क्या Diabetes सिर्फ शुगर इनटेक, मोटापा या जेनेटिक वजहों से होता है? IIT बॉम्बे की रिसर्च में आई कुछ और बात सामने

डायबिटीज की शुरुआत पैंक्रियाज से होती है, जहां इंसुलिन और एमिलिन (Amylin) नाम का एक और हार्मोन बनता है. इंसुलिन तो सब जानते हैं, लेकिन एमिलिन का रोल भी अहम होता है- ये भोजन के बाद ब्लड शुगर को रेगुलेट करता है. पर जब शरीर डायबिटिक हो जाता है, तो इंसुलिन के साथ-साथ एमिलिन भी जरूरत से ज्यादा बनने लगता है.

डायबिटीज के कारण
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 02 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 12:17 PM IST

आपको ये जानकर झटका लग सकता है कि शरीर का सबसे जरूरी माने जाने वाला एक ‘बिल्डिंग ब्लॉक’ ही डायबिटीज बीमारी को और गहराने में मदद कर रहा है. हम बात कर रहे हैं कोलेजन की. वही प्रोटीन जो आपकी स्किन को जवां रखने से लेकर हड्डियों को मजबूत बनाने तक का काम करता है. एक नई रिसर्च बताती है कि यही कोलेजन, चुपचाप टाइप-2 डायबिटीज का दुश्मन बनता जा रहा है.

भारत के प्रतिष्ठित संस्थान IIT बॉम्बे के वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक रिसर्च की है जो 'Journal of the American Chemical Society' में प्रकाशित हुई है. इसमें उन्होंने पहली बार यह दिखाया है कि कोलेजन और डायबिटीज के बीच एक गहरा और खतरनाक रिश्ता हो सकता है.

रिसर्च के मुताबिक, कोलेजन टाइप-I, जो कि स्किन, हड्डियों और टिशू में पाया जाता है, टाइप-2 डायबिटीज में एक छिपे हुए विलेन की भूमिका निभा सकता है.

पैंक्रियाज में चल रही लड़ाई 
डायबिटीज की शुरुआत पैंक्रियाज (अग्नाशय) से होती है, जहां इंसुलिन और एमिलिन (Amylin) नाम का एक और हार्मोन बनता है. इंसुलिन तो सब जानते हैं, लेकिन एमिलिन का रोल भी अहम होता है- ये भोजन के बाद ब्लड शुगर को रेगुलेट करता है. पर जब शरीर डायबिटिक हो जाता है, तो इंसुलिन के साथ-साथ एमिलिन भी जरूरत से ज्यादा बनने लगता है. और यहीं से शुरू होती है असली परेशानी.

ज्यादा मात्रा में बना एमिलिन, गलत तरह से फोल्ड होकर क्लंप्स (गांठें) बना लेता है. ये गांठें पैंक्रियाज की बीटा सेल्स (β-cells) पर हमला करती हैं- उन्हीं सेल्स पर, जो इंसुलिन बनाती हैं. मतलब, ये हार्मोन ही अपनी फैक्ट्री को तबाह कर देता है!

अब तक वैज्ञानिक समझ नहीं पा रहे थे कि ये एमिलिन इतना तेजी से गांठें क्यों बना रहा है? लेकिन अब IIT बॉम्बे की रिसर्च ने इसका जवाब दे दिया है- कोलेजन की वजह से!

कोलेजन भी बन गया दुश्मन!
रिसर्चर्स ने पाया कि एमिलिन, कोलेजन की सतह से चिपककर तेजी से क्लंप्स बनाता है. ये क्लंप्स बेहद स्टेबल होते हैं और शरीर की सफाई प्रणाली उन्हें हटाने में असमर्थ हो जाती है.

IIT बॉम्बे की टीम ने ये निष्कर्ष एटॉमिक फोर्स माइक्रोस्कोपी, सरफेस प्लास्मॉन रेजोनेंस और NMR स्पेक्ट्रोस्कोपी जैसी एडवांस तकनीकों से निकाले हैं.

वैज्ञानिकों ने डायबिटिक चूहों और इंसानों के पैंक्रियाज़ के टिश्यूज (tissues) की स्टडी की और पाया कि जैसे-जैसे डायबिटीज बढ़ती है, वैसे-वैसे कोलेजन और एमिलिन दोनों की मात्रा बढ़ती है, और पैंक्रियाज के सेल्स का स्ट्रक्चर बुरी तरह बिगड़ने लगता है.

एक्सपेरिमेंट्स में देखा गया कि कोलेजन और अमिलिन के कॉम्बिनेशन से बीटा सेल्स में:

  • ज्यादा ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस हुआ
  • ज्यादा सेल डेथ हुई
  • इंसुलिन का प्रोडक्शन और भी कम हो गया

क्यों नहीं काम कर रही पुरानी दवाएं?
शायद यही वजह है कि आज की कई डायबिटीज की दवाएं, जो केवल सेल के अंदर की प्रक्रियाओं पर फोकस करती हैं, पूरी तरह से असर नहीं दिखा पा रहीं. क्योंकि अब लगता है कि बाहरी वातावरण- यानि extracellular matrix, जिसमें कोलेजन भी शामिल है वो भी इस बीमारी के बढ़ने में भूमिका निभा रहा है.

सवाल है कि क्या हमें अब कोलेजन सप्लिमेंट्स लेने से डरना चाहिए? इसका जवाब है- नहीं, अभी नहीं. रिसर्च अभी शुरुआती चरण में है, और इसका मतलब ये नहीं है कि कोलेजन सप्लीमेंट डायबिटीज बढ़ाते ही हैं. लेकिन हां, ये जरूर कह सकते हैं कि जो चीज़ें अब तक हेल्दी मानी जाती थीं, उनमें भी कोई छुपा हुआ रिस्क फैक्टर हो सकता है.


 

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