दिवाली का त्योहार पास है और घरों में साफ-सफाई शुरू हो गई है. त्योहारों के रंगों और लोगों के उत्साह से बाजार जगमगा रहे हैं. रोशनी का त्योहार दिवाली पर इस साल अलग ही नजारा होने वाला है. कोरोना के लगभग दो साल बाद लोगों को त्योहार खुलकर मनाने की अनुमति मिली है. रोशनी, रंगोली, मिठाइयों से लेकर पटाखों तक यह एक क्लासिक दिवाली पैक है, लेकिन हर साल पटाखे फोड़ने के बारे में बहुत बहस होती है.
जलवायु संकट के खतरों के मद्देनजर, हर साल दिवाली पर कुछ प्रतिबंध होते हैं. आतिशबाजी से ध्वनि और वायु प्रदूषण दोनों होते हैं और जब प्रदूषण की बात आती है, तो दिल्ली की राजधानी धुंध और खराब गुणवत्ता वाली हवा में लोगों को परेशान कर देती है. यहीं से 'ग्रीन क्रैकर' (Green Cracker)शब्द आया है. हरे रंग का मतलब हमेशा यह नहीं होता है कि यह पर्यावरण के अनुकूल है. तो, हरे पटाखे वास्तव में क्या हैं?
क्या होते हैं ग्रीन पटाखे?
ग्रीन पटाखों को एक आधुनिक किस्म के पटाखों के रूप में माना जा सकता है, जो वातावरण में कम प्रदूषकों को छोड़ने की उनकी विशिष्ट विशेषता के कारण उनके पारंपरिक समकक्षों से अलग हैं. काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) द्वारा विकसित ग्रीन पटाखों से नियमित पटाखों की तुलना में 30% कम प्रदूषक माना जाता है. इसका रासायनिक फॉर्मूलेशन वातावरण में कण उत्सर्जन को कम करने की गारंटी देता है. देश में तीन तरह के ग्रीन पटाखे होते हैं. स्वास (SWAS) स्टार (STAR) और सफल (SAFAL).
ग्रीन पटाखों से निकलने वाली धूल दब जाती है, जिसकी वजह से हवा में पटाखों के कण कम उत्सर्जित होते हैं. सामान्य पटाखे में लगभग 160 डेसिबल ध्वनि पैदा होती है, वहीं ग्रीन पटाखे 110-125 डेसिबल तक सिमट जाते हैं. जो निर्माता ग्रीन पटाखे बनाते हैं, उन्हें इस ग्रीन क्रैकर फॉर्मूलेशन पर ध्यान देना होता है.
क्या ग्रीन पटाखे सच में हरे होते हैं?
द इंडियन एक्सप्रेस ने डॉ खवल और प्रो मोर का हवाला देते हुए बताया कि हरे पटाखे और पारंपरिक पटाखे दोनों ही प्रदूषण का कारण बनते हैं और लोगों को इसका इस्तेमाल करने से बचना चाहिए. हालांकि, फर्क सिर्फ इतना है कि पारंपरिक पटाखों की तुलना में हरे पटाखों से 30 फीसदी कम वायु प्रदूषण होता है. ग्रीन पटाखे बनाने में भी एल्युमीनियम, बेरियम, पोटेशियम नाइट्रेट और कार्बन जैसे प्रदूषणकारी रसायनों का इस्तेमाल होता है.
डॉ खैवाल ने कहा, “हरे पटाखे उत्सर्जन को काफी हद तक कम करते हैं और धूल को अवशोषित करते हैं. इसमें बेरियम नाइट्रेट जैसे खतरनाक तत्व नहीं होते हैं. पारंपरिक पटाखों में जहरीली धातुओं को कम खतरनाक कंपाउंड से बदल दिया जाता है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के अनुसार, ग्रीन पटाखों की अनुमति केवल उन शहरों और कस्बों में दी जाती है, जहां हवा की गुणवत्ता मध्यम या खराब होती है. ”प्रो मोर ने कहा कि हरे पटाखों में ध्वनि के उत्सर्जन में भी कमी आई है.