पूरे देश में शारदीय नवरात्रि की तैयारी जोर-शोर से चल रही है. इस बार शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर को शुरू हो रही है. विदर्भ के मंदिरों में नवरत्रि को लेकर खास तैयारी की जा रही है. कारीगर देवी मां के आभूषणों को चमका रहे हैं. विदर्भ समेत पूरे महाराष्ट्र में मां दुर्गा का ये त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है.
पूरे देश में शारदीय नवरात्रि की तैयारी जोर-शोर से चल रही है. इस बार शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर को शुरू हो रही है. महाराष्ट्र के अकोला में मूर्तिकार मां दुर्गा की प्रतिमाओं को अंतिम आकार देने में जुटे हैं. नवरात्रि का त्योहार नौ दिन तक बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है.
कड़ा पहनना सिर्फ फैशन नहीं, बल्कि आस्था और स्वास्थ्य का माध्यम है. अगर आप पहनना चाहें, तो ज्योतिषी से सलाह लें और शुक्रवार को शुरू करें. इससे जीवन में सुख-शांति बढ़ेगी!
देश और विदेश में नवरात्रि की तैयारियां चल रही हैं. इस दौरान मां की प्रतिमाएं बनाई जा रही हैं. भारत के पश्चिम बंगाल के वर्धमान से मां की एक खास प्रतिमा कनाडा भेजी गई है. इस प्रतिमा को मूर्तिकार सिद्धार्थ पाल ने विशेष रूप से तैयार किया है. उन्होंने यह प्रतिमा अपनी भतीजी को कनाडा भेजी है, ताकि उन्हें मां का आशीर्वाद मिल सके. लंबी दूरी की यात्रा के लिए इस मूर्ति को फाइबर ग्लास से बनाया गया है, जिससे यह सुरक्षित रूप से कनाडा पहुंच सके. सिद्धार्थ पाल ने पहले भी विदेशों में भारतीय देवी-देवताओं और महापुरुषों की मूर्तियां भेजी हैं. उन्होंने नॉर्वे के लिए लक्ष्मी और सरस्वती की प्रतिमाएं, और अमेरिका के लिए महादेव की प्रतिमा भी भेजी है. सिद्धार्थ के इस कार्य से विदेशों में भारतीय संस्कृति का प्रसार हो रहा है और भारतीय मूर्तिकला को एक नई पहचान मिल रही है.
पितृपक्ष के पंद्रह दिनों में पूर्वज धरती पर किसी न किसी रूप में आते हैं, इसलिए इन दिनों श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व होता है. श्राद्ध कर्म के साथ-साथ पितृपक्ष में पंचबली का भी बड़ा महत्व माना जाता है. पंचबली का अर्थ है पितरों के निमित्त पांच जीवों को भोजन अर्पित करना. इसमें गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी और देवताओं के लिए भोजन का अंश निकाला जाता है. भोजन की तीन आहुति कंडा जलाकर दी जाती है, फिर पांच जगह पर अलग-अलग भोजन का थोड़ा-थोड़ा अंश निकाला जाता है. गाय पृथ्वी तत्व का, कुत्ता जल तत्व का, चींटी अग्नि तत्व का, कौवा वायु तत्व का और देवता आकाश तत्व का प्रतीक हैं. इन पांचों को आहार देकर पंच तत्वों के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है. ज्योतिष के जानकारों का मानना है कि पितृपक्ष में पूर्वज धरती पर आकर परिवारजनों को खुशियों का वरदान देते हैं. तर्पण और श्राद्ध से तृप्त होकर पूर्वज अपार सुख और संपन्नता का आशीर्वाद देते हैं और साथ ही कुंडली के शनि, राहु, केतु भी शांत हो जाते हैं.
