कृषि मंत्रालय ने फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर-1985 में संशोधन करते हुए गजट नोटिफिकेशन जारी किया है. नए आदेश के तहत अब मछलियों के मांस और खाल से निकाले गए प्रोटीन हाइड्रोलाइज़ेट का उपयोग आलू की फसलों में फर्टिलाइज़र के रूप में करने की सिफारिश की गई है. इसी तरह, गोजातीय पशुओं के मांस और चमड़े से प्राप्त प्रोटीन हाइड्रोलाइज़ेट को टमाटर की फसलों में खाद के तौर पर इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई है.
सरल शब्दों में इसका मतलब यह है कि अब स्लॉटर हाउस और चमड़ा उद्योगों के कचरे, जिसमें हड्डियां, खून, चमड़ा और आंतरिक अवशेष शामिल हैं, उसे खाद के रूप में खेतों में इस्तेमाल किया जा सकेगा. इस फैसले से लाखों टन उद्योगिक अपशिष्ट का निपटान आसान हो जाएगा और स्लॉटर हाउस उद्योग को बड़ा फायदा मिलेगा.
शाकाहारी समाज की प्रतिक्रिया
इस आदेश के खिलाफ जैन और हिंदू संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया जताई है. श्री जैन धर्म प्रवर्धिनी सभा ने केंद्रीय मंत्री को पत्र लिखकर इसे “अक्षम्य कृत्य” बताया और कहा कि यह शाकाहारी समाज की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है. पत्र में लिखा गया है कि मंत्री स्वयं शाकाहारी हैं और शुद्ध भोजन में विश्वास रखते हैं. ऐसे में यह विडम्बना है कि उनके ही मंत्रालय से कृषि क्षेत्र में रक्तरंजित फर्टिलाइज़र को वैध किया जा रहा है.
संगठनों का आरोप है कि यह फैसला स्लॉटर हाउस लॉबी को फायदा पहुंचाने के लिए लिया गया है. उनका कहना है कि अब इस कचरे को बायो-स्टिम्युलेंट के नाम पर खेतों में खपाने का रास्ता खुल गया है. जबकि आवश्यक अमीनो एसिड पौधों, दलहन, सोयाबीन और समुद्री शैवाल जैसी प्राकृतिक सामग्री से आसानी से प्राप्त किए जा सकते हैं, इसके बावजूद मंत्रालय ने पशु-आधारित स्रोत को वैध कर दिया है.
जैन संगठनों ने इसे करोड़ों शाकाहारी लोगों के धार्मिक अधिकार और जीवनशैली पर हमला बताया और इसे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करार दिया. उनकी मांग है कि इस आदेश को तुरंत वापस लिया जाए और कृषि व खाद्य सुरक्षा में स्लॉटर हाउस वेस्ट का प्रयोग पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाए.
(अंकित मिश्रा की रिपोर्ट)
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