UP Loksabha Seats: पहले चरण में यूपी की 8 लोकसभा सीटों पर चुनाव, जानें पीलीभीत और मुजफ्फरनगर समेत इन सभी सीटों का सियासी समीकरण

लोकसभा चुनाव के पहले चरण में उत्तर प्रदेश की 8 लोकसभा सीटों पर चुनाव होने वाला है. 19 अप्रैल को मतदान होना है. पहले चरण में देश की कुल 102 लोकसभा सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे.

Loksabha Elections 2024 (Photo: Getty Images)
कुमार अभिषेक
  • लखनऊ,
  • 27 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 12:08 PM IST
  • पहले चरण में यूपी की 8 लोकसभा सीटों पर चुनाव
  • कुल 102 लोकसभा सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे

आम चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के पहले चरण में देश की कुल 102 लोकसभा सीटों पर 16 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे. इनमें यूपी की रामपुर, सहारनपुर, पीलीभीत, नगीना, बिजनौर, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर और कैराना लोकसभा सीट शामिल हैं. आइए, जानते हैं कि उत्तर प्रदेश की इन आठ लोकसभा सीटों का सियासी समीकरण क्या है-

1. पीलीभीत
इस बार लोकसभा चुनाव में पीलीभीत की सीट सबसे हॉट सीट बन गई है. क्योंकि बीजेपी ने वरुण गांधी का पत्ता साफ कर दिया है और कुछ साल पहले कांग्रेस से आए जितिन प्रसाद को यहाँ से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है.

पीलीभीत को यूपी का पंजाब भी कहा जाता है, क्योंकि विभाजन के बाद पाकिस्तान से आए सिखों ने इसे आबाद किया. उत्तर प्रदेश का पीलीभीत जिला सबसे ज्यादा बाघों की तादाद के लिए भी जाना जाता है. इसके अलावा गोमती नदी के उद्गम जल, जंगल, जमीन से सजा ये जिला अपनी खूबसूरती के लिए देश दुनिया में विख्यात है.

धान, गेंहू, गन्ना यहां की प्रमुख फसलें हैं. लेकिन बात अगर राजनीति की करें, तो यह क्षेत्र मेनका गांधी और वरुण गांधी के लोकसभा क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है. लेकिन इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने वरुण गांधी का टिकट काटकर यहां से जितिन प्रसाद को अपना उम्मीदवार घोषित किया है. समाजवादी पार्टी ने यहां से कुर्मी बिरादरी पर दांव लगाया है और भगवत शरण गंगवार को अपना प्रत्याशी बनाया है.

पीलीभीत लोकसभा की सीमाएं नेपाल और उत्तराखंड से जुड़ी हुई हैं. लखीमपुर, शाहजहांपुर, बरेली इसके पड़ोसी जिले हैं. बहेड़ी क्षेत्र छोड़कर पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र की आबादी 25 लाख के आसपास हैं. और वोटर 18 लाख से ज्यादा हैं. जातिगत आंकड़ों पर नजर डालें तो 5 लाख के आस पास मुस्लिम हैं, किसान 3 से 4 लाख के बीच और कुर्मी वोट लगभग 2 लाख हैं.
       
वरुण गांधी को लेकर तरह-तरह के कयास लगने लगे हैं. ऐसे में यह सीट सबसे चर्चित सीटों में एक हो गई है. वरुण गांधी ने पिछली बार तकरीबन ढाई लाख वोटों से ये सीट जीती थी. अब जितिन प्रसाद क्या जीत के इस लीड को बढ़ा पाते हैं या फिर बीजेपी यह सीट गंवा देती है इस पर सबकी नजर रहेगी. 

2. बिजनौर
बिजनौर से एनडीए के उम्मीदवार के तौर पर आरएलडी के प्रत्याशी चंदन चौहान हैं. जबकि समाजवादी पार्टी ने दीपक सैनी को अपना उम्मीदवार बनाया है. बसपा ने यहां जाट प्रत्याशी चौधरी वीरेंद्र सिंह को दिया है. बीजेपी ने गुर्जर बसपा ने जाट और समाजवादी पार्टी ने ओबीसी प्रत्याशी उतारे हैं. आरएलडी को इस गठबंधन में दी गई दो सीटों में एक सीट बिजनौर की है.

