ज़िन्दगी का सफर सुहाना हो इसके लिए सावधान रहना जरूरी है. रोज़मर्रा की आपा धापी में कुछ देर बैठकर सोचना-समझना भी जरूरी है कि आपके आसपास क्या हो रहा है और जो कुछ हो रहा है उससे हमारी ज़िन्दगी हमारा परिवार कैसे प्रभावित हो सकता है? जैसे आजकल प्लास्टिक का इस्तेमाल हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके अंदर छुपा एक केमिकल हमारी सेहत के लिए जानलेवा हो सकता है?
प्लास्टिक में थैलेट केमिकल्स का खतरा
हाल ही में आई एक रिपोर्ट में ये चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि प्लास्टिक में इस्तेमाल होने वाला एक खास केमिकल दुनिया भर में दिल की बीमारियों से होने वाली 13 फीसदी मौतों के लिए जिम्मेदार है. ऐसे में जरूरी है कि प्लास्टिक के इस्तेमाल से होने वाले गंभीर खतरे को लेकर खुद भी सतर्क हो जाए और दूसरों को भी सावधान करने के लिए. प्लास्टिक से बने प्रॉडक्ट इस्तेमाल करते हुए हम आमतौर पर नहीं सोचते हैं कि ये सेहत के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है.
थैलेट केमिकल्स और दिल की बीमारियां
द लैंसेट इ बायोमेडिसिन जर्नल में पब्लिश एक स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. प्लास्टिक के इन सामानों में खास केमिकल का इस्तेमाल होता है. नाम है थैलेट, इसे एवेरीवेयर केमिकल के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ये लगभग हर प्लास्टिक की चीज़ में मौजूद होता है. स्टडी के मुताबिक इस केमिकल का कनेक्शन हार्ट डिजीज से होने वाली मौतों से जुड़ा है.
द लैंसेट की बहुत ही जरूरी स्टडी पब्लिश हुई है. जिसमें पता चला कि डीईएचपी एक थैलेट केमिकल है जो कि प्लास्टिक को सॉफ्ट करने के लिए यूज़ किया जाता है. स्टडी के मुताबिक इस केमिकल के संपर्क में आने से 2018 में 55 से 64 साल के लगभग 3.5 लाख लोगों की मौत हुई. ये सभी मौतें दिल की बीमारियों से जुड़ी थी.
इनमें से 1.3 हजार से ज्यादा मौतें अकेले भारत में दर्ज की गईं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है. चीन और इंडोनेशिया जैसे बड़े प्लास्टिक उत्पादक देशों में भी इसके कारण हजारों मौतें हुईं. यह स्टडी न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स द्वारा दुनिया के 200 देशों में की गई है। स्टडी बताती है कि प्लास्टिक में मौजूद ये केमिकल हमारी सेहत के लिए गंभीर खतरा है और इस पर ध्यान देना बहुत जरूरी है.
थैलेट केमिकल्स से बचने के उपाय
DEHP या थैलेट एक तरह का केमिकल है. इसका इस्तेमाल प्लास्टिक को मुलायम बनाने के लिए किया जाता है. इसे प्लास्टिसाइजर भी कहा जाता है. ये पर्यावरण के लगभग सभी हिस्सों में मौजूद है. इंडस्ट्रियल इलाकों में इसकी मात्रा ज्यादा होती है. आम लोग और कारखानों में काम करने वाले दोनों ही इसके संपर्क में आ सकते हैं. पॉलीविनाइल क्लोराइड प्लास्टिक से yvrचीजों में इसका इस्तेमाल ज्यादा होता है.
थैलेट केमिकल्स के स्वास्थ्य पर प्रभाव
यह केमिकल एक इम्युन रिएक्शन उत्पन्न करता है. इस केमिकल की वजह से हार्ट के ब्लॉकेज के रिस्क बढ़ जाते हैं. इससे कैंसर भी हो सकता है. यह केमिकल भोजन, पानी, स्किन के संपर्क और हवा में सांस लेने के माध्यम से शरीर में जा सकता है, जैसे प्लास्टिक फुड कंटेनर में गर्म खाना पैक करने और इसे माइक्रोवेव में गर्म करने से यह अंदर जा सकता है. साथ ही, इसके छोटे कण हवा में मौजूद रहते हैं जो सांस के जरिये शरीर में प्रवेश कर सकते हैं. यह शरीर में हार्मोनल असंतुलन का कारण बन सकता है. लंबे समय तक इसके संपर्क में रहने से शरीर में इन्फ्लमेशन बढ़ सकता है. साथ ही, ये केमिकल शरीर में चर्बी को ठीक से पचने नहीं देते. इससे मोटापा, डायबिटीज़ और दूसरी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं.
थैलेट केमिकल से बचाव के उपाय
इसके लिए जरूरी है कि पॉलिसी लेवल पर गवर्नमेंट को सख्त नियम बनाने पड़ेंगे. बाहर के देशों में यह बैन हो चुका है और इसके सुरक्षित विकल्प हैं. भारत में भी इसका इस्तेमाल कम हो रहा है और इसके सुरक्षित विकल्प आ रह हैं. लेकिन अभी तक कोई नियम नहीं है. साथ ही, निजी स्तर हमें अपना ध्यान रखना चाहिए. जितना हो सके प्लास्टिक को कम से कम करने की कोशिश करें. खासकर अपनी किचन प्लास्टिक को निकालें. और बच्चों को भूल से भी प्लास्टिक के खिलौने न दें.