भविष्य में, किसान सिर्फ अन्न नहीं बल्कि ऊर्जा के उत्पादक हो सकते हैं. इस संबंध में सरकार ने भी प्रयास शुरू कर दिए हैं. जिला संरक्षक मंत्री अमित देशमुख ने मंगलवार को घोषणा की है कि लातूर में 5,000 एकड़ की जमीन में बांस की खेती की जाएगी और साथ ही इससे जुड़ी एक सहकारी इथेनॉल रिफाइनरी महाराष्ट्र के लातूर में स्थापित की जाएगी. इस अवसर पर बोलते हुए, पूर्व एमएलसी और विशेषज्ञ पाशा पटेल ने कहा कि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक बड़ा बढ़ावा मिलेगा और किसानों की आय भी बढ़ेगी.
पेड़ों की तुलना में 30-35% अधिक ऑक्सीजन का करता है उत्पादन
बांस पेड़ों के बराबर क्षेत्रफल की तुलना में लगभग 30-35% अधिक ऑक्सीजन का उत्पादन करता है. अगर ठीक से प्रबंधित किया जाता है, तो बांस का वृक्षारोपण एक जबरदस्त कार्बन सिंक के रूप में काम कर सकता है. यह वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अलग कर सकता है और इसे फसल की जड़ों और बायोमास में जमा कर सकता है. इथेनॉल वह स्वच्छ ईंधन है जिसका उपयोग पेट्रोल के वैकल्पिक ईंधन के रूप में किया जा सकता है. यह न केवल कम प्रदूषकों का उत्सर्जन करता है बल्कि इसे पेट्रोल में मिलाकर भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
खेती में सरकार भी करती है मदद
बांस को स्थापित होने और परिपक्वता तक पहुंचने में केवल पांच साल लगते हैं. बांस के खेती के लिए 3 साल में प्रति पौधा औसतन 240 रुपये का खर्च आता है. इसमें से भी प्रति पौधे पर 120 रुपये की सरकारी सहायता दी जाएगी. बांस की खेती पर होने वाले खर्च का 50 फीसदी सरकार और 50 फीसदी किसान वहन करता है. वहीं सरकारी खर्चे में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 60 फीसदी और राज्य सरकार की 40 फीसदी होती है.
कैसे बनता है इथेनॉल
बांस से फर्मेंटेशन प्रक्रिया के द्वारा इथेनॉल तैयार किया जाता है. यह प्रक्रिया पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल है. बांस से ईंधन इथेनॉल के उत्पादन के लिए पहले कंसंट्रेटेड सल्फ्यूरिक एसिड के साथ हाइड्रोलिसिस की प्रक्रिया होती है. इसके बाद कलर कंपाउंड्स को हटाया जाता है. इसके बाद एसिड और चीनी को अलग किया जाता है. फिर आखिर में ओलिगोसैकेराइड का हाइड्रोलिसिस करके ग्लूकोज को फर्मेंट किया जाता है. एक लीटर ग्लूकोज से लगभग 27.2 ग्राम इथेनॉल बनता है.