Bihar Election 2025: बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ आचार संहिता लागू, क्या है Code Of Conduct, कौन काम बंद और कौन रहेंगे जारी, यहां जानिए सबकुछ 

Code Of Conduct: चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है. चुनाव दो चरणों में 6 नवंबर और  11 नवंबर 2025 को संपन्न होंगे. इस घोषणा के साथ ही इस राज्य में आदर्श आचार संहिता भी लागू हो गई है. आइए जानते हैं क्या होता है कोड ऑफ कंडक्ट यानी आचार संहिता, इसे कौन करता है लागू और इस दौरान कौन से काम बंद और कौन रहते हैं जारी?

Bihar Assembly Elections 2025
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 06 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 5:53 PM IST

चुनाव आयोग (Election Commission) ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (Bihar Assembly Elections 2025) की तारीखों का ऐलान कर दिया है. चुनाव दो चरणों में 6 नवंबर और 11 नवंबर 2025 को संपन्न होंगे. चुनाव के नतीजे 14 नवंबर 2025 को आएंगे. बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के साथ ही पूरे प्रदेश में आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) लागू हो गई है. आइए जानते हैं क्या होता है कोड ऑफ कंडक्ट, इसे कौन करता है लागू और इस दौरान कौन से काम बंद और कौन रहते हैं जारी?

क्या होती है आचार संहिता
चुनाव आयोग ने देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए कुछ नियम बनाए हैं. आयोग के इन्हीं नियमों को आचार संहिता कहते हैं. लोकसभा/विधानसभा चुनाव के दौरान इन नियमों का पालन करना सरकार, नेता और राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी होती है. भारत निर्वाचन आयोग, भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 के अधीन संसद और राज्य विधान मंडलों के लिए स्वतंत्र, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण निर्वाचनों के आयोजन के लिए अपने सांविधिक कर्तव्यों के निर्वहन में केंद्र और राज्यों में सत्तारूढ़ दल (दलों) और निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थियों से इसका अनुपालन सुनिश्चित करता है.

यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि निर्वाचन के प्रयोजनार्थ अधिकारी तंत्र का दुरूपयोग न हो. आचार संहिता लागू होते ही सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के कर्मचारी बन जाते हैं. आचार संहिता सभी राजनीतिक दलों की सर्वसहमति से लागू व्यवस्था है. आचार संहिता के तहत बताया जाता है कि राजनीतिक दलों और कैंडिडेट को चुनाव के दौरान क्या करना है और क्या नहीं करना है. ये ऐसे काम होते हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मतदान को प्रभावित कर सकते हैं.

कितने दिनों तक लागू रहती है आचार संहिता 
चुनाव आयोग की ओर से चुनाव की तारीखों की घोषणा की तारीख से आचार संहिता लागू हो जाती है. यह चुनाव प्रक्रिया के पूर्ण होने और परिणाम घोषित होने तक लागू रहती है. इसका मतलब यह कि चुनावी प्रक्रिया समाप्त होने पर ही राज्य सरकार के सामान्य अधिकार बहाल होते हैं. लोकसभा चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता पूरे देश में जबकि विधानसभा चुनावों के दौरान पूरे राज्य में लागू होती है.

प्रशासनिक मशीनरी पर चुनाव आयोग की निगरानी
आदर्श आचार संहिता के लागू होने के साथ ही सभी डीएम, एसपी, बीडीओ, एसडीओ और ब्लॉक अधिकारी निर्वाचन आयोग के नियंत्रण में आते हैं. इस दौरान प्रशासन का उद्देश्य सिर्फ चुनाव कराना होता है, न कि सरकार के निर्देशों का पालन करना होता है.

आचार संहिता की कब से हुई शुरुआत
आदर्श आचार संहिता की शुरुआत सबसे पहले 1960 में केरल विधानसभा चुनाव में हुई थी. इसमें बताया गया था कि उम्मीदवार क्या कर सकता है और क्या नहीं? इलेक्शन कमीशन ने 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार इसके बारे में सभी राजनीतिक दलों को अवगत कराया था. 1967 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों से आचार संहिता की व्यवस्था लागू हुई. तब से अब तक नियमित इसका पालन हो रहा है. हालांकि समय-समय पर इसके दिशा-निर्देशों में बदलाव होते रहा है.

