पर्यावरण बचाने की मुहिम में जब कला भी साथ खड़ी हो जाए, तो नतीजे और भी खास हो जाते हैं. अमरावती के मशहूर जिराफ बंधु, जो पिछले 50 सालों से अपनी कलात्मक प्रतिमाओं के लिए जाने जाते हैं, अब पूरी तरह पर्यावरण पूरक मूर्तियों के निर्माण में जुट गए हैं. पहले ये शिल्पकार Plaster of Paris से बड़ी-बड़ी मूर्तियां बनाते थे, लेकिन अब उन्होंने शपथ ली है कि जीवनभर प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां नहीं बनाएंगे.
क्या कहती है जिराफ बंधु की जोड़ी
जिराफ बंधु की नई पीढ़ी के कलाकार अतुल जिराफे कहते हैं कि हमारे पास देश-विदेश से प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों के ऑर्डर आते थे. लेकिन मैंने सोचा, पैसा कमाने से बड़ा पर्यावरण को बचाना है. इसलिए अब मैंने सिर्फ शालू मिट्टी से पर्यावरणपूरक मूर्तियां बनाने की शपथ ली है. शुरुआत मुझे ही करनी थी, ताकि समाज को सही संदेश जा सके.
'बप्पा की आंखों में डाली जान'
पिछले पांच दशकों से जिराफ बंधु की मूर्तियां अपनी सुंदरता और जीवंत अभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं. अब उनकी मिट्टी से बनी छोटी-छोटी प्रतिमाएं घरों में स्थापित करने योग्य हैं.
इन प्रतिमाओं को देखकर श्रद्धालु कहते हैं कि ऐसा लगता है जैसे बप्पा आंखों में आंखें डालकर हमसे बात कर रहे हों. इन मूर्तियों की लोकप्रियता अमरावती तक सीमित नहीं रही. अकोला, नागपुर, संभाजीनगर, पुणे जैसे शहरों के अलावा, अमेरिका और ब्रिटेन में बसे मराठी और हिंदू परिवार भी इन्हें ले जाते हैं.
महाराष्ट्र के बीड जिले के अंबाजोगाई से जवाहर जैन पिछले कई सालों से हर साल अमरावती आकर पंकज जिराफे से बप्पा की मूर्ति लेते हैं. उनका कहना है कि यहां की मूर्तियां इतनी जीवंत होती हैं कि लगता है जैसे बप्पा हमसे सचमुच संवाद कर रहे हों. इसी वजह से मैं 450 किलोमीटर दूर से हर साल यहां आता हूं.
-धनंजय साबले की रिपोर्ट