सीट बंटवारे को लेकर दोनों गठबंधनों की इनसाइड स्टोरी, विरोधियों से पहले अपनों से दो–दो हाथ

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए और महागठबंधन दोनों ही गठबंधनों में सीट शेयरिंग पर असमंजस बरकरार है. छोटे दलों की खींचतान और बैठकों के बावजूद अबतक कोई फार्मूला तय नहीं हो पाया है.

Neetish Kumar and Tejshwi Yadav
gnttv.com
  • पटना,
  • 15 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:32 PM IST

बिहार विधानसभा चुनाव के ऐलान में ज्यादा वक्त नहीं है, लेकिन चुनावी मैदान में उतरने के लिए कमर कस चुके दोनों प्रमुख गठबंधनों में सीट शेयरिंग को लेकर अबतक तस्वीर साफ नहीं हो पाई है. बात एनडीए की करें या फिर महागठबंधन की, दोनों खेमों का हाल एक जैसा ही नजर आ रहा है. एनडीए में सीट बंटवारे से पहले एक तरफ जहां छोटे घटक दलों के बीच खींचतान दिख रही है तो वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन में वोटर अधिकार यात्रा के बाद आरजेडी और कांग्रेस अपने–अपने सिंगल प्लान को एक्टिवेट कर आगे बढ़ते नजर आ रहे हैं. एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर अबतक बैठकों का दौर भी शुरु नहीं हुआ है जबकि महागठबंधन के घटक दलों के बीच बैठकें तो हो रही हैं लेकिन कोई फार्मूला सामने नहीं आ पा रहा.

एनडीए की तरफ से मुख्यमंत्री चेहरा साफ
सबसे पहले बात एनडीए गठबंधन की. एनडीए की तरफ से नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे इसको लेकर तस्वीर साफ है. चुनावी तैयारी को लेकर एनडीए का विधानसभा स्तर पर कार्यकर्ता सम्मेलनों का दौर भी जारी है. एनडीए के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि चुनावी बिगुल बजने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलग–अलग कार्यक्रम से बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के कार्यकर्ताओं में जोश भी भर रहा है. लेकिन बात अगर सीट शेयरिंग को लेकर करें तो अबतक एनडीए में घटक दलों के बीच बैठकों का दौर भी शुरू नहीं हो पाया है. 

क्या कहता है सीट शेयरिंग को लेकर चुनावी गलियारा
एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर जिस फार्मूले की चर्चा सियासी गलियारे में है उसके मुताबिक बीजेपी और जेडीयू के बराबर–बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही जा रही है. चर्चा ये भी है कि ये दोनों बड़े घटक दल सौ–सौ से ज्यादा सीटों पर अपना उम्मीदवार देंगे. एनडीए में शामिल चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी को भी उनकी ताकत के हिसाब से सीटें दिए जाने की चर्चा है. राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा सीट बंटवारे पर अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं हैं लेकिन चिराग पासवान की पार्टी ने शुरुआती दौर में 40 सीटों पर दावेदारी की थी.

चिराग पासवान चाहते हैं कि उनकी पार्टी की सीटों की संख्या कम से कम इतनी हो की एवरेज स्ट्राइक रेट से भी वो इस स्थिति में रहें कि बिहार की सियासत में उनकी अहमियत बनी रहे. हालांकि एनडीए के अंदर सीट शेयरिंग को लेकर जिस फार्मूले की चर्चा सियासी गलियारे में है उसके मुताबिक चिराग पासवान की पार्टी को 20 के आसपास सीटें दी जा सकती हैं. संभव हो कि इतनी सीटों पर चिराग को राजी करवाने के लिए बीजेपी कोई और ऑफर भी दे. एनडीए के अंदर सीट बंटवारे पर फंसे पेंच को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा चिराग की ही हो रही है. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान किस तरह एनडीए से बाहर रहकर मैदान में उतरे थे और इसका खामियाजा जेडीयू को उठाना पड़ा था यह शायद ही कोई भूला है. बिहार में महागठबंधन की तरफ से मिल रही चुनौतियों को देखते हुए बीजेपी और जेडीयू दोनों में से कोई भी या नहीं चाहेगा कि चिराग एक बार फिर से 2020 से वाली राह पर जाएं.

