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क्या है NISAR मिशन? जानिए कैसे NASA-ISRO का यह सैटेलाइट जलवायु परिवर्तन, कार्बन एमिशन और प्राकृतिक आपदाओं को समझने में लाएगा क्रांतिकारी बदलाव

NISAR न केवल तकनीकी रूप से अत्याधुनिक मिशन है, बल्कि यह पृथ्वी की रक्षा के लिए एक बड़ा कदम है. जलवायु परिवर्तन, आपदाओं की सटीक जानकारी और पर्यावरणीय नीतियों के निर्माण में यह मिशन अहम भूमिका निभाएगा. भारत और अमेरिका के सहयोग से बना यह सैटेलाइट वैश्विक विज्ञान की दिशा में एक नई मिसाल है.

Nisar satellite Nisar satellite

दुनिया को जलवायु परिवर्तन, कार्बन एमिशन, भूकंप, जंगलों की कटाई और बर्फ की परतों के पिघलने जैसी समस्याएं लगातार घेर रही हैं. ऐसे में NASA और ISRO ने मिलकर एक ऐसा सैटेलाइट तैयार किया है, जो पृथ्वी की गतिविधियों पर 24x7 नजर रखेगा. इस मिशन का नाम है NISAR (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar).

यह सैटेलाइट अपने आप में अनोखा है क्योंकि इसमें दो शक्तिशाली रेडार लगे हैं- एक NASA ने और एक ISRO ने बनाया है. इस तकनीक की मदद से यह सैटेलाइट पृथ्वी के लगभग हर हिस्से को बेहद स्पष्ट रूप से देख सकता है, वो भी दिन-रात और हर मौसम में.

क्या है NISAR और क्यों है यह खास?
NASA के वैज्ञानिक पॉल रोसेन, जो इस मिशन के प्रोजेक्ट साइंटिस्ट हैं, बताते हैं कि NISAR ऐसा पहला सैटेलाइट है जिसमें एक बड़ा रिफ्लेक्टर लगा है जो हर 12 दिन में पूरी पृथ्वी की सतह की निगरानी कर सकता है. यह सैटेलाइट बर्फ की परतों, समुद्री बर्फ, जंगलों, खेती, और आपदा-प्रभावित क्षेत्रों की 3D फिल्मों जैसी तस्वीरें भेजेगा, जिससे हम पृथ्वी में हो रहे बदलावों को समझ पाएंगे.

Synthetic Aperture Radar (SAR) क्या है?
पॉल रोसेन के मुताबिक SAR को आप कैमरे और माइक्रोवेव ओवन के मेल की तरह समझ सकते हैं. यह सिस्टम माइक्रोवेव तरंगों का उपयोग करता है और इन तरंगों को ज़मीन पर भेजकर उसकी छवि बनाता है. हालांकि शुरुआत में जो छवि मिलती है वह धुंधली होती है, लेकिन जब एक ही जगह की कई बार माप ली जाती है और उसे कंप्यूटर से जोड़ा जाता है, तो एक बेहद स्पष्ट और उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीर बनती है. इससे हम पृथ्वी की सतह के 5 से 10 मीटर तक के स्तर को भी साफ देख सकते हैं.

SAR बनाम ऑप्टिकल इमेजिंग
जहां ऑप्टिकल इमेजिंग केवल दिन में और साफ मौसम में काम करती है, वहीं SAR तकनीक दिन-रात, धुंध और बादलों के बीच भी काम करती है. यही वजह है कि NISAR जंगल की आग, बाढ़, भूकंप और भूस्खलन जैसी आपदाओं में भी पूरी तरह कारगर साबित होगा.

NISAR में दो प्रकार के रडार लगाए गए हैं- L-बैंड और S-बैंड. इन दोनों की फ्रीक्वेंसी अलग होती है और यह धरती की सतह के अलग-अलग गुणों को माप सकते हैं. L-बैंड से मोटे पेड़ों और जमीन के अंदर की हलचल का अध्ययन किया जा सकता है जबकि S-बैंड सतह के ऊपरी हिस्से की जानकारी देता है. यह पहली बार है कि किसी एक ही सैटेलाइट में दोनों बैंड एक साथ इस्तेमाल हो रहे हैं.

डिजाइन और निर्माण की कहानी
इस सैटेलाइट की डिज़ाइन में एक बड़ी रिफ्लेक्टिंग डिश और एक बूम सिस्टम शामिल है जो अंतरिक्ष में जाकर खुलता है. इसे तैयार करने में 11 साल लगे और ISRO की साझेदारी के बाद ही इसका फाइनल डिज़ाइन तैयार किया गया. ISRO ने इसमें एक मजबूत और हल्के वजन वाला बूम सिस्टम तैयार किया, जो भारतीय रॉकेट से लॉन्चिंग में सहूलियत देता है.

कब होगा लॉन्च और कैसे करेगा काम?
सैटेलाइट के सभी सबसिस्टम लॉन्च के बाद 20 से 30 दिन में ऑन होंगे. बूम और रिफ्लेक्टर का खुलना 10वें से 18वें दिन के बीच होगा. इसके बाद NISAR पूरी तरह से ऑपरेशनल हो जाएगा.

किन चीजों पर नजर रखेगा NISAR?

  • बर्फ की चादरों और समुद्री बर्फ का पिघलना
  • जंगलों की कटाई और कृषि भूमि का बदलाव
  • कार्बन साइकिल में आने वाले बदलाव
  • प्राकृतिक आपदाएं जैसे भूकंप, ज्वालामुखी, भूस्खलन
  • वेटलैंड्स और नमी वाले क्षेत्रों की स्थिति

क्या NISAR से पृथ्वी की प्लेट मूवमेंट को भी ट्रैक किया जा सकता है?
बिलकुल. NISAR के पास एक खास तकनीक है जिसे Radar Interferometry कहते हैं. यह तकनीक पृथ्वी की सतह में मिलीमीटर स्तर पर हुए बदलाव को माप सकती है. उदाहरण के तौर पर, यदि किसी क्षेत्र में एक हल्का भूकंप पहले आया हो, तो NISAR उसकी जानकारी देकर बड़े भूकंप की भविष्यवाणी करने में मदद कर सकता है.

ISRO के साथ सहयोग कैसा रहा?
पॉल रोसेन कहते हैं कि ISRO के साथ काम करना एक शानदार अनुभव था. NASA जहां ग्लोबल रिसर्च पर केंद्रित रहता है, वहीं ISRO जमीनी स्तर पर डेटा को उपयोग में लाने में माहिर है. दोनों संस्थाओं ने एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखा और आने वाले 5 वर्षों तक इस मिशन में सहयोग जारी रहेगा.

NISAR न केवल तकनीकी रूप से अत्याधुनिक मिशन है, बल्कि यह पृथ्वी की रक्षा के लिए एक बड़ा कदम है. जलवायु परिवर्तन, आपदाओं की सटीक जानकारी और पर्यावरणीय नीतियों के निर्माण में यह मिशन अहम भूमिका निभाएगा. भारत और अमेरिका के सहयोग से बना यह सैटेलाइट वैश्विक विज्ञान की दिशा में एक नई मिसाल है.

(प्रमोद माधव की रिपोर्ट)