शिक्षा के दीप को जितना जलाया जाए उसका प्रकाश उतनी दूर तक जाता है, गाजियाबाद में जरूरतमंद बच्चों की शिक्षा के लिए उमेश चंद्र पंत ने एक ऐसा ही दीपक जलाया, जिसकी रोशनी से अब तक सैकड़ों बच्चों के जीवन में शिक्षा का दीप प्रज्वलित हो गया है. दरअसल झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को शिक्षा मिल सके और वो भी समाज के बाकी बच्चों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सके इस सार्थक प्रयास को सफल बनाने के लिए साल 2007 में उमेश चंद्र पंत ने बच्चों को एक कमरे की बनी लाइब्रेरी में पढ़ाना शुरू किया. पहले कुछ किताबें खरीदी और फिर आस पड़ोस के बच्चों को इकट्ठा करके पढ़ाने लगे. धीरे-धीरे अभिभावकों की रुचि बढ़ने लगी और बच्चों का आना शुरू होने लगा. इसके बाद उमेश पंत ने इन बच्चों का अपने पैसों से स्कूल में दाखिला करवाना शुरू करवा दिया और हर साल बच्चों के एडमिशन करवाने लगे. बच्चों को स्कूल भेजना, उनके लिए ड्रेस लेना, किताबों की कमी न होने देना और उनकी शिक्षा का सारा खर्चा उमेश पंत ने अपने कंधों पर लेना शुरू कर दिया हालांकि उनके इस सफर में लोग जुड़ते गए और कारवां बढ़ता गया.
हादसे ने बदला जीवन
दरअसल साल 2007 से 2013 तक उमेश पंत ने नौकरी के साथ अपनी सार्थक लाइब्रेरी को चलाया, लेकिन केदारनाथ आपदा ने उनका जीवन बदल दिया. गुड न्यूज टुडे से बात करते हुए उमेश पंत ने बताया कि सार्थक लाइब्रेरी को चलाने के साथ वह एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी किया करते थे लेकिन केदारनाथ आपदा ने जीवन बदल दिया और उन्होंने तय किया कि अब आर्थिक तौर से कमजोर और जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देने का काम शुरू करेंगे और फिर उन्होंने छोड़कर 24 घंटे बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया. 2007 में शुरू हुई लाइब्रेरी आज एक स्कूल बन गया है जहां बच्चों को शिक्षा दी जा रही है. वो बताते हैं कि उनकी इस लाइब्रेरी से शिक्षा लेकर अब तक 600 से ज्यादा बच्चे ग्रेजुएट हो चुके हैं. कुछ इंजीनियर बन गए कुछ ने पॉलिटेक्निक की तो कुछ लॉ की पढ़ाई कर रहे हैं. वहीं कुछ बच्चे ग्रेजुएट होने के बाद उनके स्कूल में ही बाकी बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं. सार्थक लाइब्रेरी की एक कड़ी जहां गाजियाबाद के वसुंधरा में हैं, वहीं दूसरी कड़ियां उत्तराखंड में हैं जहां लगभग 200 बच्चों को मौजूदा वक्त में शिक्षा दी जा रही है. साथ ही महिलाओं को भी सबल और सक्षम बनाने के लिए ट्रेनिंग दी जा रही है.
पढ़ाई के साथ सिखाते है कला
सार्थक प्रयास में फिलहाल नर्सरी से 11वीं तक के बच्चों को शिक्षा दी जा रही है. खास बात यह है कि यहां पर बच्चों को सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं दिया जाता बल्कि इसके साथ ही उन्हें डांस म्यूजिक सेल्फ डिफेंस और कंप्यूटर की ट्रेनिंग भी दी जाती है जिससे बच्चे शिक्षा के साथ ही आधुनिक भी हो सकें. स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों से जब न्यूज़ टुडे ने बात की तो उन्होंने बताया कि उमेश पंत ने ही उनका स्कूल में दाखिला करवाया और वह सालों से लाइब्रेरी से जुड़े हुए हैं. लाइब्रेरी की बदौलत ही आज उनके अंदर इतना आत्मविश्वास है कि वह भविष्य में आईपीएस बनने का सपना देखते हैं. इस पाठशाला में पढ़ने वाले नन्हे नन्हे बच्चे भविष्य में बड़ा मुकाम हासिल करना चाहते हैं.
मजदूरों के बच्चे आते हैं स्कूल में
बच्चे भविष्य में सफल और सार्थक हो सके इस कड़ी में शिक्षकों का अहम योगदान होता है, सार्थक प्रयास में पढ़ाने वाले ज्यादातर टीचर इसी लाइब्रेरी से पढ़े हुए हैं. स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक बताते हैं कि सार्थक प्रयास के जरिए ही वह पढ़ लिख सके और अब वह जीवन में चाहे कहीं भी पहुंचे लेकिन उनकी कोशिश रहेगी कि वह बाकी बच्चों को भी पढ़ा-लिखा सकें क्योंकि ज्ञान को जितना बांटा जाता है वह उतना ही बढ़ता है. इस स्कूल में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चों के अभिभावक घरों में काम करते हैं, किसी के घर वाले रिक्शा चलाते है तो किसी कि मां दूसरों के घरों में काम करती है, खास बात ये है कि फिर भी उनके भीतर अपने बच्चों को पढ़ाने की ललक है और इस ललक को देखते हुए उमेश पंत ने बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देने की शुरुआत की है.