जमशेदपुर के ये दिव्यांग बच्चे हाथों से बनाते हैं खूबसूरत दीये, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों में भी है मांग!

दुर्गा पूजा के बाद से हिंदू त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है. दुर्गा पूजा के बाद से लोग दीपावली और फिर छठ की तैयारियों में जुट जाते हैं. यहीं से खरीददारी शुरू होती है मिट्टी के दीयों की. भारत में ऐसी ही एक जगह है जमशेदपुर, जहां कुछ खास तरह के दीये हैं जिन्हें स्पेशल बच्चे बनाते हैं. इन बच्चों ने अपने हुनर और प्रतिभा से साबित कर दिया कि वो भी किसी आम बच्चों से कम नहीं हैं.

Jamsedpur special children making diya
gnttv.com
  • जमशेदपुर,
  • 22 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 2:05 PM IST
  • पांच रुपये से लेकर दो सौ रुपये है दीये की कीमत
  • विदेश भेजे जाते हैं दीये

दुर्गा पूजा के बाद से हिंदू त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है. भारत में सभी त्योहारों का अलग-अलग महत्व है साथ ही इसमें पूजा के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विशेष सामग्री भी कई तरह की होती है. दुर्गा पूजा के बाद से लोग दीपावली और फिर छठ की तैयारियों में जुट जाते हैं. यहीं से खरीददारी शुरू होती है मिट्टी के दीयों की. वैसे तो मार्केट में दीपावली पर रोशनी करने के लिए कई तरह की लाइटें और चाइनीज कैंडल उपलब्ध हैं, लेकिन मिट्टी के दीयों का अपना विशेष महत्व है.

भारत में ऐसी ही एक जगह है जमशेदपुर, जहां कुछ खास तरह के दीये हैं जिन्हें स्पेशल बच्चे बनाते हैं. इन बच्चों ने अपने हुनर और प्रतिभा से साबित कर दिया कि वो भी किसी आम बच्चों से कम नहीं हैं.

पांच रुपये से लेकर दो सौ रुपये है दीये की कीमत
यह बच्चे इस बार चीन के बने सामान का बहिष्कार करना चाहते हैं और लोगों से अपील करना चाहते हैं कि वो इस बार दीपावली पर मिट्टी के बने दीयों का ही इस्तेमाल करें. जमशेदपुर के सोनारी स्थित जीविका स्कूल, मानसिक रूप से विकलांग बच्चों को अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रोत्साहित करती है. इस बार ये लोग पिछले दो महीने से ऐसे बच्चों को मिट्टी के दीये बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं जो विशेष रूप से सक्षम हैं.

जीविका नामक संस्था मानसिक रूप से कमजोर बच्चों को उनके खुद के पैरों पर खड़ा होने की हिम्मत देती है. ये बच्चे दीयों में कलाकृतियां बनाकर उनमें अपने हाथों से रंग भरते हैं. यहां बनने वाले दीयों की कीमत पांच रुपये से लेकर दो सौ रुपए तक होती है. इनमें कछुआ दीया और कई रंग-बिरंगे दीये शामिल हैं.

लॉकडाउन में नहीं मिला बाजार
इन बच्चों द्वारा बनाए गए दीयों को अन्य स्कूलों में भी बेचा जाता था लेकिन कोरोना काल में स्कूल बंद होने के कारण इन्हें कोई बाजार नहीं मिला जिस वजह से  इन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. हालांकि हालत सुधरने के साथ इन दीयों की मांग में थोड़ी तेजी आई है और लोग खुद आकर इन्हें दियों का ऑर्डर देकर जा रहे हैं. यहां पर दीपावली के दीये के अलावा पेपर बैग, कपड़े के बैग, रोटी नैपकिन, शगुन बैग- जैसी कई अन्य चीजें भी स्पेशल बच्चों द्वारा बनाई जाती हैं. 

विदेश भेजे जाते हैं दीये
यहां के दीये समान्य रूप से बाजारों में नहीं मिलते हैं, जिन्हें दीया लेना होता है वो स्कूल आकर ले जाते हैं. कई लोग इसके लिए पहले से ही ऑर्डर देते हैं. यही नहीं इन दीयों की इतनी मांग है कि अभी से लोग दीये लेकर जाने लगे हैं.  बच्चों द्वारा बनाए गए इन दियों को नार्वे,ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका को भेजा जाता है. 

जमशेदपुर से अनूप सिन्हा की रिपोर्ट

 

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