भारतीय सेना में सैनिकों को किस तरह से रेजिमेंट मिलती है? क्या जाट केवल जाट रेजिमेंट में जाएंगे और राजपूत केवल राजपुताना में? क्या सबके लिए ये नियम एक जैसा होता है

हर रेजिमेंट का अपना इतिहास, स्लोगन और सांस्कृतिक पहचान होती है. ये रेजिमेंट्स सैनिकों में एकजुटता और लड़ने का जज्बा पैदा करती हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या ये रेजिमेंट्स सिर्फ किसी खास समुदाय या क्षेत्र के लिए बनी हैं? जवाब है- हां भी और नहीं भी!

Indian Army regiment process (Photo-GettyImages)
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 29 मई 2025,
  • अपडेटेड 12:31 PM IST

क्या भारतीय सेना में गुज्जर समुदाय के लिए अलग रेजिमेंट बनेगी? यह सवाल हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट में उठा, लेकिन कोर्ट ने इसे "बिल्कुल विभाजनकारी" करार देते हुए खारिज कर दिया! 28 मई 2025 को रोहन बसोया नामक याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका (PIL) दायर कर केंद्र सरकार और रक्षा मंत्रालय से गुज्जर रेजिमेंट बनाने की मांग की थी. लेकिन कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए पूछा, "कौन सा कानून आपको अलग रेजिमेंट बनाने का अधिकार देता है?" 

दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेदेला शामिल थे, ने रोहन बसोया की याचिका को खारिज करते हुए इसे "विभाजनकारी" और "कानूनी आधारहीन" बताया. 

याचिका में कहा गया था कि सिख, जाट, राजपूत और गोरखा जैसे समुदायों की तरह गुज्जरों को भी अपनी रेजिमेंट मिलनी चाहिए. याचिकाकर्ता का तर्क था कि गुज्जर रेजिमेंट न सिर्फ समुदाय को प्रतिनिधित्व देगी, बल्कि भर्ती बढ़ाएगी और जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और पंजाब जैसे सीमावर्ती इलाकों में राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करेगी.

याचिका में संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 16 (नौकरी में समान अवसर) का हवाला दिया गया. लेकिन कोर्ट ने इसे "समुदाय आधारित भेदभाव" को बढ़ावा देने वाला माना.

रेजिमेंट्स के चार प्रकार
हर रेजिमेंट का अपना इतिहास, स्लोगन और सांस्कृतिक पहचान होती है. ये रेजिमेंट्स सैनिकों में एकजुटता और लड़ने का जज्बा पैदा करती हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या ये रेजिमेंट्स सिर्फ किसी खास समुदाय या क्षेत्र के लिए बनी हैं? जवाब है- हां भी और नहीं भी! भारतीय सेना में रेजिमेंट्स को उनकी संरचना के आधार पर चार श्रेणियों में बांटा गया है: सिंगल क्लास, फिक्स्ड क्लास, मिक्स्ड फिक्स्ड क्लास, और ऑल इंडिया ऑल क्लास. 

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1. सिंगल क्लास रेजिमेंट्स
ये रेजिमेंट्स पूरी तरह एक समुदाय या क्षेत्र से बनती हैं. उदाहरण:

  • सिख रेजिमेंट: सिर्फ सिख समुदाय, स्लोगन: "निश्चय कर अपनी जीत करूं".
  • डोगरा रेजिमेंट: जम्मू के डोगरा समुदाय, स्लोगन: "ज्वाला माता की जय".
  • गढ़वाल राइफल्स: उत्तराखंड के गढ़वाली, स्लोगन: "युद्धं प्रविशन्ति वीरा:".
  • सिख लाइट इन्फैंट्री: सिख समुदाय, खासकर मझबी और रामदासिया सिख.
  • मद्रास रेजिमेंट: दक्षिण भारत (तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक) के जवान.
  • असम रेजिमेंट: पूर्वोत्तर की जनजातियां.

इन रेजिमेंट्स में जवान सिर्फ उसी समुदाय या क्षेत्र से भर्ती किए जाते हैं, ताकि सांस्कृतिक एकता बनी रहे.

2. फिक्स्ड क्लास रेजिमेंट्स
इनमें दो या अधिक समुदायों के जवान होते हैं, लेकिन उनकी सब-यूनिट्स समुदाय-विशिष्ट होती हैं. उदाहरण:

  • राजपूताना राइफल्स: जाट और राजपूत सब-यूनिट्स.
  • कुमाऊं रेजिमेंट: कुछ यूनिट्स में अहीर, कुछ में कुमाऊंनी.
  • ग्रेनेडियर्स: जाट, डोगरा, राजपूत और खेम खानी मुस्लिम सब-यूनिट्स.

इन रेजिमेंट्स में हर सब-यूनिट अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखती है, लेकिन रेजिमेंट स्तर पर एकजुटता बनी रहती है.

3. मिक्स्ड फिक्स्ड क्लास रेजिमेंट्स
इनमें कई समुदायों के जवान होते हैं, लेकिन सब-यूनिट्स में मिश्रण होता है. उदाहरण:

  • पंजाब रेजिमेंट: सिख, पंजाबी और डोगरा जवान, मिश्रित सब-यूनिट्स.
  • जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फैंट्री: मुस्लिम, सिख और डोगरा, मिश्रित सब-यूनिट्स.

