क्या आपको इस बात पर यकीन होगा कि किसी मरीज के टूटे हुई हड्डी की सर्जरी उसे पूरे होश हवास में किया गया होगा, जबकि इस दौरान मरीज पूरी प्रक्रिया को अपनी आंखों से देख रहा था. गोरखपुर एम्स के डॉक्टर ने ऐसी सर्जरी करके चिकित्सकीय जगत को एक नई दिशा दी है. जबकि आमतौर पर मरीज का इलाज बिना बेहोशी के संभव नहीं हो पाता है. एनेस्थीसिया के डॉक्टर जब मरीज को बेहोश करते है, तभी मरीज की सर्जरी होती है. ऐसे में कई बार एनेस्थीसिया के डॉक्टर के उपलब्ध ना होने पर मरीज का ऑपरेशन कई दिनों तक टालना पड़ता है.
जानकारी के मुताबिक गोरखपुर एम्स में एनेस्थीसिया विभाग में कुल 10 डॉक्टर है, जबकि ये संख्या बहुत कम है. ऐसे में संस्थान के पहले वर्ष के जूनियर रेज़िडेंट डॉ. नीरज ने चिकित्सकीय जगत को एक नई दिशा दिया है. इस उपलब्धि के लिए बेंगलुरु स्थित एम. एस. रामैया मेडिकल कॉलेज में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन एसटीएसीसी (Society of Trauma Anesthesia and Critical Care) में पोस्टर प्रस्तुति श्रेणी में उन्हें तीसरा पुरस्कार मिला है.
क्या है पूरा मामला-
दरअसल डॉक्टर नीरज के शोध का विषय था- 'सुपीरियर ट्रंक और सुपरफिशियल सर्वाइकल प्लेक्सस ब्लॉक का उपयोग- मोटापे से ग्रस्त उच्च जोखिम वाले मरीज में हंसली(क्लैविकल) के बाहरी हिस्से के फ्रैक्चर की सर्जरी में अकेले इसी तकनीक से बेहोशी देना.'
क्या है यह तकनीक?
आमतौर पर टूटी हड्डी की सर्जरी में मरीज को पूरी तरह बेहोश किया जाता है, जिससे मोटे या बीमार मरीजों में सांस या हृदय संबंधी जटिलताएँ हो सकती हैं.
इस नई तकनीक में डॉक्टरों ने नर्व ब्लॉक का उपयोग किया यानी केवल उस हिस्से की नसों को अस्थायी रूप से सुन्न कर दिया गया, जहाँ सर्जरी होनी थी. मरीज पूरी सर्जरी के दौरान जागा रहा, लेकिन उसे किसी प्रकार का दर्द महसूस नहीं हुआ. यह तरीका सुरक्षित, सस्ता और तेज़ रिकवरी देने वाला है.
डॉ. नीरज को मिल रही बधाइयां-
इस उपलब्धि पर एम्स गोरखपुर की कार्यकारी निदेशक मेजर जनरल डॉ. विभा दत्ता (सेवानिवृत्त) ने डॉ. नीरज को बधाई दी और कहा कि यह उपलब्धि संस्थान की अकादमिक उत्कृष्टता और युवा डॉक्टरों की शोध क्षमता को दर्शाती है.
एनेस्थीसिया विभाग के प्रमुख डॉ. संतोष कुमार शर्मा ने कहा कि यह सफलता दर्शाती है कि सुरक्षित और लक्षित एनेस्थीसिया तकनीकें अब गंभीर मरीजों के लिए भी संभव हैं. डॉ. नीरज ने जिस समर्पण और नवाचार से यह कार्य किया है, वह हम सबके लिए गर्व का विषय है.
ऐसे में एम्स गोरखपुर के डॉक्टरों की यह सफलता न सिर्फ चिकित्सा जगत के लिए, बल्कि आम मरीजों के लिए भी उम्मीद की किरण है, क्योंकि अब सर्जरी में 'बेहोशी' नहीं, बल्कि 'सुरक्षित जागरूक उपचार' संभव है.
(रवि गुप्ता की रिपोर्ट)
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