क्या भारतीय सेना में गुज्जर समुदाय के लिए अलग रेजिमेंट बनेगी? यह सवाल हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट में उठा, लेकिन कोर्ट ने इसे "बिल्कुल विभाजनकारी" करार देते हुए खारिज कर दिया! 28 मई 2025 को रोहन बसोया नामक याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका (PIL) दायर कर केंद्र सरकार और रक्षा मंत्रालय से गुज्जर रेजिमेंट बनाने की मांग की थी. लेकिन कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए पूछा, "कौन सा कानून आपको अलग रेजिमेंट बनाने का अधिकार देता है?"
दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेदेला शामिल थे, ने रोहन बसोया की याचिका को खारिज करते हुए इसे "विभाजनकारी" और "कानूनी आधारहीन" बताया.
याचिका में कहा गया था कि सिख, जाट, राजपूत और गोरखा जैसे समुदायों की तरह गुज्जरों को भी अपनी रेजिमेंट मिलनी चाहिए. याचिकाकर्ता का तर्क था कि गुज्जर रेजिमेंट न सिर्फ समुदाय को प्रतिनिधित्व देगी, बल्कि भर्ती बढ़ाएगी और जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और पंजाब जैसे सीमावर्ती इलाकों में राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करेगी.
याचिका में संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 16 (नौकरी में समान अवसर) का हवाला दिया गया. लेकिन कोर्ट ने इसे "समुदाय आधारित भेदभाव" को बढ़ावा देने वाला माना.
रेजिमेंट्स के चार प्रकार
हर रेजिमेंट का अपना इतिहास, स्लोगन और सांस्कृतिक पहचान होती है. ये रेजिमेंट्स सैनिकों में एकजुटता और लड़ने का जज्बा पैदा करती हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या ये रेजिमेंट्स सिर्फ किसी खास समुदाय या क्षेत्र के लिए बनी हैं? जवाब है- हां भी और नहीं भी! भारतीय सेना में रेजिमेंट्स को उनकी संरचना के आधार पर चार श्रेणियों में बांटा गया है: सिंगल क्लास, फिक्स्ड क्लास, मिक्स्ड फिक्स्ड क्लास, और ऑल इंडिया ऑल क्लास.
1. सिंगल क्लास रेजिमेंट्स
ये रेजिमेंट्स पूरी तरह एक समुदाय या क्षेत्र से बनती हैं. उदाहरण:
इन रेजिमेंट्स में जवान सिर्फ उसी समुदाय या क्षेत्र से भर्ती किए जाते हैं, ताकि सांस्कृतिक एकता बनी रहे.
2. फिक्स्ड क्लास रेजिमेंट्स
इनमें दो या अधिक समुदायों के जवान होते हैं, लेकिन उनकी सब-यूनिट्स समुदाय-विशिष्ट होती हैं. उदाहरण:
इन रेजिमेंट्स में हर सब-यूनिट अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखती है, लेकिन रेजिमेंट स्तर पर एकजुटता बनी रहती है.
3. मिक्स्ड फिक्स्ड क्लास रेजिमेंट्स
इनमें कई समुदायों के जवान होते हैं, लेकिन सब-यूनिट्स में मिश्रण होता है. उदाहरण:
इन रेजिमेंट्स में सैनिक एक साथ ट्रेनिंग और ऑपरेशंस में हिस्सा लेते हैं, जिससे क्षेत्रीय एकता बढ़ती है.
4. ऑल इंडिया ऑल क्लास रेजिमेंट्स
ये रेजिमेंट्स पूरे भारत से जवानों को शामिल करती हैं, बिना किसी समुदाय या क्षेत्र की बाध्यता. उदाहरण:
इनमें मेरिट और शारीरिक योग्यता ही भर्ती का आधार होती है.
जवान और ऑफिसर्स की रेजिमेंट्स में भर्ती प्रक्रिया
भारतीय सेना में भर्ती दो स्तरों पर होती है: जवान और ऑफिसर्स. दोनों के लिए रेजिमेंट आवंटन के नियम अलग हैं.
जवानों की भर्ती
पात्रता: 17.5 से 23 साल, न्यूनतम 10वीं पास (कुछ ट्रेड्स के लिए 12वीं).
प्रक्रिया:
रेजिमेंट आवंटन:
ऑफिसर्स की भर्ती
पात्रता: 19 से 25 साल, ग्रेजुएशन डिग्री.
प्रक्रिया:
रेजिमेंट्स कैसे बनती हैं?
रेजिमेंट्स का गठन औपनिवेशिक काल में शुरू हुआ, जब ब्रिटिश सेना ने भारतीय समुदायों की वीरता और सैन्य परंपराओं को देखते हुए रेजिमेंट्स बनाईं. उदाहरण के लिए, सिख रेजिमेंट की स्थापना 1846 में हुई थी, जब ब्रिटिशों ने सिखों की युद्धकुशलता को देखा. आजादी के बाद, भारत सरकार ने इस प्रणाली को बनाए रखा, लेकिन नई समुदाय-आधारित रेजिमेंट्स बनाने से परहेज किया. रेजिमेंट्स का गठन रक्षा मंत्रालय और सेना मुख्यालय द्वारा किया जाता है.
क्या जाट और राजपूत सिर्फ अपनी रेजिमेंट्स में जाते हैं?
नहीं, यह जरूरी नहीं. प्योर रेजिमेंट्स में जवानों की भर्ती समुदाय-आधारित होती है, लेकिन मिक्स्ड रेजिमेंट्स में कोई भी शामिल हो सकता है. उदाहरण के लिए, एक जाट सैनिक पैराशूट रेजिमेंट में जा सकता है, और एक राजपूत जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फैंट्री में. ऑफिसर्स के लिए तो कोई समुदाय-आधारित बंधन नहीं है. यह प्रणाली सेना में समावेशिता को बढ़ावा देती है.