आचार संहिता में किन-किन कामों पर होती है पाबंदी
1. आचार संहिता लागू होने पर सरकार नई योजना और नई घोषणाएं नहीं कर सकती. भूमि पूजन और लोकार्पण भी नहीं हो सकते.
2. आचार संहिता लागू होते ही दीवारों पर लिखे सभी तरह के पार्टी संबंधी नारे व प्रचार सामग्री हटा दी जाती है. होर्डिंग, बैनर व पोस्टर हटा दिए जाते हैं.
3. चुनाव प्रचार के लिए सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. सरकारी गाड़ी, बंगला, हवाई जहाज का उपयोग वर्जित होता है.
4. राजनीतिक दलों को रैली, जुलूस या फिर मीटिंग के लिए परमिशन लेनी होती है.
5. धार्मिक स्थलों और प्रतीकों का इस्तेमाल चुनाव के दौरान नहीं किया जाता है.
6. मतदाताओं को किसी भी तरह से रिश्वत नहीं दी जा सकती है.
7. किसी भी चुनावी रैली में धर्म या जाति के नाम पर वोट नहीं मांगे जाएंगे.
8. किसी भी प्रत्याशी या पार्टी पर निजी हमले नहीं किए जा सकते हैं.
9. मतदान केंद्रों पर वोटरों को लाने के लिए गाड़ी मुहैया नहीं करवा सकते हैं.
10. मतदान के दिन और इसके 24 घंटे पहले किसी को शराब वितरित नहीं की जा सकती है.
11. चुनाव कार्यों से जुड़े किसी भी अधिकारी को किसी भी नेता या मंत्री से उसकी निजी यात्रा या आवास में मिलने की मनाही होती है.
12. सरकारी खर्चे पर किसी नेता के आवास पर इफ्तार पार्टी या अन्य पार्टियों का आयोजन नहीं कराया जा सकता है.
13. विधायक, सांसद या विधान परिषद के सदस्य लोकल एरिया डेवलपमेंट फंड से नई राशि जारी नहीं कर सकते हैं.
14. आदर्श आचार संहिता लगने के बाद पेंशन फॉर्म जमा नहीं हो सकते और नए राशन कार्ड भी नहीं बनाए जा सकते.
15. हथियार रखने के लिए नया आर्म्स लाइसेंस नहीं बनेगा. BPL के पीले कार्ड नहीं बनाए जाएंगे.
16. कोई भी नया सरकारी काम शुरू नहीं होगा. किसी नए काम के लिए टेंडर भी जारी नहीं होंगे.
17. आदर्श आचार संहिता लगने के बाद बड़ी बिल्डिंगों को क्लियरेंस नहीं दी जाती है.
18. मतदान के दिन मतदान केंद्र से सौ मीटर के दायरे में चुनाव प्रचार पर रोक और मतदान से एक दिन पहले किसी भी बैठक पर रोक लग जाती है.

आम आदमी पर भी लागू
कोई आम आदमी भी आचार संहिता के नियमों का उल्लंघन करता है, तो उस पर भी आचार संहिता के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी. इसका आशय यह है कि यदि आप अपने किसी नेता के प्रचार में लगे हैं, तब भी आपको इन नियमों को लेकर जागरूक रहना होगा. यदि कोई राजनेता आपको इन नियमों के इतर काम करने के लिए कहता है तो आप उसे आचार संहिता के बारे में बताकर ऐसा करने से मना कर सकते हैं. क्योंकि ऐसा करते पाए जाने पर तत्काल कार्रवाई होगी. ज्यादातर मामलो में आपको हिरासत में लिया जा सकता है.