इन रेजिमेंट्स में सैनिक एक साथ ट्रेनिंग और ऑपरेशंस में हिस्सा लेते हैं, जिससे क्षेत्रीय एकता बढ़ती है.

4. ऑल इंडिया ऑल क्लास रेजिमेंट्स
ये रेजिमेंट्स पूरे भारत से जवानों को शामिल करती हैं, बिना किसी समुदाय या क्षेत्र की बाध्यता. उदाहरण:

  • महार रेजिमेंट: स्लोगन: "हिंदुस्तान की जय".
  • पैराशूट रेजिमेंट: स्लोगन: "शत्रुजीत".
  • आर्मर्ड कॉर्प्स, आर्टिलरी, सिग्नल्स, इंजीनियर्स, और ऑर्डनेंस: ये सभी ऑल इंडिया ऑल क्लास हैं.

इनमें मेरिट और शारीरिक योग्यता ही भर्ती का आधार होती है.

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जवान और ऑफिसर्स की रेजिमेंट्स में भर्ती प्रक्रिया
भारतीय सेना में भर्ती दो स्तरों पर होती है: जवान और ऑफिसर्स. दोनों के लिए रेजिमेंट आवंटन के नियम अलग हैं.

जवानों की भर्ती

पात्रता: 17.5 से 23 साल, न्यूनतम 10वीं पास (कुछ ट्रेड्स के लिए 12वीं).

प्रक्रिया:

  • रैली भर्ती: क्षेत्र-विशिष्ट रैलियां, जैसे हरियाणा में जाट रेजिमेंट, उत्तराखंड में कुमाऊं या गढ़वाल राइफल्स.
  • शारीरिक परीक्षा: 1.6 किमी दौड़ (5 मिनट 45 सेकंड), पुश-अप्स, सिट-अप्स, और ऊंचाई-वजन-छाती माप.
  • लिखित परीक्षा: सामान्य प्रवेश परीक्षा (सीईई) में सामान्य ज्ञान, गणित और विज्ञान.
  • मेडिकल टेस्ट: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य जांच.

रेजिमेंट आवंटन:

  • सिंगल क्लास: डोमिसाइल (निवास प्रमाण) जरूरी. उदाहरण: सिख रेजिमेंट में पंजाब के सिख.
  • फिक्स्ड/मिक्स्ड क्लास: समुदाय-विशिष्ट सब-यूनिट्स में भर्ती, जैसे राजपूताना राइफल्स में जाट या राजपूत.
  • ऑल इंडिया: मेरिट और रिक्तियों के आधार पर.
  • ट्रेड्समैन: रसोइया, नाई जैसे ट्रेड्स में डोमिसाइल के आधार पर भर्ती, लेकिन रेजिमेंट्स में समुदाय की बाध्यता नहीं.
  • आरएमपी इंडेक्स: रिक्रूटेबल मेल पॉपुलेशन (आरएमपी) इंडेक्स के आधार पर हर क्षेत्र को भर्ती कोटा मिलता है, जिसमें जनसंख्या, शिक्षा और क्षेत्रीय जरूरतें शामिल होती हैं.

ऑफिसर्स की भर्ती

पात्रता: 19 से 25 साल, ग्रेजुएशन डिग्री.

प्रक्रिया:

  • परीक्षा: यूपीएससी के जरिए एनडीए, सीडीएस या टीईएस.
  • एसएसबी इंटरव्यू: 5 दिन की कठिन प्रक्रिया.
  • मेडिकल टेस्ट: हेल्थ जांच.
  • रेजिमेंट आवंटन: मेरिट, पसंद और रिक्तियों के आधार पर. समुदाय या क्षेत्र का कोई बंधन नहीं. उदाहरण: एक बंगाली ऑफिसर सिख रेजिमेंट में नियुक्त हो सकता है.
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रेजिमेंट्स कैसे बनती हैं?
रेजिमेंट्स का गठन औपनिवेशिक काल में शुरू हुआ, जब ब्रिटिश सेना ने भारतीय समुदायों की वीरता और सैन्य परंपराओं को देखते हुए रेजिमेंट्स बनाईं. उदाहरण के लिए, सिख रेजिमेंट की स्थापना 1846 में हुई थी, जब ब्रिटिशों ने सिखों की युद्धकुशलता को देखा. आजादी के बाद, भारत सरकार ने इस प्रणाली को बनाए रखा, लेकिन नई समुदाय-आधारित रेजिमेंट्स बनाने से परहेज किया. रेजिमेंट्स का गठन रक्षा मंत्रालय और सेना मुख्यालय द्वारा किया जाता है. 

क्या जाट और राजपूत सिर्फ अपनी रेजिमेंट्स में जाते हैं?
नहीं, यह जरूरी नहीं. प्योर रेजिमेंट्स में जवानों की भर्ती समुदाय-आधारित होती है, लेकिन मिक्स्ड रेजिमेंट्स में कोई भी शामिल हो सकता है. उदाहरण के लिए, एक जाट सैनिक पैराशूट रेजिमेंट में जा सकता है, और एक राजपूत जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फैंट्री में. ऑफिसर्स के लिए तो कोई समुदाय-आधारित बंधन नहीं है. यह प्रणाली सेना में समावेशिता को बढ़ावा देती है.

 

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