Happy Birthday Arundhati Roy: 16 साल में छोड़ दिया था घर, खाली बोतलें बेचकर जुटाए पढ़ाई के पैसे

अरुंधति जब बेहद छोटी थी तभी उनके माता-पिता अलग हो गए थे, वे शुरू से ही अपनी मां के साथ रहीं. अपने पिता के बारे में वे कहती हैं, "जब मैं दो साल की थी, तब मेरे माता-पिता अलग हो गए, और मैंने 24 या 25 साल की उम्र तक अपने पिता को कभी नहीं देखा. वह एक शराबी थे. मैं असल में उन्हें नहीं जानती थी.”

Arundhati Roy
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 24 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 1:17 PM IST
  • बोर्डिंग स्कूल में बिताया बचपन
  • लिखने के साथ फिल्मों में की एक्टिंग
  • खाली बोतल बेचकर किया जीवनयापन

"दुनिया के जिस हिस्से में हम रहते हैं वहां सामान्य हालत बने रहना बिल्कुल वैसा ही है जैसे एक उबला हुआ अंडा. जिसके ऊपर का कठोर हिस्सा उसके पीले हिस्से में होने वाली हलचल को दुनिया से छुपाकर रखता है."

ये शब्द हैं जानी मानी लेखिका और समाजसेविका अरुंधति रॉय के.....भारत में जब भी सशक्त महिलाओं की बात होती थी तब अरुंधति रॉय का नाम हमेशा लिया जाता है. 1961 में बंगाल के पूर्वोत्तर क्षेत्र में जन्मी अरुंधति की मां ईसाई थी और पिता हिंदू. उन्होंने अपना बचपन केरल के अयमानम में बिताया. 

अरुंधति जब बेहद छोटी थी तभी उनके माता-पिता अलग हो गए थे, वे शुरू से ही अपनी मां के साथ रहीं. अपने पिता के बारे में वे कहती हैं, "जब मैं दो साल की थी, तब मेरे माता-पिता अलग हो गए, और मैंने 24 या 25 साल की उम्र तक अपने पिता को कभी नहीं देखा. वह एक शराबी थे. मैं असल में उन्हें नहीं जानती थी.” 

बोर्डिंग स्कूल में बिताया बचपन 

उन्होंने अपना बचपन बोर्डिंग स्कूल में बिताया, जिसके बाद दिल्ली में स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर से डिग्री हासिल की. ग्रेजुएशन के बाद से ही अरुंधति अपनी लेखनी को मजबूत करने में लग गयी थी. रॉय ने अपने लेखन कौशल को निखारने के साथ एरोबिक्स पढ़ाना शुरू किया. 

खाली बोतल बेचकर किया जीवनयापन 

वह अपने एक इंटरव्यू में बताती हैं कि जब वह दिल्ली गयीं तो उन्होंने एक बोहेमियन जीवन शैली शुरू की, एक टिन की छत के साथ एक छोटी सी झोपड़ी में रहकर और बीयर की खाली बोतलें बेचकर अपना जीवन यापन किया. वे कहती हैं ,"जब मैं 16 साल की थी मैंने घर की सुरक्षा, अच्छे कपड़े और जॉनसन के बेबी लोशन की जगह अपनी आजादी को चुना.”

लिखने के साथ फिल्मों में की एक्टिंग 

अरुंधति राय की लेखनी की अगर बात करें, तो उन्होंने कई फिल्म स्क्रिप्ट लिखी, जिन्हें उनकी जटिल संरचना और सामाजिक टिप्पणियों के लिए जाना जाता है. इसके साथ उन्होंने इन व्हिच एनी गिव्स इट दोज़ वन्स फिल्म में लिखा भी यही और एक्टिंग भी की है. इसके साथ उन्होंने इलेक्ट्रिक मून के लिए स्क्रिप्टिंग भी की है. आपको बता दें, 2004 में पेंगुइन ने एक किताब के रूप में इन व्हिच एनी गिव्स इट दोज़ वन्स को प्रकाशित किया.

दरअसल, साल 1984 में अरुंधति की मुलाकात प्रदीप कृष्णन से हुई. जिन्होंने उन्हें अपनी फिल्म 'मैसी साहब' में एक जनजातीय लड़की का रोल दिया. उस समय इस फिल्म को कई अवाॅर्ड मिले थे. फिल्म के बाद उन्होंने प्रदीप कृष्णन से ही विवाह कर लिया. 

पहले उपन्यास ने जीता बुकर प्राइज 

शुरुआत से ही अरुंधति रॉय अपने विचारों को खुलकर रखती रही हैं. यहां तक ​​कि जब वह एक लो-प्रोफाइल लेखिका थीं, तब भी रॉय ने अपने राजनीतिक विचारों को जोर से कहना शुरू कर दिया था. उन्होंने फूलन देवी के लिए मीडिया सपोर्ट जुटाने में मदद की थी. बैंडिट क्वीन को लेकर कई विवाद चले, जिसके बाद रॉय ने अपना पहला उपन्यास, द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स लिखा. उनके इस उपन्यास ने 1997 में प्रकाशन के बाद, प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार जीता. इसे जीतने वाली रॉय पहली भारतीय महिला बन गयी.

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