बिजनौर लोकसभा में पांच विधानसभा सीटे हैं. इसमें अगर जातिगत वोटर की बात करें तो करीब साढ़े 4 लाख से 5 लाख के आसपास मुस्लिम वोटर हैं. जबकि तकरीबन चार से साढ़े चार लाख के बीच दलित वोटर हैं. डेढ़ से पौने दो लाख के करीब जाट वोटर हैं. इसके अलावा 50 हजार से 75 हजार के बीच में गुर्जर वोटर हैं और 50 से 60 हजार के बीच ब्राह्मण वोटर हैं. वहीं इसके अलावा चौहान, त्यागी सहित कई अन्य जातियों का भी वोट इसमें शामिल हैं. इस सीट पर मुस्लिम और दलित वोटर हमेशा निर्णायक रहा है.

बिजनौर लोकसभा के इतिहास की बात करें तो राम मंदिर आंदोलन के बाद से यानी 1991 से अब तक बीजेपी चार बार इस सीट पर अपना कब्जा जमा चुकी है. जबकि इस बीच में समाजवादी पार्टी दो बार, रालोद एक बार इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुका है. वर्तमान में इस सीट पर बसपा का कब्जा है जिसके सांसद मलूक नागर हैं. लोकसभा अध्यक्ष रही मीरा कुमार और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही मायावती भी इस सीट का एक-एक बार प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं.

3. नगीना
नगीना सीट इसलिए खास है क्योंकि चर्चित दलित नेता चंद्रशेखर यहां से अपनी सियासी जमीन की तलाश कर रहे हैं. वो पहली बार चुनावी मैदान में हैं. बीजेपी ने ओम कुमार, तो सपा ने मनोज कुमार को अपना प्रत्याशी बनाया है, वहीं बसपा ने सुरेंद्र सिंह मेनवाल को अपना प्रत्याशी बनाया है.

नगीना लोकसभा सीट सुरक्षित सीट है. नगीना को मुख्य रूप से काष्ठ कला के लिए जाना जाता है. नगीना में काष्ठ कला का सालाना टर्नओवर 400 करोड़ रुपए से ज्यादा का बताया जाता है. यहां के कारीगर हाथ की नक्काशी से सुंदर आकर्षक हैंडीक्राफ्ट बनाते हैं, जो विदेशों में अपनी पहचान रखते हैं और यहां से विदेशों तक सप्लाई किए जाते हैं. इस सीट पर मुख्य रूप से दलित और मुस्लिम निर्णायक हैं. हालांकि यह सीट सुरक्षित सीट है लेकिन इस सीट पर मुसलमानों की संख्या सबसे ज्यादा है. करीब साढ़े 7 लाख वोटर इसमें मुसलमान हैं. दलित वोटर की संख्या लगभग 4.5 लाख के आसपास है.

2009 में यह सीट अस्तित्व में आई और इस पर पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के यशवीर सिंह पहली बार विजयी हुए थे. उसके बाद 2014 के चुनाव में बीजेपी के सांसद यशवंत सिंह ने सपा प्रत्याशी को हराकर इस सीट पर अपना कब्जा जमाया था. जबकि 2019 के चुनाव में सपा और बसपा के गठबंधन के चलते बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी गिरीश चंद्र इस सीट पर विजयी रहे, जो वर्तमान में इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

4. कैराना
ये इलाका हिन्दू और मुसलमान गुर्जर बहुल माना जाता है. कैराना से सपा ने इकरा हसन को अपना उम्मीदवार बनाया है, तो बीजेपी ने प्रदीप चौधरी को. ये दोनों ही गुर्जर हैं लेकिन अब यहां की सियासत में बिरादरी से बड़ा धर्म का झोल है. कैराना लोकसभा में पांच विधानसभा मौजूद हैं. जिसमें कैराना, शामली, थानाभवन, नुकुड और गंगोह विधानसभा सीट हैं.

