First Living Will Clinic: अपनी जिंदगी के आखिरी फैसले खुद लें! मुंबई में खुला देश का पहला लिविंग विल क्लिनिक

कई बार ऐसा होता है कि गंभीर बीमारी या दुर्घटना में परिवार को यह समझ नहीं आता कि मरीज क्या चाहता होगा. ऐसे में परिवार को भावनात्मक और मानसिक तनाव से गुजरना पड़ता है. लिविंग विल इस समस्या का हल है. यह न सिर्फ मरीज की इच्छाओं को स्पष्ट करता है, बल्कि परिवार को भी कठिन फैसले लेने से बचाता है.

लिविंग विल क्लिनिक
gnttv.com
  • मुंबई ,
  • 03 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 1:23 PM IST

क्या आपने कभी सोचा कि अगर आप बीमार पड़ जाएं और बोलने की हालत में न हों, तो आपके इलाज का फैसला कौन करेगा? अब इस सवाल का जवाब मिल गया है! मुंबई के पीडी हिंदुजा अस्पताल ने देश का पहला लिविंग विल क्लिनिक शुरू किया है, जो आपको यह तय करने की ताकत देता है कि आपकी जिंदगी के आखिरी पलों में आपके इलाज का फैसला आपकी मर्जी से हो. यह अनोखी पहल उन लोगों के लिए है जो चाहते हैं कि उनकी स्वास्थ्य संबंधी इच्छाएं सम्मानित हों, चाहे वह स्वस्थ हों या किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हों. 

लिविंग विल क्या है?
लिविंग विल एक ऐसा कानूनी दस्तावेज है, जिसमें आप पहले से तय कर सकते हैं कि अगर आप गंभीर बीमारी या दुर्घटना की वजह से फैसले लेने में असमर्थ हो जाएं, तो आपके इलाज का तरीका क्या हो. मिसाल के तौर पर, अगर आप नहीं चाहते कि आपको लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा जाए, तो यह आपकी लिविंग विल में लिखा जा सकता है. पीडी हिंदुजा अस्पताल का यह लिविंग विल क्लिनिक आपको यह दस्तावेज तैयार करने में मदद करता है, ताकि आपकी इच्छा का सम्मान हो और आपके परिवार को मुश्किल फैसले न लेने पड़ें.

देश का पहला लिविंग विल क्लिनिक
मुंबई के माहिम में स्थित पीडी हिंदुजा अस्पताल और चिकित्सा अनुसंधान केंद्र ने हाल ही में इस अनोखे क्लिनिक की शुरुआत की. यह देश में अपनी तरह की पहली पहल है. अस्पताल का कहना है कि यह क्लिनिक 18 साल से ऊपर के किसी भी व्यक्ति के लिए है, चाहे वह स्वस्थ हो या गंभीर बीमारी से जूझ रहा हो. डॉ. स्मृति खन्ना, जो हिंदुजा अस्पताल में पैलिएटिव मेडिसिन की सलाहकार हैं, ने बताया, “लिविंग विल हर उस व्यक्ति के लिए है जो अपनी जिंदगी के आखिरी फैसले खुद लेना चाहता है. यह दस्तावेज कभी भी बदला या रद्द भी किया जा सकता है.” यानी, अगर आपकी सोच बदलती है, तो आप इसे अपडेट कर सकते हैं.

क्यों जरूरी है लिविंग विल?
कई बार ऐसा होता है कि गंभीर बीमारी या दुर्घटना में परिवार को यह समझ नहीं आता कि मरीज क्या चाहता होगा. ऐसे में परिवार को भावनात्मक और मानसिक तनाव से गुजरना पड़ता है. लिविंग विल इस समस्या का हल है. यह न सिर्फ मरीज की इच्छाओं को स्पष्ट करता है, बल्कि परिवार को भी कठिन फैसले लेने से बचाता है. सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में लिविंग विल को कानूनी मान्यता दी थी. इसके तहत आपको कम से कम दो लोगों को नामित करना होता है- एक परिवार का सदस्य और एक भरोसेमंद दोस्त या सहकर्मी- जो आपकी ओर से फैसले ले सकें.

क्यों है यह पहल खास?
यह क्लिनिक उन लोगों के लिए वरदान है जो अपनी जिंदगी के आखिरी पलों को अपनी शर्तों पर जीना चाहते हैं. डॉ. स्मृति खन्ना ने कहा, “यह क्लिनिक लोगों को सशक्त बनाता है. चाहे आप स्वस्थ हों या पुरानी बीमारी से जूझ रहे हों, आप तय कर सकते हैं कि आपका इलाज कैसा हो.” यह पहल न सिर्फ मरीजों, बल्कि उनके परिवारों को भी मानसिक शांति देती है. मिसाल के तौर पर, अगर कोई नहीं चाहता कि उसे लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रखा जाए, तो वह इसे अपनी लिविंग विल में लिख सकता है.

गौरतलब है कि भारत में लिविंग विल की अवधारणा अभी नई है, लेकिन हिंदुजा अस्पताल की यह पहल इसे आम लोगों तक ले जा रही है. यह न सिर्फ स्वास्थ्य देखभाल में पारदर्शिता लाता है, बल्कि लोगों को अपनी जिंदगी के सबसे नाजुक पलों में भी नियंत्रण देता है. सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले ने इसे कानूनी तौर पर मान्यता दी, और अब हिंदुजा जैसे अस्पताल इस दिशा में बड़ा कदम उठा रहे हैं.

(धर्मेंद्र दुबे की रिपोर्ट)

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