कैलाश खेर उन गायकों में से हैं जो अपने संगीत और मधुर आवाज से आपकी आत्मा को छू लेते हैं. बॉलीवुड में अपनी शुरुआत करने के बाद, खेर ने 2003 की फिल्म 'वैसा भी होता है-II' में 'अल्लाह के बंदे हसदे' गीत देकर अपनी एक पहचान बनाई. कैलाश खेर ने अलग-अलग भाषाओं में 500 से अधिक गीतों को अपनी मधुर आवाज दी है.
लोक संगीत में महारत रखने वाले कैलाश खेर आज अपना 49वां जन्मदिन मना रहे हैं. उत्तर प्रदेश में मेरठ में जन्में कैलाश एक कश्मीरी परिवार से संबंध रखते हैं. उनके पिता पंडित थे और भजन संध्या आदि में गाते थे. कैलाश को संगीत विरासत में मिला लेकिन अपनी मंजिल पाने के लिए उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी.
14 की उम्र में छोड़ा घर
कैलाश ने 14 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था और दिल्ली चले गए. लग-अलग जगह काम किया ताकि कुछ पैसे कमा सकें. उन्होंने अपने रिश्तेदार के साथ बिजनेस भी ट्राई किया लेकिन उन्हें इसमें असफलता ही मिली. और तो और उनके काफी पैसे भी डूब गए. जिसके बाद वह डिप्रेशन का शिकार हो गए.
एक समय ऐसा आया कि उन्होंने अपनी जान तक देने की कोशिश की. लेकिन उनके एक दोस्त ने उन्हें बचा लिया. जिसके बाद उन्होंने संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़ने की ठानी.
साधु-संतो की मंडली में गाया
बताया जाता है कि कैलाश खेर हमेशा से लोक संगीत के मुरीद रहे और इसके लिए वह ऋषिकेश जाकर भी रहे. यहां पर वह साधु-संतो की मंडली में बैठकर गाया करते थे. कैलाश ने रोजी-रोटी कमाने के लिए बच्चों को संगीत सिखाया भी. तमाम दिक्कतों के बाद भी उन्होंने संगीत नहीं छोड़ा.
और आखिरकार वह मुंबई आ गए. यहां उन्होंने काम की तलाश में कई ठोकरें खाईं पर हार नहीं मानी. सबसे पहले उन्हें एड जिंगल्स में गाने का मौका मिला. और देखते ही देखते, उन्हें फिल्मों में गाने का मौका मिलने लगा. 'अल्लाह के बंदे' और 'रब्बा इश्क ना होवे' हाकर उन्होंने बॉलीवुड को अपना मुरीद बना लिया.
मिला है पद्म श्री
कैलाश खेर के सदाबहार गानों की बात करें तो इनमें 'तेरी दीवानी', 'सैंया', और 'या रब्बा' जैसे गाने शामिल हैं. भारतीय संगीत में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्म श्री से भी नवाजा गया है.