जानिए क्या होता है Spoan Syndrome... जिसके कारण इस गांव के बहुत से बच्चे हैं दिव्यांग... कजिन्स से जुड़ी है वजह

जब सिल्वाना सैंटोस पहली बार सेर्रिन्हा डॉस पिंटोस आईं, तो उन्होंने कहा कि यह "एक अलग दुनिया" जैसी थी. जैसे-जैसे वह स्थानीय लोगों से बात करती गईं, वह हैरान थीं कि यहां रिश्तेदारों के बीच शादी करना कितना सामान्य था.

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gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 14 मई 2025,
  • अपडेटेड 1:48 PM IST

ब्राज़ील के उत्तर-पूर्व में स्थित एक छोटे से गांव, सेर्रिन्हा डॉस पिंटोस में परिवारों ने देखा कि उनके बच्चे साल दर साल धीरे-धीरे चलने की क्षमता खोने लगे हैं. और कोई नहीं जानता था क्यों. फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां बच्चे बचपन में सामान्य रहते थे लेकिन जैसे ही किशोरावस्था में पहुंचते तो उनके पैर कमजोर होने लगते. कुछ बच्चे तो अपने हाथ भी ठीक से हिला नहीं पाते थे. 

यहां लोगों को नहीं पता था कि ऐसा क्यों हो रहा है. पीढ़ी दर पीढ़ी, यही पैटर्न दोहराया जा रहा था, और चिंता बढ़ती जा रही थी कि कुछ गलत हो रहा है. और फिर एंट्री हुई 
सिल्वाना सैंटोस की. सिल्वाना सैंटोस एक जीवविज्ञानी (Biologist) और आनुवंशिकीविद् (Geneticist) हैं. वह 20 साल पहले इस गांव में आईं और धीरे-धीरे उन्होंने रिसर्च की. उन्होंने DNA सैंपल्स लिए और दर्जनों परिवारों के साथ बातचीत की और आखिरकार पता चला कि इस गांव में लोगों को Spoan syndrome है. 

क्या होता है Spoan syndrome
यह बीमारी आनुवंशिक उत्परिवर्तन (genetic mutation) के कारण होती है, जो धीरे-धीरे नर्वस सिस्टम को प्रभावित करती है, शरीर को समय के साथ कमजोर करती है, और ज्यादातर मामलों में, व्यक्ति 50 की उम्र के आसपास आते-आते पूरी तरह से निर्भर हो जाता है. 

सैंटोस की यह रिसर्च मील का पत्थर साबित हुई. यह पहली बार था जब इस बीमारी की पहचान कहीं भी दुनिया में की गई थी. और सेर्रिन्हा डॉस पिंटोस के लोगों को एक नई राह मिली. इसके बाद उन्हें मदद मिलनी शुरू हई. उनके लिए फंडिंग जुटाई गई, व्हीलचेयर्स लायी गईं.  

इस ब्राज़ीली गांव में क्यों हुई यह बीमारी 
फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, जब सिल्वाना सैंटोस पहली बार सेर्रिन्हा डॉस पिंटोस आईं, तो उन्होंने कहा कि यह "एक अलग दुनिया" जैसी थी. जैसे-जैसे वह स्थानीय लोगों से बात करती गईं, वह हैरान थीं कि यहां रिश्तेदारों के बीच शादी करना कितना सामान्य था. 5000 से ज्यादा जनसंख्या वाला यह गांव पीढ़ियों से काफी अलग-थलग रहा है, जिसमें बाहर के लोगों से बहुत कम संपर्क हुआ है. इस कारण कजिन्स के बीच शादी करना यहां आम है. 

सिल्वाना सैंटोस द्वारा 2010 में किए गए एक अध्ययन में पता चला कि सेर्रिन्हा के 30 प्रतिशत कपल बल्ड रिलेटेड थे. और इन कपल्स में से एक-तिहाई ऐसे थे, जिनका  कम से कम एक बच्चा किसी दिव्यांगता के साथ जी रहा था. हालांकि, कजिन्स के बीच पैदा होने वाले ज्यादातर बच्चे पूरी तरह से स्वस्थ होते हैं, लेकिन आनुवंशिक विशेषज्ञ बताते हैं कि जब दोनों माता-पिता का DNA समान होता है, तो दुर्लभ आनुवंशिक विकारों का बच्चे में आने का जोखिम लगभग दोगुना हो जाता है. 

अगर कपल अलग-अलग बल्डलाइन से संबंध रखते हैं, तो बच्चे में दुर्लभ आनुवंशिक विकार होने की संभावना लगभग 2-3 प्रतिशत होती है. लेकिन कजिन्स के लिए, यह जोखिम हर प्रेग्नेंसी में 5-6 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. 

दूसरे देशों में भी होती हैं कजिन्स मैरिज 
ग्लोबल लेवल पर बात करें तो रिपोर्टस के मुताबिक, कजिन्स के बीच लगभग 10% शादियां होती हैं.  लेकिन यह संख्या देशों के हिसाब से बहुत अलग-अलग होती है. पाकिस्तान जैसे देशों में यह 50 प्रतिशत से ज्यादा है, जबकि अमेरिका और रूस जैसे देशों में यह 1 प्रतिशत से भी कम है. ब्राज़ील में यह 1-4 प्रतिशत के बीच है. 

वहीं, अगर भारत की बात करें तो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के अनुसार, भारत में 11% शादियां रक्त संबंधियों के बीच होती हैं. ऐसी शादियां विशेष रूप से दक्षिणी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों जैसे तमिलनाडु, पुडुचेरी, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में बहुत अधिक हैं, जहां इनका प्रचलन 28% तक है। इसका मतलब यह है कि इन राज्यों में लगभग हर चार में से एक महिला ने अपने किसी रक्त संबंधी, जैसे पहले या दूसरे कजिन से शादी की है. अनुमानों के अनुसार, भारत में दुर्लभ बीमारियों के लिए स्थापित "सेंटर ऑफ एक्सीलेंस" में आने वाले 40%–50% मरीजों के परिवारों में रक्त संबंधी विवाह का इतिहास पाया गया है. 

क्या इसका इलाज है?
स्पोअन का अभी तक कोई इलाज नहीं है. लेकिन यह रिसर्च लोगों में जागरूकता बढ़ाती है. इस रिसर्च का उद्देश्य कजिन मैरिज पर सवाल उठाना या रोकना नहीं है बल्कि लोगों को जागरूक करना है ताकि वे सही फैसला करें. 

 

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