वाराणसी को नाश्ते का शहर कहा जाता है. यानी खाने से ज्यादा क्रेज यहां नाश्ते का है. हर घंटे शहर के अलग-अलग इलाकों में कुछ न कुछ बतौर नाश्ता न सिर्फ बनता रहता है, बल्कि परोसा भी जाता है. ऐसी दुकानों में से दो दुकान लंका क्षेत्र में लंबे समय से प्रसिद्ध है. जिसमें सबसे पहला नाम 115 साल पुरानी चाची की दुकान का जो कचौड़ी के लिए फेमस है और दुसरा है पहलवान लस्सी का. ये दोनों दुकाने वाराणसी के न सिर्फ स्वाद बल्कि विरासत का हिस्सा हैं.
हालांकि, अब वर्तमान स्थिति यह है कि सड़क चौड़ीकरण के तहत बनने वाले छह लेन रोड के रास्ते में आने के चलते इस बाजार की सभी 35 दुकानों को बिना किसी विरोध और तमाशे के पीडब्लयूडी ने जमींदोज कर दिया. शहर के लहरतारा- मंडुआड़ीह- BLW- लंका होते हुए 4 लेन तो लंका से रविंद्रपुरी-विजया भेलूपुर तक 6 लेन रास्ता बनने जा रहा है. 9.5 किमी की सड़क लगभग 325 करोड़ रुपयों की लागत से तैयार होने जा रही है. बताया जा रहा है कि सभी दुकानदारों को एक महीने पहले ही नोटिस दे दिया गया था और उन्हें उचित मुआवजा भी दिया गया है. लेकिन फिर भी चाची की दुकान और पहलवान लस्सी जब गिराई गई तो न सिर्फ काशीवासियों बल्कि देश-दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से यहां घूमने आने वाले लोगों को भी दुख हुआ.
वाराणसी की मशहूर 'चाची की दुकान' की कचौड़ी सिर्फ एक व्यंजन नहीं, बल्कि बनारस की ज़ुबान, तेवर और स्वाद का अनोखा संगम है. इस दुकान की शुरुआत 1915 में छन्नी देवी ने की, जिन्हें आज सब ‘चाची’ के नाम से जानते हैं. भले ही चाची अब इस दुनिया में नहीं हैं (उनका निधन 2012 में हुआ), लेकिन उनके हाथों का स्वाद आज भी हर कचौड़ी में महसूस किया जा सकता है. यह दुकान बनारस की पहचान बन चुकी है, जहां आम आदमी से लेकर नौकरशाह, नेता, फिल्मी सितारे, यूट्यूबर्स और मास्टरशेफ तक कतार में लगते थे.
दुकान पर हर रोज़ सुबह-शाम करीब 600 से ज्यादा कचौड़ियां तली जातीं, और दो घंटे के भीतर 200 से ज्यादा लोग कचौड़ी, सीताफल की सब्ज़ी और मटका जलेबी का आनंद उठाकर लौट जाते. यहां दोना-पत्तल में परोसे जाने वाला यह व्यंजन, स्वाद के साथ-साथ साफ-सफाई और व्यवस्थित सेवा का भी उदाहरण है- न सड़क पर गंदगी, न ट्रैफिक जाम. हींग-चना दाल की डबल लेयर कचौड़ी, सीताफल की चटपटी सब्ज़ी और मटका जलेबी का ये कॉम्बिनेशन बनारस के दिल में उतर चुका है. लोग इसे सिर्फ खाना नहीं, बल्कि "बनारसी अनुभव" मानते हैं.
इस दुकान की सबसे अनोखी बात यह थी कि चाची जब कचौड़ी परोसती थीं, तो साथ में एक बनारसी गाली भी देती थीं, जिसे लोग ‘आशीर्वाद’ समझते थे. इससे जुड़े कई किस्से मशहूर हैं. चाची के बेटे कैलाश यादव बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर के एलजी मनोज सिन्हा BHU में पढ़ाई के दौरान यहां आते थे. और अक्सर चाची से जानबूझकर मजाक करते थे क्योंकि उनको गाली सुननी होती थीं.
