ये नंबर बताता है कि पूरे मानव इतिहास में आप कितनेवें इंसान हैं जो अंतरिक्ष के उस अनदेखे सफर पर गए हैं. राकेश शर्मा को मिला नंबर 138, कल्पना चावला को 366, और शुभांशु को 634. चाहे आप रूस, भारत, अमेरिका या किसी निजी संस्था के हों- यह पिन सभी को एक सामान पहचान देता है.
भारत के पहले एस्ट्रोनॉट सुभांशु शुक्ला ने एक्सिओम फोर मिशन के तहत इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंचकर अंतरिक्ष में नया इतिहास रचा है. उनकी माँ ने कहा कि बेटे की कामयाबी पर उनकी आँखों से खुशी के आँसू गिर रहे थे और कोई दुख नहीं है. सुभांशु ने अंतरिक्ष से तिरंगे के साथ अपना पहला पैगाम भेजा और सनातन संस्कृति के प्रतीक हंस को भी दिखाया.
इंसान के डीएनए को क्लोन करने या शुरू से बनाने पर अब काम हो रहा है. वैज्ञानिक इस प्रोजेक्ट से लंबे वक्त तक दूर रहे. लेकिन अब इस प्रोजेक्ट को फंडिंग भी मिल गई है. इसका मतलब क्या है, आइए समझते हैं.
एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर कदम रखने वाले पहले भारतीय बन गए हैं. शुभांशु को कुंडली देखना पसंद है. वो बचपन से ही बजरंग बली के भक्त हैं. इसके अलावा वो गीता का पाठ करते हैं.
अंतरिक्ष को समझने के लिए यह कैमरा अमेरिका के ऊर्जा विभाग की स्टैनफर्ड लीनियर एक्सलरेटर सेंटर नेशनल लैब (SLAC National Laboratory) ने तैयार किया है. इस कैमरे को बनाने की लागत करीब 4000 करोड़ रुपए आई है और इसे तैयार करने में कुल दो दशक का समय लगा.
भारतीय एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुँच गए हैं, जहाँ वे 14 दिनों तक अंतरिक्ष में जीवन की संभावनाओं और अन्य विषयों पर कई प्रयोग करेंगे. एक वैज्ञानिक ने बताया कि "हम एक एस्ट्रोनॉट को 1984 के बाद भेज रहे हैं और शुभांशु शुक्ला ही गगनयान मिशन के लिए हमारे सबसे अनुभवी एस्ट्रोनॉट होंगे." उनका यह अनुभव भारत के गगनयान मिशन के लिए महत्वपूर्ण होगा, जिसके बाद भारत 2035 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन और 2040 तक चाँद पर एस्ट्रोनॉट भेजने का लक्ष्य रखता है.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट के जुड़ने की प्रक्रिया को डॉकिंग कहते हैं. यह दो तेज गति से चलने वाले अंतरिक्ष यानों को एक ही कक्षा में पास लाकर जोड़ने की जटिल प्रक्रिया है, जिसमें गति नियंत्रण और हवा के दबाव का संतुलन मुख्य चुनौती होती है. अंतरिक्ष यात्री को शून्य गुरुत्वाकर्षण में अलग अनुभव हो सकता है और शुरुआत में थोड़ी परेशानी हो सकती है, लेकिन प्रशिक्षण के कारण वे जल्द ही स्थिर हो जाते हैं.
शुभांशु की यह यात्रा भारतीय अंतरिक्ष इतिहास में एक और मील का पत्थर साबित हो रही है, जो आने वाले वर्षों में भारत के अंतरिक्ष मिशनों की दिशा को मजबूती देगी. साथ ही, इस सफलता ने भारत के अपने स्पेस स्टेशन के सपने को भी पंख दिए हैं.
भारतीय शुभांशु शुक्ला इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंच गए हैं. उन्होंने कल एग्ज़ैम फोर मिशन के तहत अंतरिक्ष में उड़ान भरी थी. शुभांशु 14 दिनों तक स्पेस स्टेशन में रहेंगे. इस दौरान वे अंतरिक्ष में जीवन की संभावनाओं को तलाशने के लिए कई अहम प्रयोग करेंगे. उनकी शुभ यात्रा के लिए उज्जैन के महाकाल मंदिर में विशेष पूजा-पाठ किया गया और दुआएं मांगी गईं. महाकाल में लोग उनकी सफल यात्रा के लिए प्रार्थना कर रहे हैं. यह विज्ञान और आस्था के तालमेल की तस्वीरें हैं.
ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला इस मिशन के पायलट हैं और अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री पेगी व्हिटसन के साथ मिलकर काम करेंगे. ISS पर 14 दिन की इस यात्रा में वह 7 भारतीय और 5 नासा द्वारा डिजाइन किए गए वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे. शुभांशु इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर जाने वाले पहले और स्पेस में जाने वाले दूसरे भारतीय हैं.
आज 25 जून को 12:01 पर शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरेंगे. वे 14 दिन तक अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में रहकर वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे, योग का प्रदर्शन करेंगे और भारतीय संस्कृति को भी दिखाएंगे. एक विशेषज्ञ ने बताया कि राकेश शर्मा ने अपनी पिछली यात्रा को "इकॉनमी क्लास के जैसा" बताया था.