कैराना लोकसभा में जातीय समीकरण की बात करें, तो यहां पर सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं. जिनकी संख्या करीब 5.45 लाख के आसपास है. उसके बाद दलित वर्ग के तकरीबन ढाई लाख वोटर हैं. कैराना में तकरीबन ढाई लाख के आसपास जाट वोटर हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो उस दौरान यहां पर भाजपा कैंडिडेट ने करीब 75000 से अधिक वोटों से जीत हासिल की थी.

5. सहारनपुर
समाजवादी पार्टी ने इस बार यहां से इमरान मसूद को तो बीजेपी ने राघव लखनपाल को मैदान में उतारा है. सहारनपुर लोकसभा सीट का सफर बहुत दिलचस्प रहा है. यह सीट कई मायनों में सभी राजनीतिक दलों के लिए अहम मानी जाती है. सहारनपुर सीट पर सबसे पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ था और तभी से यह सीट कांग्रेस का गढ़ बन गई. 1952 से लेकर 1977 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा था. 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव से लेकर 1996 तक इस सीट पर जनता दल या जनता पार्टी का कब्जा रहा. दो बार की हार के बाद 1984 के चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर यंहा पर बाजी मारी थी.

1996 के बाद सहारनपुर सीट दो बार बीजेपी, दो बार बहुजन समाज पार्टी, एक बार समाजवादी पार्टी और फिर 2014 में मोदी लहर के चलते 16 साल बाद यह सीट भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई थी. इससे पहले बीजेपी 1998 में इस सीट से चुनाव जीती थी. लेकिन 2019 के चुनाव में इस सीट पर एक बार फिर बसपा ने कब्जा कर लिया. 2019 में सहारनपुर लोकसभा सीट से महागठबंधन से प्रत्याशी बने बसपा के हाजी फजलुर्रहमान ने 514139 वोट पाकर जीत दर्ज की. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी राघव लखनपाल को 22417 वोटों से हराकर इस सीट पर अपना परचम लहराया और इस सीट से लोकसभा सांसद बने. इस लोकसभा सीट पर दलित और मुस्लिम वोट निर्णायक फैक्टर रहते हैं, जो इसे राजनीतिक दलों के लिए अहम बनाता है.

6. मुरादाबाद
आजम खान की जिद ने अखिलेश को मुरादाबाद में अपना प्रत्याशी बदलने पर मजबूर कर दिया है. सपा एसटी हसन की जगह अब रुचि वीरा को अपना उम्मीदवार बनाने जा रही है, जबकि बीजेपी ने फिर से कुंवर सर्वेश सिंह पर अपना दांव लगाया है.

मुरादाबाद उत्तर प्रदेश की एक महत्वपूर्ण लोकसभा सीट है. मुरादाबाद, पीतल हस्तशिल्प उद्योग के कारण पीतल-नगरी (Pital Nagari) के नाम से मशहूर है. यहां बने पीतल के सामान का निर्यात कई देशों में होता है, जिसके चलते मुरादाबाद इंपोर्ट एक्सपोर्ट हब भी है. मुरादाबाद लोकसभा की बात करें तो उसमे कुल 5 विधानसभा आती हैं. मौजूदा सांसद की बात करें तो डॉ एसटी हसन समाजवादी पार्टी से मुरादाबाद लोकसभा के सांसद हैं. हालांकि मुरादाबाद का इतिहास रहा है कि यहां हर लोकसभा चुनावों में अलग पार्टी का सांसद बनता है. जैसे 2019 में सपा सांसद, 2014 में भाजपा से सांसद कुंवर सर्वेश सिंह, 2009 में कांग्रेस से क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन सांसद रह चुके हैं.