चिराग ने एनडीए के अंदर जो प्रेशर पॉलिटिक्स अपनाई है शायद उसी का असर है कि अब जीतन राम मांझी भी अपनी पार्टी की तरफ से मुखर होकर दावेदारी कर रहे हैं. मांझी ने भी अपनी पार्टी के लिए 15 से 20 सीटों की दावेदारी मीडिया के जरिए सामने रखती है. मांझी इसके लिए जो तर्क दे रहे हैं वह उनकी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे के लिए मिलने वाले वोट परसेंटेज को लेकर जुड़ी हुई है. जीतन राम मांझी ने ऐलान कर दिया है कि अगर उम्मीद के मुताबिक के सीटों की संख्या नहीं हुई तो उनकी पार्टी बिहार चुनाव में काम से कम 100 सीटों पर उम्मीदवार देगी. चिराग पासवान हो या फिर जीतन राम मांझी इन दोनों के बयानों पर फिलहाल जेडीयू और बीजेपी ने चुप्पी साथ रखी है. एनडीए के दोनों बड़े घटक दलों के नेता यही कह रहे हैं की सीट बंटवारे को लेकर हमारे गठबंधन में कोई जिच नहीं है और फैसला बड़ी आसानी से हो जाएगा. जाहिर है एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर भले ही बैठकों का दौर खुले तौर पर नहीं हो रहा हो लेकिन अंदर खाने में घटक दलों के दावे और उन्हें फार्मूले पर मनाने को लेकर बातचीत का दौर जारी है. बीजेपी की कोशिश यह नजर आती है कि घटक दलों के साथ साझा बैठक करने की बजाय अलग-अलग सहयोगी दलों के नेताओं से बातचीत कर सहमति बनाई जाए. पर्दे के पीछे जब सहमति बन जाए तो फिर सीट बंटवारे के फार्मूले के साथ साझा बैठक और फिर साझा ऐलान हो. चर्चा यह भी है कि एनडीए में कई सीटों पर एडजस्टमेंट को लेकर भी पेंच फंसा हुआ है.

महागठबंधन में सीट बंटवारे की कहानी
सीट बंटवारे को लेकर महागठबंधन के अंदर की कहानी भी कम पेचीदा नहीं है. बिहार में चुनाव आयोग की तरफ से कराए गए SIR को मुद्दा बनाते हुए राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने अन्य सहयोगी दलों के नेताओं के साथ मिलकर भले ही वोटर अधिकार यात्रा की हो लेकर सीट शेयरिंग पर महागठबंधन को गाड़ी आगे बढ़ने का नाम नहीं ले रही. बिहार विधानसभा चुनाव में एकजुटता और एनडीए को पटखनी देने के मकसद से महागठबंधन ने शुरुआती दौर से गजब कमिटमेंट दिखाया. महागठबंधन की शुरुआती बैठकों के बाद कॉर्डिनेशन कमेटी समेत अन्य कमेटियों का गठन कर दिया गया. बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को कॉर्डिनेशन कमेटी का प्रमुख तो बनाया गया लेकिन कांग्रेस तेजस्वी के सीएम कैंडिडेट होने पर ग्रीन सिग्नल नहीं दे रही. वोटर अधिकार यात्रा के दौरान तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी को अगली बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए अपना पूरा समर्थन देने का ऐलान कर दिया लेकिन राहुल से जब तेजस्वी के सीएम कैंडिडेट होने को लेकर सवाल किया गया तो वह इसे टाल गए. इतना ही नहीं कांग्रेस के जो नेता तेजस्वी यादव के साथ महागठबंधन की बैठकों के बाद मीडिया से बातचीत के लिए मौजूद रहते हैं उन्होंने भी हर बार इस सवाल से कन्नी काटी है. कांग्रेस के नेता लगातार यह कहते रहे हैं कि सीएम कैंडिडेट कौन होगा यह जनता तय करेगी, हमारा पूरा फोकस चुनाव जीतने पर है. जाहिर है सीट बंटवारे पर अंतिम फैसला हुए बगैर कांग्रेस तेजस्वी के की घोषणा नहीं होने देना चाहती. तेजस्वी के नाम के ऐलान पर कांग्रेस के नकारात्मक रूप के सियासी कारण भी हो सकते हैं. बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार दिए थे. 5 साल बाद अब महागठबंधन की तस्वीर बदली हुई है. मुकेश सहनी की पार्टी VIP के अलावा पशुपति पारस की RLJP और हेमंत सोरेन की JMM को भी महागठबंधन में सीटें देनी हैं और इस वजह से आरजेडी के साथ-साथ कांग्रेस को भी अपनी सीटें कम करनी पड़ सकती हैं.

तेजस्वी की पार्टी उतरेगी कम सीटों पर
तेजस्वी यादव खुद कह चुके हैं कि उनकी पार्टी पहले से कम सीटों पर चुनाव मैदान में उतरेगी क्योंकि नए सहयोगी दलों को एडजस्ट करना है. कांग्रेस भी इस बात को भली भांति समझ रही है लेकिन सीट कम होने का सवाल पैदा होते ही कांग्रेस दांवपेंच में उतरती दिख रही. जानकार बता रहे हैं कि कांग्रेस 60 से कम सीटों पर तैयार नहीं है. अगर सीटों की संख्या 60 से कम होती है तो कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरू के बयान के मुताबिक कड़े मुकाबले वाली सीटों पर केवल कांग्रेस के उम्मीदवार ही नहीं बल्कि सहयोगी दलों के भी उम्मीदवारों को मैदान में किस्मत आजमाना चाहिए. एनडीए की मजबूत सीटों का बंटवारा सभी सहयोगी दलों के बीच करने की शर्त कांग्रेस ने रख दी है. बीते विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के अंदर 70 सीट लेने वाली कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था इसके बाद आरजेडी की तरफ से कांग्रेस की डिमांड को लेकर सवाल भी खड़े किए गए थे. तब आरजेडी के सीनियर नेताओं ने यहां तक कह दिया था कि कांग्रेस ने अपनी क्षमता से ज्यादा सीटें लीं हालांकि कांग्रेस के नेता इससे इत्तेफाक नहीं रखते. उनका तर्क है कि बीते विधानसभा चुनाव में 70 में से 22 ऐसी सीटें कांग्रेस को दी गई, जहां पिछले तीन चुनाव से एनडीए ही जीत हासिल करती रही थी. इस बार कांग्रेस से का फोकस केवल शहरी विधानसभा सीटों पर नहीं बल्कि ऐसी ग्रामीण सीटों पर भी है जहां उसका प्रदर्शन पहले से सुधार सके.

