उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जो ना सिर्फ समाज की सोच को बदल रही है बल्कि बेटियों को सशक्त बनाने की मिसाल भी बन रही है. दरअसल यहां एक पिता अपनी दो बेटियों को कुश्ती की ट्रेनिंग दे रहे हैं. हैरत की बात है कि यह ट्रेनिंग किसी मैदान में नहीं बल्कि घर में ही दी जा रही है.
घर का आंगन बना अखाड़ा
बेटियों की उम्र महज 8 से 12 साल है, लेकिन उनके हौसले और दमखम को देखकर आप दंग रह जाएंगे. कभी धोबी पछाड़ तो कभी दोहरी पाठ, देसी अखाड़ा, देसी दांव और देसी छोरियों का दम. घर के आंगन में अखाड़ा मिट्टी की खुशबू, हौसले और जज्बे की महक साथ में है.
पिता का सपना और बेटियों का जज्बा
दुनिया जीतने का भरोसा और एक पिता का अधूरा सपना सुबह की पहली किरण जब सहारनपुर की गलियों से टकराती है, तब एक घर के आंगन में गूंजती है. कुश्ती की थाप और उस थाप में छुपा है एक पिता का सपना और दो बेटियों का जुनून.
बेटियों के पिता कहते हैं कि मैं इनको सीखा रहा हूं. 3 साल हो गए इनको सीखाते हुए. मैं सोचता हूं कि ये देश के नाम गोल्ड जीतकर लाएं. भारत का नाम रोशन करें, हमारा भी नाम रोशन और साथ में हमारे गांव का भी.
उम्र छोटी पर हौसले बुलंद
पांचवी में पढ़ने वाली लड़की की उम्र 8 साल है. वह कहती है कि वह 3 साल से कुश्ती कर रही है और केवल ओलंपिक में मेडल लाने का सपना देखती है. इन बेटियों के लिए गुड़ियों का खेल अब बीते जमाने की बात है. अब ये कुश्ती के दांव पेंच सीखती हैं.
पिता के अरमानों को नए पंख
जब ये बेटियां दांव चलती है तो लगता है कि ये सिर्फ कुश्ती नहीं लड़ रही. एक पिता के अधूरे सपनों को नए पंख दे रही हैं. दोनों बेटियों की ये कहानी ना सिर्फ एक पिता के अधूरे सपने की दास्तां है बल्कि उनके संघर्ष और समर्पण की.