पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC)पर चीन के हमेशा से ही आक्रामक रुख दिखाता रहता है. भारत ने मित्र देशों की सेनाओं के साथ युद्धाभ्यास करने के लिए उत्तराखंड के औली में हाई एल्टीट्यूड फॉरेन नोड (FTN) बनाया है. इस जगह पर मित्र देशों के साथ युद्धाभ्यास किया जाएगा. इस नोड पर पहली बार भारतीय सेना और अमेरिकी आर्मी के जवान 15 नवंबर से 2 दिसंबर तक सैन्य अभ्यास करेंगे.
एलएसी से सिर्फ 100 किमी की दूरी पर स्थित, फॉरेन ट्रेनिंग नोड 350 विदेशी सैनिकों का आवास होगा और इसे सभी सुविधाओं के साथ विकसित किया गया है. पहली बार, भारतीय सेना और उसके अमेरिकी सेना के समकक्ष 15 नवंबर से 2 दिसंबर तक औली में 'युद्ध अभ्यास' अभ्यास करेंगे, जो 9500 फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित है. अधिकारियों के मुताबिक, फॉरेन ट्रेनिंग नोड सेंट्रल आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल योगेंद्र डिमर का आइडिया है.
क्या होती है व्यवस्था?
फॉरेन ट्रेनिंग नोड में युद्धाभ्यास के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर मित्र-देशों की सेनाओं की टुकड़ियों के लिए रहने की पूरी व्यवस्था होती है. रानीखेत के चौबटिया में ट्रेनिंग के लिए स्थानीय गांवों को ट्रेनिंग के लिए खाली कराया गया था. यहां तक कि गांव वालों के घरों में ही काउंटर-इनसर्जेंसी काउंटर टेररिज्म (CI-CT) ऑपरेशन ड्रिल के लिए इस्तेमाल करना पड़ता था लेकिन ट्रेनिंग नोड में ये सब चीजें अलग से बनी होती है जिससे ट्रेनिंग में भी कोई खास दिक्कत नहीं आती है.
कहां-कहां है सेंटर
औली में भारतीय सेना का पांचवा फॉरेन ट्रेनिंग नोड है. इसके अलावा पहले से हिमाचल के बकोल्ह, राजस्थान के महाजन फील्ड फायरिंग रेंज, मेघालय के उमरोई (शिलांग के करीब) और मिजोरम के वरांगटे में इसी तरह के ट्रेनिंग सेंटर है.
क्या होती है स्ट्रेटजी?
इस युद्धाभ्यास के जरिए भारत अपनी हाई ऑल्टिट्यूड मिलिट्री वॉरफेयर की नीति अमेरिका से शेयर करेगा. वहीं अमेरिकी सेना भी अलास्का जैसे बेहद ही सर्द इलाकों में तैनात रहती हैं जहां 12 महीने बर्फ रहती है. ऐसे में अमेरिकी सेना भी अपने हाई ऑल्टिट्यूड पर रहने के गुर भारत को सिखाएगी.
भारतीय और अमेरिकी सेनाएं युद्ध के संयुक्त सैन्य अभ्यास के अपने 15वें संस्करण का आयोजन करेंगी, जिसमें भारतीय सेना उन रणनीतियों और युक्तियों को प्रदर्शित करेगी जिनका उपयोग वे उच्च-ऊंचाई या पर्वतीय युद्ध में करते हैं. अमेरिकी सेना अपने तकनीकी कौशल का प्रदर्शन करेगी जिसे पहाड़ी इलाकों में तैनात और इस्तेमाल किया जा सकता है. 2004 में शुरू हुआ युद्ध अभ्यास दोनों देशों में बारी-बारी से आयोजित किया जाता है. भारत में, पिछला संस्करण राजस्थान के बीकानेर में महाजन फील्ड रेंज में आयोजित किया गया था.
क्यों है जरूरी?
यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि दोनों सेनाओं के विशेष बलों ने इस साल अगस्त में हिमाचल प्रदेश के बकलोह में 'वज्र प्रहार' अभ्यास किया था. ऊंचाई वाले इलाकों में युद्ध के दौरान भारतीय सेना जितनी महारत हासिल रखती है, उतनी किसी देश की सेना के पास नहीं है. ढाई साल पहले जब चीन ने लद्दाख के पूर्वी इलाके में घुसपैठ करने का प्रयास किया था, तब भारतीय सेना के जवानों ने उत्तराखंड की तरफ से कैलाश रेंज की चोटियों पर कब्जा करके, चीनी सैनिकों को झुकने के लिए मजबूर कर दिया था. भारतीय सेना के इस कदम से चीनी सैन्य अधिकारी बातचीत के लिए झुके इसलिए यह फॉरेन ट्रेनिंग नोड बेहद जरूरी है.
एलएसी का बाड़ोहती इलाका भारत और चीन के बीच लंबे समय से विवादित रहा है. पिछले दो साल के दौरान जब पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों की सेनाओं के बीच तनातनी चल रही थी तब इस इलाके में चीन के कब्जे की खबरें लगातार आ रही थीं. यही वजह है कि अक्टूबर के महीने में भारत और अमेरिका के बीच होने वाली मिलिट्री एक्सरसाइज बेहद अहम हो जाती है.