ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने पार्किंसन बीमारी को लेकर एक बड़ी खोज की है. अब तक माना जाता था कि पार्किंसन दिमाग में खराब प्रोटीन (α synuclein) जमा होने और नर्व सेल्स के मरने से होता है. लेकिन Neuroscience Research Australia की नई स्टडी से पता चला है कि बीमारी का असर सिर्फ नर्व सेल्स पर नहीं, बल्कि दिमाग की नसों (cerebrovasculature) पर भी गहरा पड़ता है.
दिमाग की नसों में बढ़ रहे स्ट्रिंग वेसल
स्टडी में सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि पार्किंसन मरीजों के दिमाग में स्ट्रिंग वेसल तेजी से बढ़ते पाए गए हैं. ये ऐसी सूक्ष्म नसें होती हैं जो अब खून बहाने की क्षमता खो चुकी हैं यानी ये सिर्फ सूखी, बेकार बची हुई नसें हैं.
वैज्ञानिकों ने बताया कि यह स्थिति दिमाग में खून के बहाव को धीमा कर देती है और उन हिस्सों तक ऑक्सीजन व पोषण पहुंचने में दिक्कत होती है, जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है. इससे दिमाग के कई हिस्से धीरे-धीरे साइलेंट तरीके से डैमेज होने लगते हैं.
ब्लड-ब्रेन बैरियर भी हो रहा कमजोर
रिसर्च में पता चला कि पार्किंसन सिर्फ नसों को सुखा नहीं रहा, बल्कि blood-brain barrier (BBB) को भी कमजोर कर रहा है. BBB वह सेफ्टी वॉल है जो दिमाग को हानिकारक तत्वों, बैक्टीरिया और टॉक्सिन्स से बचाती है. इसके कमजोर होने का मतलब है कि दिमाग बाहरी खतरों के लिए ज्यादा संवेदनशील हो जाता है.
डोपामाइन के बजाय अब खून की नलियों को टार्गेट करने की तैयारी
यह रिसर्च यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स और यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के साथ मिलकर की गई है और जर्नल Brain में प्रकाशित हुई है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह खोज पार्किंसन के इलाज की दिशा बदल सकती है. अब तक इलाज सिर्फ डोपामाइन बढ़ाने या प्रोटीन जमने को रोकने पर फोकस करता था. लेकिन अब माना जा रहा है कि अगर इन खराब होती खून की नलियों को ठीक किया जाए तो बीमारी की रफ्तार को धीमा किया जा सकता है.
क्या ये बदलाव अल्जाइमर और डिमेंशिया में भी होते हैं?
रिसर्चर्स अब यह भी जांच रहे हैं कि क्या इसी तरह के वेस्कुलर बदलाव अल्जाइमर और डिमेंशिया विद लेवी बॉडीज जैसी बीमारियों में भी दिखाई देते हैं. अगर ऐसा है, तो भविष्य में इन बीमारियों के लिए एक पूरी नई तरह की दवाएं विकसित की जा सकती हैं.