भारत में स्टील उद्योग की शुरुआत जमशेदपुर में टाटा स्टील से हुई मानी जाती है. इसकी नींव रखने वाले टाटा ग्रुप के पहले चेयरमैन दोराबजी टाटा थे. देश के उद्योग में टाटा समूह का बड़ा योगदान रहा है. इस महान उद्योगपति दोराबजी टाटा की पुण्यतिथि (3 जून 1932) पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें.
दोराबजी टाटा का जन्म 27 अगस्त 1859 को महाराष्ट्र के मुबंई शहर में हुआ था. जमशेदजी नुसरवानजी टाटा और हीराबाई के बड़े बेटे दोराबजी थे. दुनिया उन्हें स्टीलमैन के नाम से जानती है. उन्होंने प्राथमिक शिक्षा बॉम्बे के प्रोप्रायटरी हाईस्कूल से प्राप्त की. उसके बाद वे वर्ष 1875 में इंग्लैंड चले गए. उन्होंने वर्ष 1877 में गोनविले और कैयस कॉलेज, कैम्ब्रिज में एडमिशन लिया, उसके बाद वहां दो साल तक पढ़ाई की. दोराबजी बचपन से खेल के प्रेमी थे. उन्होंने इंग्लैंड में खेलों के प्रति अपने प्रेम को बढ़ाया. खेल प्रतिष्ठानों में हिस्सा लिया. क्रिकेट और फुटबॉल के लिए सम्मान जीता. उन्होंने अपने कॉलेज के लिए टेनिस भी खेला, एक विशेषज्ञ रोवर बने, कई स्प्रिंट इवेंट जीते. दोराबजी एक अच्छे घुड़सवार भी थे.
दो साल तक बतौर पत्रकार किया काम
दोराबजी 1879 में बॉम्बे लौट आए और सेंट जेवियर्स कॉलेज से उन्होंने 1882 में कला में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. अपने बेटे को अपने विस्तारित व्यवसाय में शामिल करने के बजाय, जमशेदजी ने उन्हें पत्रकारिता में अपने अनुभव को व्यापक बनाने के लिए प्रोत्साहित किया. दोराबजी टाटा ने अपने करियर की शुरुआत बॉम्बे गजट अखबार से की. उन्होंने दो साल तक बतौर पत्रकार काम किया. बाद में उन्हें पांडिचेरी में एक कपड़ा परियोजना स्थापित करने का स्वतंत्र प्रभार दिया गया. इस दौरान उन्होंने व्यवसाय की बारीकियां सीखी. इसके बाद दोराबजी को नागपुर में कंपनी की प्रमुख एम्प्रेस मिल्स की देखभाल के लिए भेजा गया. दोराबजी टाटा के पिता जमशेदजी के पारसी मित्र डॉ. होरमुसजी भाभा जो एक पारसी थे, उनकी इकलौती बेटी मेहरबाई के साथ दोराबजी की शादी वर्ष 1897 में हुई थी.
1908 से 1932 तक रहे चेयरमैन
1904 में अपने पिता जमशेदजी टाटा की मृत्यु के बाद सर दोराबजी टाटा ने अपने पिता के सपनों को साकार करने का बीड़ा उठाया. उन्होंने वर्ष 1907 में टाटा स्टील ग्रुप की स्थापना की, जो पहले टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड (टिस्को) के नाम से जाना जाता था. दोराबजी ने वर्ष 1911 में टाटा पावर की स्थापना की. जमशेदपुर नामक शहर बसाया. लोहे की खानों का ज्यादातर सर्वेक्षण उन्हीं के निर्देशन में पूरा हुआ. वे टाटा समूह के पहले चेयरमैन बने और 1908 से 1932 तक चेयरमैन बने रहे. उनकी देखरेख में तीन कपास मिलों, ताज होटल बॉम्बे, तीन इलेक्ट्रिक कंपनियां और भारत की सबसे बड़ी जनरल इंश्योरेंस कंपनी न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी की स्थापना हुई. ब्रिटिश इंडिया में उनके औद्योगिक योगदान के लिए 1910 में दोराबजी टाटा को नाइट की उपाधि से सम्मानित किया गया था. दोराबजी को 1924 में भारतीय ओलंपिक संघ का अध्यक्ष बनाया गया था. उन्होंने भारतीय टीम को वित्तीय मदद भी दी थी.
उद्योग को ऊंचाइयां दी
स्टील कंपनी के शुरुआती दिन बेहद मुश्किल वाले थे. उस समय भारत समेत दुनियाभर के देश प्रथम विश्व युद्ध में शामिल थे, लेकिन 1919 में युद्ध खत्म होते ही दुनिया भर में मंदी बढ़ती चली गई. इससे भारत में भी स्थिति गंभीर हो गई. टाटा स्टील (तब टिस्को) वैश्विक मंदी की मार झेलते 1924 में बंद हो गई होती, लेकिन दोराबजी ने कंपनी को बचाए रखने के लिए पत्नी मेहरबाई के डायमंड, जेवर और निजी संपत्ति को गिरवी रख दिया था. दोराबजी को अपनी संपत्ति गिरवी रखकर बैंकों से लोन लेना पड़ा था. जापान उस वक्त टिस्को का सबसे बड़ा ग्राहक था, वहां भूकंप आ गया. कंपनी को 12 साल के लिए लाभांश स्थगित करना पड़ा. 1924 में बंद होने की नौबत आ गई थी लेकिन दोराबजी ने अपनी दूरदर्शिता व जोखिम भरे फैसले से कंपनी को बचा लिया. दोराबजी ने न केवल उद्योग को ऊंचाइयां दी, बल्कि कर्मचारियों के लिए कई ऐसे फैसले लिए, जिसके चलते वे हमेशा याद रखे जाएंगे.
लेडी टाटा मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना की
मेहरबाई को ल्यूकेमिया बीमारी हो गई थी. 1931 में इलाज के लिए अमेरिका जाते हुए उन्होंने अपने पति से कहा था, मैं तो खुशकिस्मत हूं कि अमेरिका जा रही हूं लेकिन देश के लाखों लोगों का इलाज कैसे होगा, जिनके पास संसाधन नहीं है. मेहरबाई के निधन के बाद दोराबजी को ये बातें याद रही और यही टाटा मेमोरियल सेंटर का आधार बनी. लेडी टाटा मेमोरियल ट्रस्ट का उद्देश्य रक्त संबंधी रोगों के अनुसंधान और अध्ययन में सहायता करना था. दोराबजी ने अपनी सारी संपत्ति अपने नाम से स्थापित ट्रस्ट को सार्वजनिक कार्यों के लिए दे दी. इस राशि को कैंसर के इलाज के लिए स्थापित टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज और टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान आदि पर खर्च किया जा चुका है. दोराबजी टाटा का 73 साल की अवस्था में 3 जून, 1932 को जर्मनी के बैड किसिंगन में निधन हो गया. वह इंग्लैंड के वोकिंग के ब्रुकवुड कब्रिस्तान में अपनी पत्नी मेहरबाई के साथ दफन हैं.