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Marcos Commando: G-20 समिट में MARCOS हुए तैनात, पानी के नीचे के हमलों को पहचानने में भी माहिर होते हैं ये समुद्री कमांडो

gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 22 मई 2023,
  • Updated 3:33 PM IST
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G-20 समिट के लिए घाटी में स्पेशल फाॅर्स को भी तैनात किया गया है. लेकिन जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा से जुड़े लोग जानते हैं कि यह पहली बार नहीं है जब MARCOS को यहां तैनात किया गया है. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि आखिर ये स्पेशल फाॅर्स क्या करती है?

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दरअसल, मरीन कमांडो फोर्स (MCF) को 1987 में इंडियन मरीन स्पेशल फोर्स (IMSF) के रूप में स्थापित किया गया था और बाद में इसका नाम बदलकर MARCOS कर दिया गया था.

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MARCOS की स्थापना फरवरी 1987 में हुई थी. ये कमांडो सभी प्रकार के वातावरण में काम करने में सक्षम हैं- फिर चाहे वह समुद्र हो, हवा हो या फिर जमीन हो. 

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भारतीय नौसेना के MARCOS को पहली बार 90 के दशक के मध्य में कश्मीर घाटी में तैनात किया गया था. एलओसी के साथ वुलर झील में एक पूर्ण 'प्रहार' ग्रुप (18 समुद्री कमांडो का समूह) तैनात किया गया था. उनकी तैनाती के बाद से ही पाकिस्तान की ओर से आने वाले आतंकवादियों का घुसपैठ का रास्ता बंद हो गया है. 

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मार्कोस अपने आप में एक स्पेशल फाॅर्स है. ये समुद्री कमांडो पानी के नीचे के हमलों में माहिर होते हैं. इतना ही नहीं पानी में कुछ भी सूंघ सकते हैं. इसीलिए इसबार G-20 बैठकों के लिए डल झील में MARCOS को तैनात करने का निर्णय लिया गया है. 

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उनकी सूझ-बूझ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मुंबई पर 26/11 के आतंकवादी हमले के दौरान, शहर की पुलिस के अलावा, MARCOS ने NSG कमांडो के कार्यभार संभालने तक आतंकवादियों को उलझाए रखा था. 

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पूर्वी लद्दाख में चीनी पीएलए के साथ गलवान घाटी की झड़प के दौरान भी 140 किलोमीटर लंबी पैंगोंग त्सो (झील) पर फिर से मार्कोस तैनात किए गए थे. 

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एनएसजी ने गांधीनगर हमले (2002) से लेकर 26/11 हमले और पठानकोट एयरबेस हमले (2016) तक इन्होने अपनी ताकत साबित की है. हाल के वर्षों में इसे बुरहान वानी मुठभेड़ के बाद आतंकवाद के चरम के दौरान श्रीनगर में तैनात करने का काम सौंपा गया था. 

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MARCOS कई सारे बड़े ऑपरेशन में अपनी भमिका निभा चुके हैं. जैसे ऑपरेशन पवन, ऑपरेशन कैक्टस, ऑपरेशन ताशा, ऑपरेशन जबरदस्त , ऑपरेशन रक्षक, कारगिल युद्ध, यमन में ऑपरेशन राहत, ऑपरेशन ब्लैक टोर्नेडो, एंटी-पायरेसी आदि.