जमशेदपुर से करीबन 60 से 70 किलोमीटर दूर घाटशिला और चाकुलिया के बीच मौजूद है गोहला गांव. इस गांव के रहने वाले दिनेश शर्मा और अनु कुमार दास ने शिमला मिर्च की खेती करके अपने लिए लाखों की कमाई का ज़रिया बना लिया है. कोरोना काल में नौकरी जाने के बाद जहां दिनेश के पास रोज़गार का कोई ज़रिया नहीं बचा था. लेकिन उन्होंने इस आपदा में अवसर ढूंढकर एक ऐसा बिज़नेस शुरू किया है जिससे वह आत्मनिर्भर बन गए हैं.
नौकरी जाने के बाद आया आइडिया
दिनेश आईटी सेक्टर में इंजीनियर की नौकरी करते थे. कोरोना काल के समय उनकी नौकरी चली गई. नौकरी जाने के बाद वह गांव लौट आए लेकिन हर दिन गूगल और इंटरनेट पर रास्ता ढूंढना नहीं छोड़ा. दिनेश ने पाया कि उनके गांव में शिमला मिर्च की खेती अच्छी हो सकती है लेकिन कोई और इसे आज़मा नहीं रहा है. दिनेश ने पाया कि इसमें काफी बचत भी है, हालांकि इसको संभालना काफी कठिन है.
कारण यह है कि शिमला मिर्च को ज्यादा तापमान वाली जगहों पर रखा नहीं जा सकता और यहां का अधिकतम तापमान 45 से 48 डिग्री रहता है. आखिर दिनेश और अनु ने फैसला किया कि वे अपने बचाए हुए पैसों को इनवेस्ट करके खेती करेंगे.
दिनेश कहते हैं, "मैंने आईटी क्षेत्र में इंजीनियरिंग की है. कोरोना कल में नौकरी चली गई. मैं घर बैठ गया. कोई नौकरी का दूसरा साधन नहीं था. मैंने इंटरनेट छानना शुरू किया तो पाया कि इस पूर्वी सिंहभूम इलाके में शिमला मिर्च की खेती नहीं होती है. कारण यह है कि यहां गर्मियों में तापमान 46/48 डिग्री रहता है."
आखिर दिनेश और अनु ने अपने कमाए हुए पैसों से सबसे पहले एक पोली फार्म तैयार करने का फैसला किया.
फिर शुरू हुई खेती
पोली फार्म तैयार करने के लिए जिस ज़मीन की ज़रूरत थी, वह इसी गांव के रहने वाले गुनुमय मिश्रा से मिली. गुनुमय जीएनटी से बात करते हुए कहते हैं, "इन लड़कों ने आकर हमें बताया कि कोरोना में इनकी नौकरी चली गई और ये खेती करना चाहते हैं. हमारे पास जमीन थी तो हमने इन्हें खेती करने को कहा. इन लोगों ने कैप्सिकम की खेती की जो कि काफी सफल है. अब ये लोग कैप्सिकम बाजार में बेच रहे हैं. और इन्हें अच्छी कमाई भी हो रही है."
900 स्क्वेयर फीट के इस पोली फार्म में दोनों ने 15 फीट बोरिंग कर पहले पानी का इंतज़ाम किया. पोली हाउस में कॉटेज तैयार कराया. फिर उन्होंने दो रुपए के दर से शिमला मिर्च का पौधा मंगवाया. करीबन 5000 पौधे मंगाए गए. दोनों ने हर दिन कड़ी मेहनत की और उसका फल इन्हें जल्दी देखने को मिलने लगा. एक-एक पेड़ में काफी तादाद में कैप्सिकम आने शुरू हुई जिसकी गुणवत्ता काफी अच्छी है. पहली बार जब इन लोगों ने कैप्सिकम तोड़ा तो पाया कि पहली बार में इन्हें 60 से 70 किलो फसल मिली है.
सफलता पर क्या बोले दोनों दोस्त
दिनेश बताते हैं कि उन्हें हर महीने लाख रुपए तक की बचत हो रही है. वह कहते हैं, "हर एक दिन के बाद लगभग एक क्विंटल के आसपास कैप्सिकम का उत्पादन हम कर रहे हैं. मात्र 900 स्क्वायर फीट में इतनी अच्छी फसल का मिलना काफी सुखदायक है. इस इलाके में कैप्सिकम नहीं होती है तो हम लोगों ने शुरू-शुरू में कैप्सिकम की खेती की है. करीबन लाख रुपया हर महीना कमाने का अनुमान है."
नौकरी जाने के बाद दोनों दोस्त काफी हताश हो चुके थे. अनु बताते हैं कि दोनों ने ही इससे पहले कभी खेती नहीं की थी लेकिन इस ओर उनका झुकाव जरूर था. आखिर दोनों ने इस सफर की शुरुआत की और अब वे अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं.
(जमशेदपुर से अनुप सिन्हा की रिपोर्ट)