जब भारत भर में रबी की फसल कट चुकी होती है और किसान लगभग अपने काम से खाली हो जाते हैं, तो महाराष्ट्र के अहिल्यानगर जिले के वाकी गांव में एक अलग ही हलचल देखने को मिलती है. यहां के किसान इमली के पेड़ खरीदने निकल पड़ते हैं. इमली के जरिए यहां के किसान न सिर्फ अपने परिवारों का पेट पालते हैं, बल्कि अब उनका यह बिजनेस गांव की अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा भी बन चुका है और इसी खट्टी मीठी इमली की बदौलत यहां के किसान आत्मनिर्भर भी बन गए हैं.
गांव-गांव जाकर इमली के पेड़ खरीदते हैं किसान
स्थानीय भाषा में इमली को 'अंबट चिंच' कहा जाता है. जब खेती का काम ठप हो जाता है, तब इस गांव के किसान व्यापारी बन जाते हैं और आस-पास के गांवों में जाकर इमली के पेड़ खरीदते हैं. इन पेड़ों की कीमत उनपर लगने वाली इमली के हिसाब से 2,000 रुपये से लेकर 8,000 रुपये तक होती है.
हर घर में होता है इमली का उत्पादन
इमली गिराने से लेकर छीलने, बीज अलग करने और छिलकों को निकालने तक का काम पूरा किसानों का परिवार मिलकर करता है. यहीं नहीं, इमली के छिलके भी बाजार में 1500-1600 प्रति क्विंटल बिकते हैं, जबकि इमली 7000-8000 रुपये प्रति क्विंटल तक बिकती है. मुंबई, वाशी, शिरमपुर और अहिल्यानगर जैसे बड़े बाजारों में इसकी भारी मांग है. किसान ट्रकों में इमली लेकर मुंबई और वाशी की मंडियों में भेजते हैं.
तीन महीने में लाखों कमा रहे किसान
इस इमली के बिजनेस में वॉकी गांव के लगभग 60–70 परिवार जुड़े हैं. इमली के इस बिजनेस से बड़े व्यापारी 2 से 5 लाख रुपए तक कमा लेते हैं, जबकि छोटे व्यापारी भी 50 हजार से लेकर 1 लाख तक कमाते हैं. यह केवल तीन महीने के दौरान होता है. इसके बाद जब मानसून आता है, तब यही किसान फिर से खेती में लग जाते हैं.
सबसे ज्यादा इमली का उत्पादन तमिलनाडु में
आपको बता दें, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश देश के प्रमुख इमली उत्पादक राज्य हैं. अकेले कर्नाटक में 2024 में 35,000 टन से अधिक उत्पादन हुआ. महाराष्ट्र में 2025 में 1.587 हेक्टेयर क्षेत्र में इमली की खेती की गई.