EcoKaari: बिस्कुट, चिप्स के पैकेट्स से बैग, प्लांटर्स जैसे उत्पाद बना रहा है यह संगठन, पर्यावरण की सुरक्षा के साथ महिलाओं को दिया रोजगार

आपने अक्सर देखा होगा कि कचरे में लोग प्लास्टिक बोतल, डिब्बे आदि ही लेते हैं. लेकिन प्लास्टिक के रैपर्स, पैकेट्स ऐसे ही लैंडफिल्स या समुद्र में पहुंचते हैं. इस कचरे को प्रोसेस करके उत्पाद बना रहा है EcoKaari.

EcoKaari turning plastic waste into useful products (Photo: X/Ecokaari)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 19 मई 2025,
  • अपडेटेड 12:10 PM IST

भारत की जनसंख्या 1.4 बिलियन से ज्यादा है और यहां हर दिन 26,000 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है. हालांकि, विडंबना यह है कि हर दिन उत्पन्न होने वाले 26,000 टन प्लास्टिक कचरे में से भारत सिर्फ 8 प्रतिशत को ही रीसायकल करता है. आपने अक्सर देखा होगा कि कचरे में लोग प्लास्टिक बोतल, डिब्बे आदि ही लेते हैं. लेकिन प्लास्टिक के रैपर्स, पैकेट्स ऐसे ही लैंडफिल्स या समुद्र में पहुंचते हैं. 

इसी समस्या को हल करने की कोशिशों में जुटा है पुणे स्थित इकोकारी (EcoKaari) संगठन. इकोकारी प्लास्टिक के कचरे को बहुत ही रचनात्मक तरीके से प्रोसेस करके बैग, वॉलेट, प्लांटर्स, टेबल रनर और लॉन्ड्री बैग जैसे उत्पाद बना रहा है. इस संगठन के फाउंडर हैं नंदन भट. इंजीनियरिंग करके MBA करने वाले नंदन ने सालों तक कॉर्पोरेट्स में काम किया. CSR सेक्टर में काम करते समय उन्होंने जाना कि प्लास्टिक रैपर्स, पैकेट्स पर्यावरण के लिए बड़ी समस्या बने हुए हैं. तब उनके दिमाग में इकोकारी शुरू करने के आइडिया ने जन्म लिया. 

नौकरी छोड़कर शुरू किया काम 
16 साल तक सत्यम इंफोवे, टाटा टेलीकॉम और बिग बाजार जैसी कंपनियों में काम करने के बाद नंदन ने 2015 में आरोहणा इको सोशल की शुरुआत की और 2020 में इकोकारी को स्थापित किया. आज इकोकारी में प्लास्टिक रैपर्स को प्रोसेस करके धागे में बदला जाता है. यह काम चरखे पर होता है. नंदन ने सबसे पहले खुद एक ब्लाइंड स्कूल में चरखा चलाकर कपड़ा बुनना सीखा. 

इसके बाद, उन्होंने प्लास्टिक इकट्ठा करने के लिए पुणे के कचरा बीनने वालों के साथ काम करने वाले एनजीओ SWaCH से साझेदारी की. शुरुआती टीम में 2-3 कचरा इकट्ठा करने वाले, 2 बुनकर, 2 दर्जी और 1 ऑपरेशन मैनेजर थे. 

कैसे होता है काम 
बात अगर प्लास्टिक से प्रोडक्ट के बनने की करें तो सबसे पहले प्लास्टिक के कचरे को धोकर सेनिटाइज किया जाता है और फिर धूप में सुखाया जाता है. यह पूरी प्रक्रिया मैन्युअल है, जिसमें किसी भी तरह के केमिकल या इलेक्ट्रिसिटी का इस्तेमाल नहीं किया जाता. इसके बाद प्लास्टिक को रंग और मोटाई के हिसाब से अलग-अलग किया जाता है और फिर इसे लंबी पट्टियों (स्ट्रिप्स) में काट लिया जाता है. 

इन स्ट्रिप्स को पारंपरिक चरखे (spinning wheel) पर घुमाकर फेब्रिक तैयार किया जाता है, जिसे बाद में डिजाइन टीम विभिन्न प्रोडक्ट्स में बदलती है. बताया जाता है कि इस काम में एक व्यक्ति को 1 से 1.25 दिन लगते हैं. 

महिलाओं को सशक्त बनाना
इकोकारी की सबसे बड़ी ताकत महिलाएं हैं. संगठन ने अब तक कोलकाता, बल्लारी और पुणे में लगभग 125 महिलाओं को बुनाई का प्रशिक्षण दिया है. बल्लारी में वे 35 साल से ज्यादा उम्र की जरूरतमंद महिलाओं के साथ काम करते हैं. JSW फाउंडेशन के सहयोग से चार स्वयं सहायता समूह (SHG) बनाए गए हैं, जहां महिलाएं ₹8,000 से ₹15,000 प्रतिमाह तक कमा रही हैं. 

अब बैंकों से इन महिलाओं को सॉफ्ट लोन मिल रहे हैं, उनके बच्चे स्कूल जा रहे हैं और स्वास्थ्य जांच नियमित रूप से हो रही है. कोलकाता में उन्होंने जिंदल पॉली फिल्म्स के साथ साझेदारी की है. इकोकारी ने ITC के साथ एक सफल साझेदारी की है, जहां उनकी फैक्ट्रियों से निकला प्री-कंज्यूमर प्लास्टिक कचरा इकोकारी के कारीगरों के हाथों जरूरत की चीजों में बदला जाता है, जैसे टोट बैग, लंच बैग और पाउच, जिन्हें ITC स्कूलों में बच्चों को बांटा जाता है. 

कचरे से बन रहा बायोफ्यूल
इकोकारी अपने उत्पादन से निकले कचरे को भी उपयोग में लाता है. यह कचरा रुद्र नामक संगठन को दिया जाता है, जो इसे पाइरोलिसिस प्रक्रिया से बायोफ्यूल में बदल देता है. इतना ही नहीं, फैशन डिजाइनर गौरव गुप्ता के साथ सहयोग के चलते इकोकारी 2021 के लैक्मे फैशन वीक के रैम्प पर पहुंचा. इकोकारी के बनाए फैब्रिक से तैयार एक जैकेट को आयुष्मान खुराना ने चंडीगढ़ करे आशिकी फिल्म में पहना था. करीना कपूर खान भी एक इवेंट में इसका परिधान पहन चुकी हैं. 

इकोकारी के बैग्स, वॉलेट्स, बैकपैक्स और अन्य उत्पाद वेबसाइट और भारतभर के एग्जीहिबिशन्स में बिकते हैं. इनके ग्राहक मुख्यतः मेट्रो और सब-मेट्रो शहरों के पर्यावरण-प्रेमी होते हैं. इकोकारी को हाल ही में SELCO फाउंडेशन द्वारा क्लाइमेट इनोवेशन अवार्ड से सम्मानित किया गया.

 

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