Rare Disease SMA: 16 महीने की अश्मिका को बचाने के लिए साथ आए अनजान लोग, क्राउड फंडिंग से जुटाए 9 करोड़ रुपये

बुधवार को कोलकाता के पियरलेस अस्पताल में डॉ. संजुक्ता डे की निगरानी में आश्मिका को दुनिया की सबसे महंगी जीन थेरेपी ज़ोलगेन्स्मा का इंजेक्शन दिया गया.

Ashmika Das
gnttv.com
  • कोलकाता,
  • 19 जून 2025,
  • अपडेटेड 8:11 AM IST

पश्चिम बंगाल में रणाघाट में रहने वाली 16 महीने की आश्मिका दास एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (SMA) से पीड़ित है. बच्ची का जान बचाने के लिए जीन थेरेपी ज़ोलगेन्स्मा (Zolgensma) का इंजेक्शन देना जरूरी था. लेकिन इस इंजेक्शन की कीमत है 16 करोड़ रुपये और अश्मिका के माता-पिता के लिए यह रकम जुटाना मुश्किल था. हालांकि, अब अश्मिका को यह इंजेक्शन दे दिया गया है. यह सब संभव हो पाया क्राउड फंडिंग की मदद से. 

बुधवार को कोलकाता के पियरलेस अस्पताल में डॉ. संजुक्ता डे की निगरानी में आश्मिका को दुनिया की सबसे महंगी जीन थेरेपी ज़ोलगेन्स्मा का इंजेक्शन दिया गया. डॉ. संजुक्ता डे ने बताया, “अगर माता-पिता के बीच आनुवंशिक समस्या होती है, तो बच्चे के शरीर में SMA प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में नहीं बनता, जिससे मांसपेशियां और नसें कमजोर होने लगती हैं. आश्मिका को SMA टाइप-1 है, जो बहुत जल्दी बढ़ने वाली और गंभीर किस्म की होती है.”

दो साल की उम्र से पहले दें इंजेक्शन

यह इंजेक्शन बच्चे के 2 साल के होने से पहले देना जरूरी होता है. हालांकि आश्मिका को यह 17 महीने की उम्र में दिया गया, फिर भी डॉ. डे का कहना है, “परिणाम पहले से बेहतर होंगे, लेकिन बीमारी के कुछ प्रभाव रह सकते हैं. पहले आश्मिका ठीक से बैठ नहीं पाती थी, खाना निगलने में दिक्कत होती थी और हाथ कांपते थे. हमें उम्मीद है कि अब वह काफी हद तक ठीक हो जाएगी.”

आश्मिका के पिता, शुभंकर दास प्राइवेट सेक्टर में काम करते हैं. उन्होंने भावुक होकर कहा कि उनके लिए जो असंभव था उसे लोगों ने मिलकर संभव कर दिखाया. शुरुआत में इस बीमारी को लेकर जागरूकता नहीं थी, लेकिन धीरे-धीरे जानकारी फैलती गई और हम ज़रूरी फंड इकट्ठा कर पाए. अब वह चाहते हैं कि उनकी बेटी बड़ी होकर दूसरों के लिए लड़े और इंसानियत की सेवा करे. 

आपको बता दें कि क्राउड फंडिंग के जरिए सात महीनों में नौ करोड़ रुपये इकट्ठे किए. हालांकि, इंजेक्शन की कीमत 16 करोड़ रुपये है लेकिन जब नौ करोड़ रुपये का फंड इकट्ठा हो गया था, तब दवा निर्माता कंपनी की दया नीति (Compassionate Policy) के तहत अर्ली एक्सेस प्रोग्राम (EAR) के ज़रिए उपलब्ध कराई गई. 

और भी बच्चे हैं पीड़ित

लेकिन आश्मिका की कहानी ये भी दिखाती है कि बंगाल में और भी बच्चे इस गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं. सोनारपुर की हृदिका भी SMA से पीड़ित है. उसकी मां हैमंती दास ने मुख्यमंत्री से मदद की गुहार लगाते हुए कहा, “हम जैसे सामान्य परिवार के लिए ₹9 करोड़ का इंतजाम करना मुमकिन नहीं है. मैं सरकार और समाज से अपील करती हूं कि वे मेरी बेटी के लिए भी वैसे ही खड़े हों जैसे आश्मिका के लिए हुए.”

डॉ. डे ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जागरूकता प्रोग्राम्स की सख्त जरूरत है. उन्होंने कहा कि इतनी महंगी दवा हर किसी को देना संभव नहीं है. इसलिए उनकी सरकार से अपील है कि माता-पिता में आनुवंशिक समस्याओं की पहचान के लिए कार्यक्रम शुरू किए जाएं ताकि SMA और थैलेसीमिया जैसी बीमारियों को रोका जा सके. 

बढ़ रही है जागरूकता 

फंड जुटाने में मदद करने वाले एक स्वैच्छिक संगठन के प्रतिनिधि ने बताया, “आश्मिका की कहानी से SMA को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी है और हम कम से कम 10 और बच्चों के बारे में जानते हैं जो इस बीमारी से जूझ रहे हैं.”

आश्मिका की कहानी इस बात का सबूत है कि जब लोग साथ आते हैं, तो असंभव भी संभव हो जाता है. जैसे-जैसे आश्मिका अब स्वस्थ होने की दिशा में आगे बढ़ रही है, उसकी कहानी हम सबको यह याद दिलाती है कि हमें ज़रूरतमंदों का साथ देना चाहिए और दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए.

(अनिर्बान सिन्हा रॉय की रिपोर्ट)

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