बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. अभी से सियासी पारा चढ़ गया है. सीमांचल क्षेत्र राज्य में सत्ता बनाने और बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाता है, जिसके चलते सभी दलों की निगाहें इस पर लगी हुई हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को पूर्णिया पहुंचे. कहावत है कि सियासत से जुड़े लोगों के हर कदम के राजनीतिक मायने होते हैं. ऐसे में पीएम मोदी के इस दौरे के राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि पूर्णिया के सहारे बीजेपी का सीमांचल की 24 सीटों को साधने का प्लान है.
पीएम मोदी ने पूर्णिया से सीमांचल को विकास परियोजनाओं की सौगात दी. पीएम मोदी ने पूर्णिया से 40000 करोड़ रुपए की विकास परियोजनाओं का ऐलान किया. इसमें पूर्णिया हवाई अड्डे के नए टर्मिनल भवन का उद्घाटन, राष्ट्रीय मखाना बोर्ड की शुरुआत समेत अन्य विकास कार्य शामिल हैं. सीमांचल में मुस्लिम आबादी एवं पिछड़े वर्गों की बड़ी हिस्सेदारी है. लंबे समय से विपक्ष का प्रभाव क्षेत्र रहा है. ऐसे में मोदी की यात्रा एवं एयरपोर्ट जैसी विकास योजनाओं का उद्घाटन यह संकेत देता है कि बीजेपी इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने एवं विकास बनाम जातीय समीकरण की नई बहस छेड़ने की रणनीति अपना रही है. अब देखना है कि आगामी विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी का यह सियासी सौगात सीमांचल में सर्जिकल स्ट्राइक साबित हो पाता है या नहीं.
सीमांचल की हर सीट पर जीत दर्ज करने की बीजेपी की रणनीति
आपको मालूम हो कि बिहार के सीमांचल में अररिया, किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया जिले आते हैं. इन जिलों में कुल 24 विधानसभा सीटें और 4 लोकसभा सीटें हैं. लोकसभा चुनाव 2024 में सीमांचल की 4 में से 3 सीटों पर NDA को हार का सामना करना पड़ा था. विधानसभा चुनाव 2020 में बीजेपी यहां की 24 में से सिर्फ 8 सीटें जीत सकी थी. इस बार विधानसभा चुनाव में बीजेपी सीमांचल की हर सीट पर जीत दर्ज करने की रणनीति पर काम कर रही है. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के कारण बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन इस बार इंडिया ब्लॉक ने जिस तरह सीमांचल को साधने का दांव चला है, उसके चलते प्रधानमंत्री मोदी को खुद सीमांचल फतह करने के लिए उतरना पड़ा है.
सीमांचल की 12 सीटों पर है अल्पसंख्यक प्रभावी
सीमांचल में कुल 24 विधानसभा सीटों में से 12 सीटें ऐसी हैं, जिसमें 50 फीसदी से अधिक आबादी मुस्लिम की है. जिलावार मुस्लिम आबादी की बात करें तो किशनगंज में सबसे अधिक 68 फीसदी, अररिया में 43 फीसदी, कटिहार में 45 फीसदी और पूर्णिया में सबसे कम 39 फीसदी है. इन्हीं मुस्लिम आबादी वाले विधानसभा क्षेत्रों में वर्ष 2020 के चुनाव में एआईएमआईएम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी. मतों के ध्रुवीकरण से भाजपा को फायदा मिलता रहा है. पीएम मोदी ने घुसपैठ के मुद्दे को सामने लाकर भविष्य की चुनावी राजनीति का संकेत दे दिया है. भारतीय जनता पार्टी जानती है कि ऐसे मुद्दे से मतों का ध्रुवीकरण होगा, जिसका उसे लाभ मिल सकता है.
बीजेपी को मिली थी इतनी सीटें
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में सीमांचल की 24 सीटों में से सबसे अधिक 8 सीटें बीजेपी जीती थी. इनमें अररिया और कटिहार से 3-3 सीटें, जबकि पूर्णिया से 2 सीटें भाजपा के खाते में गई थी. 4 सीटें जेडीयू ने जीती थी. 5 सीट पर कांग्रेस, 1 सीट पर आरजेडी और 1 सीट लेफ्ट माले को जीत मिली थी. इसके अलावा पांच सीटें ओवैसी की पार्टी AIMIM ने जीती थीं. 2020 के चुनाव में किशनगंज में एनडीए को कोई भी सीट इसलिए नहीं मिली क्योंकि यहां अल्पसंख्यकों की आबादी 68 फीसदी है. जहां ध्रुवीकरण फैक्टर प्रभावी साबित नहीं होता है. विधानसभा चुनाव 2015 में आरजेडी ने सबसे अधिक 9 सीट, जेडीयू ने 5 और कांग्रेस ने 5 सीटें जीती थीं. बीजेपी को सिर्फ 5 सीटों पर जीत मिली थी. इस बार भी किशनगंज में बीजेपी का खाता नहीं खुल सका. बाकी तीन जिलों ने भारतीय जनता पार्टी को 2-2 सीटें दीं. भाजपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन विधानसभा चुनाव 2010 में आया था, जब उसने 16 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़कर 13 पर जीत हासिल की थी. कटिहार की 7 में से 5 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी. अररिया और पूर्णिया में 4-4 सीटें भाजपा को जीत मिली थी.
क्या इस बार सीमांचल का गेम होगा चेंज
सीमांचल में एनडीए ने विकास पर अपना दांव लगाया है तो वहीं विपक्षी मोर्चे पर कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने अपनी वोटर अधिकार यात्रा के जरिए समर्थन जुटाने की कोशिश की है. ये यात्रा सीमांचल के 8 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरी है. इन सब के अलावा सीमांचल में प्रशांत किशोर की जन सुराज और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के मैदान में उतरने से मुकाबला और भी जटिल हो गया है. एआईएमआईएम ने विधानसभा चुनाव 2020 में सीमांचल में पांच विधानसभा सीटें हासिल की थीं. यहां ओवैसी ने कांग्रेस और आरजेडी का समीकरण बिगाड़कर रख दिया है क्योंकि मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण हुआ है.
उधर, प्रशांत किशोर भी अपने जन सुराज आंदोलन के जरिए सीमांचल में काफी समय खर्च कर रहे हैं. वो लगातार दावा कर रहे हैं कि ओवैसी, लालू और नीतीश कुमार ने मुसलमानों का भला नहीं किया है. अब वे विकास के जरिए उनकी स्थिति बदलने वाले है. राजनीति के जानकारों का मानना है कि प्रशांत किशोर की एंट्री से सीमांचल में मुसलमानों का वोट बंटेगा, जिससे महागठबंधन को नुकसान हो सकता है और एनडीए गठबंधन को फायदा पहुंच सकता है. ओवैसी पिछले चुनाव भी एनडीए को फायदा पहुंचा चुके हैं और इस चुनाव में भी ओवैसी के अकेले चुनावी मैदान में कूदने से एनडीए को फायदा होगा. कांग्रेस, आरजेडी और लेफ्ट दलों की कोशिश मुस्लिम, दलित और यादव वोटों के सियासी समीकरण बनाने की है तो वहीं बीजेपी दलितों और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) के वोटों पर ध्यान केंद्रित कर रही है. अब देखना है कि आगामी विधानसभा चुनाव में सीमांचल की जनता किसे जीत का सेहरा पहनाती है.