इसके अलावा राजेश खन्ना 'काका' भी चाची से गाली सुन चुके है और चाची ने उनसे पैसे लेने के बजाए 10 रुपए उनको सिगरेट पीने को दिए थे. साथ ही BHU के छात्र हो या फिर स्थानीय लोग, किसी भी बड़े काम या परीक्षा में जाने से पहले चाची से गाली सुनना शुभ मानते थे और सफल हो जाने पर तोहफे भी लेकर जरूर आते थे. उन्होंने बताया कई BHU के कुलपति भी चाची की कचौड़ी खाने और गाली सुनने आते थे. यादव का कहना है कि सरकार उनके पुर्नवास की व्यवस्था जरूर करे. क्योंकि चाची की दुकान खत्म हो जाने से एक युग खत्म हो गया है. चाची के बेटे कैलाश यादव और पोते आकाश यादव ने शहर के दुर्गाकुंड इलाके में चाची 2.0 के नाम से एक रेस्टोरेंट भी खोला हुआ है.
वाराणसी की यह 75 साल पुरानी लस्सी की दुकान सिर्फ लस्सी नहीं, बल्कि बनारसी संस्कृति की मिठास और शान का प्रतीक है. यहां की सबसे खास चीज़ है 'रबड़ी वाली लस्सी'- जो मलाईदार रबड़ी, मोटी मलाई और केसर जड़ी टॉपिंग के साथ कुल्हड़ में परोसी जाती है. यही नहीं, यहां आपको गुड़ वाली लस्सी भी मिलेगी, जो चीनी की जगह गन्ने के राब से बनाई जाती है. इसके अलावा खीरा और जीरे के साथ तैयार साल्टेड लस्सी भी खास है. कुल मिलाकर इस दुकान में 8 तरह की लस्सी के फ्लेवर मौजूद हैं, जिनकी कीमत ₹30 से शुरू होकर ₹180 तक जाती है.
पहलवान लस्सी की शुरुआत एक दिलचस्प कहानी से जुड़ी है. बनारस के पन्ना सरदार पहलवान खाने-पीने के बेहद शौकीन थे. उन्होंने साल 1950 में यह लस्सी की दुकान शुरू की थी. उस समय इसका नाम ‘पहलवान लस्सी’ नहीं था. पन्ना सरदार को क्रिकेट खेलने का शौक था और वह हर मैच से पहले इसी दुकान की लस्सी पीते थे. दिलचस्प बात यह रही कि वह लस्सी पीकर मैदान में उतरते और जीतकर लौटते. धीरे-धीरे यह धारणा बन गई कि इस लस्सी को पीना जीत की गारंटी है. यहीं से इस दुकान और लस्सी का नाम पड़ा- पहलवान लस्सी.
यह लस्सी इतनी मशहूर हो गई कि संकट मोचन संगीत समारोह में आने वाले पद्मश्री और पद्मविभूषण से सम्मानित कलाकार भी प्रस्तुति से पहले इसे पीना पसंद करते हैं. 70 के दशक में मशहूर अभिनेता और पहलवान दारा सिंह भी इसके दीवाने थे. काशी की राजनीति में भी यह लस्सी खास जगह रखती है- कोई भी नेता चुनाव प्रचार के लिए आए, तो पहलवान लस्सी जरूर चखता है.
सोशल मीडिया पर यह दुकान 'मिनी पंजाब' के नाम से भी लोकप्रिय है, क्योंकि यहां की लस्सी इतनी गाढ़ी और मलाईदार होती है कि लोग इसे पीने के साथ लकड़ी के चम्मच से खाते भी हैं. रोज़ाना करीब 10,000 पर्यटक यहां लस्सी का स्वाद लेने पहुंचते हैं. कई दिग्गज राजनेता इसका स्वाद ले चुके हैं, जिनमें शामिल हैं- अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव, स्मृति ईरानी, अरुण जेटली, धर्मेंद्र प्रधान, केशव प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक और वाराणसी व पूर्वांचल के तमाम केंद्रीय व राज्य मंत्री.
(इनपुट्स: रौशन जयसवाल)