तेजस्वी खुद को बता रहे ओरिजिनल सीएम
तेजस्वी यादव खुद समझ रहे हैं कि 2025 का विधानसभा चुनाव उनके लिए कितना खास है. कांग्रेस ने भले ही तेजस्वी के नाम पर मुहर नहीं लगाई हो लेकिन अब तेजस्वी नीतीश कुमार को डुप्लीकेट और खुद को ओरिजिनल सीएम बताते हुए दावेदारी कर रहे हैं. वाम दलों को तेजस्वी के नाम पर कोई एतराज नहीं है. मुकेश सहनी भी तेजस्वी को सीएम कैंडिडेट बनाए जाने के पक्ष में है लेकिन सीट बंटवारे को लेकर फंसे पेंच ने तेजस्वी के नाम पर आधिकारिक घोषणा को रोक रखा है. मुकेश सहनी ने तो यहां तक कह दिया है कि तेजस्वी के सीएम कैंडिडेट के तौर पर नाम की घोषणा में देरी हुई तो इसका नुकसान महागठबंधन को उठाना पड़ सकता है. सहनी एक तरफ जहां तेजस्वी का नाम मुख्यमंत्री के लिए आगे कर रहे हैं तो वहीं खुद को डिप्टी सीएम का उम्मीदवार बता रहे हैं. महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर जो खींचतान चल रही है उसका नतीजा भी देखने को मिल रहा है. राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने भले ही एक साथ वोटर अधिकारी यात्रा की हो लेकिन अब तेजस्वी 16 सितंबर से बिहार अधिकार यात्रा पर अकेले निकल रहे हैं. तेजस्वी की बिहार अधिकार यात्रा उन 13 जिलों से होकर गुजरेगी जहां वे राहुल गांधी के साथ वाटर अधिकार यात्रा के दौरान नहीं जा पाए थे. खास बात यह है कि यह पूरी तरीके से आरजेडी की यात्रा होगी. तेजस्वी यादव ने अपनी पार्टी का दमखम दिखाने के लिए इस यात्रा में एक दिनों के अंदर दो-दो जिलों में कई जनसभाओं का कार्यक्रम तय रखा है. वोटर अधिकार यात्रा के जरिए कांग्रेस ने महागठबंधन में जिस तरह अपनी ताकत का एहसास कराया है संभव है कि तेजस्वी अब बिहार अधिकार यात्रा के जरिए यह मैसेज देना चाहें की बिहार में बड़े भाई की भूमिका आरजेडी की है और सबसे बड़ा जनाधार भी उन्हीं के पास है. हालांकि राहुल गांधी के बिहार दौरे के बाद कांग्रेस का उत्साह भी चरम पर है. कांग्रेस ने अब सिंगल प्लान के तहत अपने नए कैंपेन की रूपरेखा भी तय कर ली है.

क्या है "हर घर अधिकार"
कांग्रेस अब "हर घर अधिकार" अभियान की शुरुआत करने जा रही है. इस अभियान के तहत कांग्रेस के बड़े से लेकर छोटे नेता तक बिहार के मतदाताओं के घर तक जाएंगे. कांग्रेस का यह नया अभियान इसी हफ्ते शुरु होगा जिसका मकसद विधानसभा स्तर पर वोटर्स को कांग्रेस के साथ जोड़ना है. इस अभियान के जरिए कांग्रेस अपनी प्रस्तावित माई बहन सम्मान योजना के लिए हर विधानसभा क्षेत्र से कम से कम 50 हजार भरे हुए आवेदन पत्र लेगी. इस पूरे अभियान के जरिए कांग्रेस की नजर राज्य की महिला वोटर्स पर है. कांग्रेस ने महिला वोट बैंक को साधने के लिए अपने गठबन्धन की सरकार बनने पर हर महिला को 2500 रुपये हर महीने देने का वादा किया है. जय जय राजद और कांग्रेस का यह सिंगल प्लान एक तरफ जहां महागठबंधन में अपनी अपनी ताकत दिखाने का दाम है तो वहीं दूसरी तरफ सीट बंटवारे में अपने दावे को मजबूत करने का. फिलहाल दोनों गठबंधनों के अंदर जो हालात दिख रहे है वो यही संकेत देती है कि पर्दे के पीछे हो सामने प्रेशर पॉलिटिक्स का दौर अभी कई सियासी रंग दिखाएगा उसके बाद ही सीट शेयरिंग की तस्वीर साफ होगी.

-शशि भूषण कुमार की रिपोर्ट

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