सूखे ने बदली सोच! 12 गांव के लोगों ने मिलकर उगाया 3000 एकड़ में जंगल, 50 कुओं और 12 तालाबों में लौटा पानी

इन 12 गांवों के इलाकों में हरे-भरे जंगल बनने के बाद यहां से गायब हो चुके कीट और जंगली जानवर फिर से लौट आए हैं.

(सांकेतिक तस्वीर)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 02 जून 2025,
  • अपडेटेड 2:05 PM IST

कर्नाटक के दावनगेरे, शिमोगा और हनोली जिलों के 12 गांवों ने पूरे देश के लिए एक मिसाल पेश की है. इन गांवों में 1990 से 2000 के दशक के बीच सूखा पड़ा था. इससे सबक लेकर इन गांवों ने अपनी जीवनशैली ही बदल डाली। पेड़ों की कटाई पूरी तरह बंद कर दी गई और पर्यावरण की रक्षा को प्राथमिकता दी गई. 

गुड़ादमदापुरम गांव के किसान करीबसवप्पा कागिनेले की अगुवाई में 12 गांवों के करीब 4500 लोगों ने बंजर पहाड़ियों पर मिलकर एक करोड़ से ज्यादा पेड़ लगाए. इसका असर यह हुआ कि 3,000 एकड़ से ज्यादा इलाका हरा-भरा जंगल बन गया. इसके चलते 50 कुएं, 12 तालाब और कई झीलें दोबारा रिचार्ज हो गईं, और सैकड़ों सूखे पड़े बोरवेल्स में फिर पानी आ गया. 

जंगलों की रक्षा के लिए बनाई निगरानी टीम
इस अभियान को सफल बनाने के लिए गांववालों ने वन विभाग के सहयोग से सिद्धेश्वर विलेज फॉरेस्ट कमेटी बनाई. कमेटी ने एक निगरानी टीम बनाई जो जंगल की रक्षा करती है. अवैध शिकार या पेड़ काटने की घटनाओं पर जुर्माना लगाया जाता है और उससे जमा पैसा जंगल के विकास में खर्च होता है. जो लोग पहले पेड़ काटते थे, अब वे इन्हें बचाने लगे हैं. 

बताया जा रहा है कि अब गांवों के पास भरपूर पानी है और वे 12 स्थानों पर चेकडैम बनाकर जल संरक्षण को और बेहतर करने की योजना पर काम कर रहे हैं. साथ ही, खाली पड़ी जमीनों पर और पेड़ लगाने की योजना भी है. वन विभाग के अधिकारियों ने माना कि गांववालों ने जिन पेड़ों को लगाया, वे स्थानीय पर्यावरण के लिए सबसे उपयुक्त थे. पेड़ों की बढ़ने की रफ्तार औसत से कहीं ज्यादा रही. कई विलुप्त हो चुके पौधे भी फिर से बड़ी संख्या में उग आए, जिससे जंगल तेजी से तैयार हो गया.

प्राकृतिक जीवन की वापसी
इन 12 गांवों के इलाकों में हरे-भरे जंगल बनने के बाद यहां से गायब हो चुके कीट और जंगली जानवर फिर से लौट आए हैं. वन विभाग ने सिरसी के कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री से इस नए जंगल पर रिसर्च करने का अनुरोध किया है. 2004 में गांवों में एलपीजी सिलेंडर का उपयोग शुरू होने के बाद लोगों की लकड़ी पर निर्भरता खत्म हुई और पेड़ काटने पर पूरी तरह रोक लग सकी.

शिक्षा से आएगी जागरूकता
यहां के लोगों का कहना है कि अगर देश को 33% हरित क्षेत्र का लक्ष्य पाना है, तो बच्चों को पर्यावरण की शिक्षा देना जरूरी है. साथ ही, ग्रामीणों को जंगलों की अहमियत समझाना भी उतना ही जरूरी है. यह कहानी बताती है कि जब समुदाय एकजुट होकर काम करता है, तो पर्यावरण में सकारात्मक बदलाव लाना पूरी तरह संभव है. 

 

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