी कंपनी ने कहीं भी इसका जिक्र नहीं किया और न ही क्रेडिट दिया कि ये चप्पलें भारतीय पहनावे से प्रेरित हैं.
कोल्हापुरी चप्पलों का महत्व
गौर करने वाली बात ये है कि इटली की कंपनी कोल्हापुरी चप्पल को एक लाख रुपये से भी ज्यादा कीमत में बेच रही है, जबकि भारतीय बाजार में इसकी कीमत 500 से 6000 रुपये तक होती है. भारत में करीब 800 साल से बन रही कोल्हापुरी चप्पलों के डिज़ाइन को दुनिया भर में जाना जाता है. फिर भी इटली की फैशन कंपनी प्राडा ने खुली आम इसके डिज़ाइन को चुरा कर अपने नाम से बेचना शुरू कर दिया है.
चमड़े वाली कोल्हापुरी चप्पलों को हाथ से बनाया जाता है. एक जोड़ी चप्पल को बनाने में 3-15 दिन का समय लगता है. सबसे पहले चमड़े को सुखाया जाता है, फिर इसे सब्जी के रंगों से प्राकृतिक तरीके से रंगा जाता है. फिर चमड़े को काटकर इसे डिज़ाइन किया जाता है और आखिर में हाथों से सिलकर चप्पल को फाइनल फिनिशिंग दी जाती है.
कोल्हापुरी चप्पलें महाराष्ट्र के कोल्हापुर, सांगली, सतारा और सोलापुर के साथ ही कर्नाटक में हस्त निर्मित की जाती हैं. भारत की कोल्हापुरी चप्पल को साल 2019 में ही जीआई यानी की ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग मिल चुका है.
प्राडा की टीम का दौरा
प्राडा की टीम ने कोल्हापुर के कारीगरों से मुलाकात की है. कोल्हापुर के कारीगरों की इच्छा है कि इन चप्पलों को विश्व के अलग-अलग देशों तक पहुंचाया जा सके. इस पर महाराष्ट्र चैम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष ने कहा, "मिलान के एक्जिहिबिशन में जब कोल्हापुरी चप्पल का प्रदर्शन बिना नाम से हुआ, इससे पूरे भारत में और विश्व में एक विवाद हुआ था कि इतने बड़े ब्रांड छोटे-छोटे कारीगरों की कला को कैसे मार्केट में बिना परमिशन लाते हैं."
महाराष्ट्र चैम्बर ऑफ कॉमर्स ने प्राडा से कम्यूनिकेशन किया और कहा कि ये कोल्हापुर के कारीगरों की कला है. इसका क्रेडिट कोल्हापुर के कारीगरों को मिलना चाहिए. प्राडा ने लिखित रूप में स्वीकार किया कि ये कोल्हापुरी चप्पल है, यह भारत की कला है. अब प्राडा की टीम कोल्हापुर आए हैं और यहां के कारीगरों से उत्पादन प्रक्रिया के समझा. क्वालिटी के संदर्भ में चर्चा की. आगे योजना है कि प्रोडक्ट टीम की रिपोर्ट के बाद प्राडा की बिज़नेस टीम महाराष्ट्र आएगी.