ये कहानी सिर्फ एक म्यूजियम की नहीं, एक आदमी की दीवानगी की है, जिसने अपने शौक को इतिहास की सड़क पर उतार दिया. हरियाणा के गुरुग्राम के पास बसी शांत-सी गलियों में खड़ा Heritage Transport Museum असल में तरुन ठकराल नाम के उस शख्स की कल्पना है, जिसने गाड़ियों से अपने प्यार को इतना बड़ा बना दिया कि वो एक सांस्कृतिक धरोहर बन गया.
हेरिटेज ट्रांसपोर्ट म्यूजियम-
ये जगह सिर्फ वाहनों की नुमाइश नहीं, बल्कि समय का पहिया है, जो आपको सदियों पीछे ले जाता है. साल 1994 में शुरू हुई एक निजी कलेक्शन, धीरे-धीरे सालों की मेहनत के बाद 2013 में एक ऐसे म्यूज़ियम में बदल गई, जहां पलकी से लेकर तीन पहिये वाली गाड़ी है. बैलगाड़ी से लेकर रॉल्स रॉयस तक और 1930 के रेलवे कोच से लेकर भारत की पहली इलेक्ट्रिक कार तक मौजूद है.
20वीं सदी की कारों का कलेक्शन-
भारत में म्यूजियम कल्चर बहुत कम है और ये वो जगह है, जहां इतिहास लोग पढ़ते नहीं है, महसूस करते हैं. यहां हर गैलरी कहानी कहती है, कभी राजा-महाराजाओं के शाही सफर की, कभी 20वीं सदी की उन कारों की, जिनका शोर अब सिर्फ यादों में है.
यहां आने वाले लोग सिर्फ गाड़ियां नहीं देखते, उस दौर का वक़्त, फैशन, फिल्में और समाज भी देख लेते हैं. एक पूरा सेक्शन बॉलीवुड को समर्पित है, जहां राम बलराम की 'बादल' से लेकर 'दिल तो पागल है' की लाल कार तक खड़ी हैं.
तरुण ठकराल ने बनाया है अनोखा म्यूजियम-
तरुन ठकराल सिर्फ कार प्रेमी नहीं, वो उस दौर के प्रेमी हैं, जिसमें ये कारें सांस लेती थीं. उनका म्यूजियम सिर्फ मशीनों का संग्रह नहीं, एक भावनात्मक यात्रा है. Heritage Transport Museum ये सिखाता है कि सफर सिर्फ दूरी नापने का तरीका नहीं, हमारी सभ्यता का आधार है और उसकी कहानी संजोने वाला ये म्यूज़ियम, एक आदमी के जुनून का सबसे खूबसूरत प्रमाण है.
(अभिषेक सिंह की रिपोर्ट)
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