7. मुजफ्फरनगर
मुजफ्फरनगर से बीजेपी अपने जाट चेहरे संजीव बालियान को तीसरी बार मैदान में उतारा है. सपा ने कांग्रेस से आए जाट नेता चौधरी हरेंद्र सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है. उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट की बात करें तो यह सीट 2013 दंगे के बाद से उत्तर प्रदेश की मुख्य सीटों में गिनी जाती है. क्योंकि 2013 दंगे के बाद 2014 में जो लोकसभा के चुनाव हुए थे उसमें बीजेपी ने सभी पार्टियों का एक तरफ सूपड़ा साफ कर दिया था.

2014 के इस चुनाव में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर भाजपा ने संजीव बालियान को अपना प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा था. बीजेपी की इस आंधी में संजीव बालियान को इस चुनाव में 653391 वोट मिले थे. जबकि दूसरे नंबर पर रहे बसपा के प्रत्याशी कादिर राणा मात्र 252241 वोट ही मिल पाए थे. जिसके चलते भाजपा प्रत्याशी डॉक्टर संजीव बालियान ने इस चुनाव में बसपा प्रत्याशी कादिर राणा को 401150 रिकॉर्ड मतों से मात दी थी.

इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने एक बार फिर से संजीव बालियान पर अपना दांव लगाया था. इस बार संजीव बालियान के सामने राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अजीत सिंह थे. इस चुनाव में भी संजीव बालियान ने जीत हासिल करते हुए अजीत सिंह को 6526 वोट से हराकर यह चुनाव जीता था. इस चुनाव में संजीव बालियान को 573780 वोट मिले थे जबकि अजीत सिंह को 567254 वोट मिल पाए थे.

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर अगर जातिगत आंकड़ों की बात करें तो इसी सीट पर 2019 चुनाव के अनुमानित आंकड़ों के मुताबिक लगभग 17 लाख के आसपास मतदाता हैं. जिसमें लगभग 5 लाख मुस्लिम, 2 लाख दलित, 1.5 लाख जाट, 1.3 लाख कश्यप, 1.2 लाख सैनी, 1.15 लाख वैश्य और लगभग 4.8 लाख ठाकुर हैं. इस सीट पर गुर्जर, त्यागी, ब्राह्मण, पाल, प्रजापत, सुनार और अन्य बिरादरी भी वोटर हैं.

8. रामपुर
ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान सितंबर 1774 में रामपुर रियासत का उदय हुआ. यहां पर 1949 तक कुल 10 नवाबों में शासन किया है. देश की आजादी के बाद 1952 में हुए आम चुनाव में देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद यहीं से चुनकर संसद तक पहुंचे थे. यहां पर नवाब खानदान के अलावा भाजपा के मुस्लिम चेहरे मुख्तार अब्बास नकवी, अभिनेत्री जयाप्रदा और सपा के फायर ब्रांड नेता आजम खान जीत हासिल कर चुके हैं.

चुनावी आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो 1952 से 2019 तक के चुनाव में यहां पर काफी उलटफेर देखने को मिले हैं. यहां से 10 बार कांग्रेस, चार बार भाजपा, तीन बार सपा और एक बार भारतीय लोकदल से निर्वाचित हुए सांसद लोकतंत्र के मंदिर यानी संसद में रामपुर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर राजनीतिक एतबार से धर्म और जाति कोई खास मायने नहीं रखती है. यही कारण है कि यहां के मतदाता दूसरे धर्म या जाति वाले प्रत्याशी को चुनने में किसी तरह का कोई गुरेज नहीं करते हैं.

रामपुर लोकसभा की राजनीतिक पृष्ठभूमि के एतबार से इंडिया गठबंधन के सबसे बड़े दल के रूप में कांग्रेस की फेहरिस्त में यहां की सीट भी है. जबकि सपा भी यहां पर मजबूत दावा पेश करती देखी जा सकती है. वहीं दूसरी ओर भाजपा के दिग्गजों ने भी विरोधियों को कई मौके पर चुनावी रण में धूल चटाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी है.

 

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