ज्योतिष के अनुसार, ग्रहों के अलग-अलग लक्षणों को समझकर पितरों की समस्याओं का पता लगाया जा सकता है. पितृ संतुष्ट हैं या अशांत, या व्यक्ति पितृ दोष से पीड़ित है, यह सब ग्रहों की स्थिति से ज्ञात होता है. पितरों की मुक्ति और मोक्ष के लिए शनि, राहु और केतु की शांति के उपाय महत्वपूर्ण हैं. पितृपक्ष के दिनों में ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना विशेष महत्व रखता है. मान्यता है कि ब्राह्मण को कराया गया भोजन सीधे पितरों तक पहुंचता है. शनि ग्रह की शांति के लिए तर्पण करना, कौए, गाय और कुत्ते को भोज पदार्थ देना चाहिए. तिल का प्रयोग पूजन में ग्रहों की शांति करता है. पीपल के वृक्ष में तिल मिला जल अर्पित करना, निर्धनों को उड़द की दाल के पकवान खिलाना और पेड़-पौधे लगाना भी लाभकारी है. रोजाना दोपहर में "ओम सर्व पितृ प्रसन्नो भव ओम" का 108 बार जप करें. राहु-केतु की बुरी दशा पितरों की मुक्ति में बाधा बन सकती है. पितृ दोष की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और काले तिल का विशेष ध्यान रखें. कहा गया है कि "मछली जैसे व्यक्ति के राहु और शनि दोनों शांत हो जाते हैं" पितृपक्ष में सफेद वस्त्र धारण कर पीपल की परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत को सात बार लपेटें और मिठाई जड़ में डालें. सूर्य के साथ राहु या केतु का आना प्रेत बाधा या चांडाल योग बनाता है, जिससे पितृ दोष उत्पन्न होता है. माता का कारक चंद्रमा शनि के साथ या सूर्य शनि के साथ होने पर भी पितृ दोष बनता है. इन दोषों की शांति अनिवार्य है, जिससे ग्रह शुभ फल देने लगते हैं. शनिवार को अन्न या वस्त्र का दान शनि और अन्य ग्रहों की पीड़ा से बचाता है.
हिन्दू धर्म में हर पर्व का विशेष महत्व होता है. हर त्योहार में श्रद्धालु व्रत जरूर रखते हैं. व्रत रखने के अलग-अलग नियम होते हैं. अगर सही नियम से उपवास न रखा जाए तो व्रती को फल नहीं मिलता है. हिन्दू धर्म में व्रत रखने की धार्मिक मान्यता क्या है? आइए इस बारे में जानते हैं.
हिंदू धर्म में फूलों को पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना गया है. माना जाता है कि फूलों की खुशबू और उनकी कोमलता वातावरण को शुद्ध करती है और मन को शांति देती है. इसलिए पूजा में अलग-अलग तरह के फूल अर्पित किए जाते हैं.
कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति रोजाना तुलसीदल चढ़ाकर भगवान विष्णु का स्मरण करता है, तो उसके पिछले जन्मों के पाप मिट जाते हैं. तुलसीदल से किया गया पूजन मोक्ष का मार्ग खोलता है. घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है और कठिन से कठिन कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं.
नीलकंठ धाम के महंत, जिन्हें लोग महाकाल बाबा के नाम से जानते हैं, ने बताया कि यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी होती है. कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता. धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि माता कुंती ने भी महालक्ष्मी व्रत में हाथी की पूजा की थी और 16 बोल की यही कथा सुनी थी. तभी से यह परंपरा महिलाओं के बीच चलती आई है. पर बहुत कम लोग जानते थे कि इस कथा का वास्तविक स्थान पाटन गांव का नीलकंठ धाम ही है.
अच्छी बात के इस एपिसोड में पंडित धीरेंद्र शास्त्री कहते हैं कि जीवन सियाराम के नाम से चलता है. वो कह रहे हैं कि वीर हनुमान करेंगे सबका उद्धार.. प्रभु सुमिरन करने से होगा बेड़ा पार. देखिए अच्छी बात धीरेंद्र शास्त्री के साथ.