कौन कर सकता है ट्रांसफर-पोस्टिंग
आचार संहिता लागू होने के बाद किसी भी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी की ट्रांसफर-पोस्टिंग सरकार नहीं कर सकती है. ट्रांसफर कराना बेहद जरूरी हो गया हो तब भी सरकार बिना चुनाव आयोग की सहमति के ये फैसला नहीं ले सकती है. इस दौरान राज्य के मुख्य चुनाव आयुक्त जरूरत के हिसाब से अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग कर सकते हैं.

जुलूस-रैली के लिए थाने में देनी होती है जानकारी
उम्मीदवार और पार्टी को जुलूस निकालने या रैली और बैठक करने के लिए चुनाव आयोग से अनुमति लेनी होती है. इसकी जानकारी निकटतम थाने में भी देनी होती है. सभा के स्थान व समय की पूर्व सूचना पुलिस अधिकारियों को देना होती है.

इन कामों पर नहीं लगता ब्रेक
1. जिस सरकारी योजना पर काम शुरू हो गया है. वो आचार संहिता लागू होने के बावजूद जारी रहती है.
2. जिन योजनाओं में आचार संहिता लागू होने से पहले किसे लाभ मिलेगा, इसकी पहचान हो गई हो, वो योजनाएं चालू रहेंगी.
3. पहले से चल रही मनरेगा जैसी योजनाएं जारी रहती हैं.
4. नई योजनाओं को मंजूरी मिल चुकी है और उसके लिए राशि भी स्वीकृत हो चुकी हो तो वो चलती रहेंगी.
5. ड्राइविंग लाइसेंस, जाति-निवास प्रमाण पत्र, जमीन की रजिस्ट्री जैसे काम आचार संहित के दौरान भी जारी रहते हैं.

आचार संहिता के उल्लंघन पर क्या होता है
चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद कई नियम भी लागू हो जाते हैं. इनकी अवहेलना कोई भी राजनीतिक दल या राजनेता नहीं कर सकता. इसके अतिरिक्त यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि निर्वाचन के दौरान अपराध, कदाचार और भ्रष्ट आचरण, रिश्वतखोरी और मतदाताओं को प्रलोभन, मतदाताओं को धमकाना और भयभीत करने जैसी गतिविधियों को रोका जा सके. इनके उल्लंघन के मामले मे उचित कार्रवाई की जाती है. यदि कोई इन नियमों का पालन नहीं करता है तो चुनाव आयोग उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है. उम्मीदवार को चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है या उसके विरुद्ध एफआईआर दर्ज हो सकती है. दोषी पाए जाने पर जेल भी जाना पड़ सकता है.

चुनावी खर्च में क्या-क्या होता है शामिल
निर्वाचन आयोग ने विधानसभा और लोकसभा चुनावों में प्रत्याशी के चुनावी खर्च पर सीमा तय कर रखी है. 2022 में चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनावों के लिए राज्यों के आधार पर 54 से 70 लाख रुपए की सीमा को बढ़ाकर 70 से 95 लाख रुपए तय किया था. विधानसभा चुनावों में खर्च की सीमा को 20 से 28 लाख रुपए (राज्यों के आधार पर) से बढ़ाकर 28 से 40 लाख रुपए तय किया गया था.

चुनावी खर्च वह राशि है जो एक उम्मीदवार चुनाव अभियान के दौरान कानूनी रूप से खर्च करता है. इसमें सार्वजनिक बैठकों, रैलियों, विज्ञापनों, पोस्टर, बैनर, वाहनों और विज्ञापनों पर खर्च शामिल होता है. जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 77 के तहत प्रत्येक उम्मीदवार को नामांकन की तिथि से लेकर परिणाम घोषित होने की तिथि तक किए गए सभी व्यय का अलग और सही खाता रखना होता है. चुनाव संपन्न होने के 30 दिनों में उम्मीदवारों को चुनाव आयोग के समक्ष अपना व्यय विवरण प्रस्तुत करना होता है. यदि उम्मीदवार ने गलत विवरण प्रस्तुत किया तो अधिनियम की धारा 10 के तहत चुनाव आयोग उसे तीन साल के लिए अयोग्य घोषित कर सकता है.


 

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