सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त को डॉग बाइट्स और रेबीज के मामलों को देखते हुए सभी आवारा कुत्तों को 8 हफ्तों में दिल्ली-NCR के आवासीय क्षेत्रों से हटाकर शेल्टर होम में भेजने का आदेश दिया था. आदेश आने के बाद से ही लगातार डॉग लवर्स सड़क से लेकर सोशल मीडिया पर प्रोटेस्ट कर रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध कर रहे हैं. डॉग लवर्स का कहना है कि लंबे वक्त से सरकार ने कोई डॉग्स के लिए केंद्र नहीं बनाया. ऐसे कैसे एक साथ कम वक्त में इन डॉग्स के लिए शेल्टर होम की व्यवस्था की जाएगी.
नगर निगम कर पाएगा व्यवस्था?
दिल्ली में डॉग्स के लिए शेल्टर होम की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी दिल्ली नगर निगम की है. हालांकि जिम्मेदारी दिल्ली सरकार की भी है. लेकिन दिल्ली नगर निगम के पास सड़कों पर घूमते आवारा कुत्तों को रीलोकेट करने का अधिकार है. लेकिन दिल्ली नगर निगम, जिसका बजट ही साल का 17000 करोड़ है तो वह कैसे इन आवारा कुत्तों के लिए शेल्टर बन पाएगी.
नगर निगम के बजट के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के साल 2025 के ₹17,002.66 करोड़ के बजट में पशु चिकित्सा सेवाओं के लिए सिर्फ ₹108.43 करोड़ का प्रावधान किया गया है. यह राशि कुल बजट का मात्र 0.64% है और इसे ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं चिकित्सीय राहत’ श्रेणी में शामिल किया गया है.
मेनका गांधी ने उठाए सवाल-
पूर्व केंद्रीय मंत्री मानेका गांधी ने दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की दृढ़ता से आलोचना की. निर्देश को "अव्यावहारिक", "आर्थिक रूप से अप्राप्य" और "संभावित हानिकारक" बताया. मेनका गांधी ने आंकड़े जारी करते हुए बताया कि दिल्ली में आपके पास तीन लाख कुत्ते हैं. उन सभी को सड़कों से दूर करने के लिए, आपको 3,000 पाउंड बनाना होगा, प्रत्येक को जल निकासी, पानी, एक शेड, एक रसोई और एक चौकीदार के साथ. इसकी कीमत लगभग 15,000 करोड़ रुपये होगी. क्या दिल्ली के पास इसके लिए 15,000 करोड़ रुपये हैं. दिल्ली नगर निगम के 1 साल के बजट के बराबर अगर डॉग्स के लिए शेल्टर बनाए गए तो एमसीडी का पूरा बजट हमारा कुत्तों के शेल्टर होम के लिए ही लग जाएगा.
(सुशांत मेहरा की रिपोर्ट)
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