आजकल बहुत कम उम्र में ही लोग थका हुआ, बर्नआउट फील करने लगते हैं. उनकी यह थकान एक वक्त के बाद फ्रस्ट्रेशन में बदलने लगती है जिस कारण घर-परिवार ही नहीं दफ्तर में भी बहस होने लगती हैं. इसका असर उनकी मेंटल हेल्थ पर इतना पड़ता है कि वे अंदर से टूटने लगते हैं. आजकल इस स्थिति के लिए लोग एक नया शब्द- क्रैश आउट (Crash Out) इस्तेमाल कर रहे हैं.
'क्रैश आउट' का मतलब क्या है?
यह शब्द तेजी से लोकप्रिय हो रहा है, खासकर युवा और प्रोफेशनल्स के बीच. 'क्रैश आउट' उस स्थिति को दर्शाता है जब व्यक्ति भावनात्मक रूप से खुद पर से नियंत्रण खो देता है. वह थकावट, झुंझलाहट या निराशा की पीक पर पहुंचकर बहुत ही असामान्य प्रतिक्रिया देता है जैसे इमोशनल बर्स्ट हो गया हो.
थकावट से कहीं आगे की स्थिति
‘अमेरिकन स्पीच जर्नल’ के ‘अमंग द न्यू वर्ड्स’ सेक्शन में इस शब्द को शामिल किया गया है. यह बताता है कि यह शब्द फ्रस्ट्रेशन या ओवररिएक्शन का एक नया रूप बन गया है, जिसमें व्यक्ति बेपरवाह होकर प्रतिक्रिया देता है.
यूथ और छात्रों में भी पॉपुलर
यह शब्द धीरे-धीरे यूथ और छात्रों में भी पॉपुलर हो रहा है. छात्र कहते हैं, “तुम मुझे परेशान कर रहे हो, मैं क्रैश आउट कर जाऊंगा” या “यह प्रोजेक्ट मुझे क्रैश आउट कर देगा.” पहले यह सिर्फ गंभीर ओवररिएक्शन के लिए कहा जाता था, लेकिन अब छोटी-छोटी झुंझलाहटों को भी इससे जोड़ा जा रहा है. यह शब्द अब पैरेंट्स, टीचर्स और दोस्तों के बीच भी सुनाई देने लगा है.
मानसिक स्थिति को पहचानने का जरिया
विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी की भाषा विशेषज्ञ केली राइट कहती हैं कि आज की तेज रफ्तार और स्क्रीन-भरी जिंदगी में लोग जल्दी थक जाते हैं. 'क्रैश आउट' शब्द उन्हें अपनी मानसिक स्थिति को समझने में मदद करता है. यह खुद के प्रति जागरूकता का पहला कदम बन सकता है. अब ‘फ्रीक्ड आउट’ की जगह ‘क्रैश आउट’ शब्द अपनाया जा रहा है.
यह शब्द अब एक सामाजिक संकेत बन गया है, जिससे पता चलता है कि किसी व्यक्ति को इमोशनल हेल्प की जरूरत है. जब कोई अपनी स्थिति को शेयर करता है, तो तनाव कम होता है और उसे महसूस होता है कि वह अकेला नहीं है.
कैसे पहचानें कि आप ‘क्रैश आउट’ हो रहे हैं?
अगर पर्याप्त आराम के बाद भी थकान बनी रहे, छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आए, या यह महसूस हो कि आप खुद से कट रहे हैं तो ये संकेत हो सकते हैं कि आप 'क्रैश आउट' की स्थिति में पहुंच चुके हैं. यह शब्द न सिर्फ एक ट्रेंड बन चुका है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य की समझ और साझा भावनात्मक अनुभव का एक जरिया भी बन गया है.