कोरोना को लेकर हुई नई स्टडी में सामने आया चौंकाने वाला खुलासा, जानिए

कोरोना को लेकर आए दिन नए रिसर्च किए जा रहे हैं, और ये रिसर्च कई तरह के खुलासे कर रहे हैं ऐसा ही एक ताज़ा रिसर्च हुआ जिसमें कुछ चौंकाने वाले रिजल्ट सामने आए.

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gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 28 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 10:37 AM IST

आजकल सबका ध्यान कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने में केंद्रित है, लेकिन एंटीबॉडी को लेकर हुए एक नए अध्ययन से अब ये पता चला है कि कोरोना वायरस  इंटरफेरॉन नामक एंटीवायरल प्रोटीन से भी खत्म नहीं होता है यानी कोरोना के खिलाफ ये प्रोटीन एंटीबॉडी नहीं बना पाता है. 

कोलोराडो विश्वविद्यालय के Anschutz मेडिकल कैंपस के शोधकर्ताओं ने 17 अलग-अलग मानव इंटरफेरॉन को देखा और पाया कि पैतृक एंटीबॉडी के मुकाबले दूसरी पीढ़ी के इंटरफेरॉन एंटीबॉडी में बढ़ोत्तरी नहीं हुई . जैसे  कोरोना का ओमिक्रॉन वैरिएंट 

बता दें कि इंटरफेरॉन जन्मजात इम्यून सिस्टम में पाए जाने वाले एक तरह के अणु होते हैं ये अणु सक्रमंण के कुछ मिनटों बाद ही अंदरूनी कोशिकाओं में एंटीवायरल प्रतिक्रियाओं का प्रोसेस शुरू कर देते हैं. इसके जवाब में इम्यूनिटी सिस्टम एंटीबॉडी और टी कोशिकाओं को हमारे शरीर में पैदा करती है. 

इंटरफेरॉन को आप आसान भाषा में इस तरह समझ सकते हैं कि जब एक वायरल संक्रमण इंसानी शरीर पर हमला करता है तब कोशिकाएं इसके जवाब में इंटरफेरॉन (आईएफएन) नामक एक एंटीवायरल प्रोटीन का उत्पादन करती हैं. इंटरफेरॉन संक्रमित और मरने वाले मेजबान सेल से जारी किया जाता है. पास की असंक्रमित कोशिकाओं तक पहुँचने पर, यह उन्हें वायरस के संक्रमण के लिए प्रतिरोधी बना देता है. 

इस रिसर्च में खास बात ये सामने आई है कि, वायरस के बाद के वेरिएंट ने अपने [इंटरफेरॉन] एंटीवायरल प्रभावों के लिए महत्वपूर्ण प्रतिरोध विकसित किया है. उदाहरण के लिए, महामारी के शुरुआती दिनों के दौरान ओमिक्रॉन वैरिएंट को काबू में करने के लिए बहुत ज्यादा मात्रा में  इंटरफेरॉन की जरूरत पड़ी थी.  

अब नए रिसर्च के मुताबिक सामने आई बात से यह कहा जा सकता है कि  वायरस से पैदा हुए नए वेरिएंट की बढ़ी हुई ट्रांसमिसिबिलिटी और भी  गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं. 

 

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