देश की न्याय व्यवस्था में एक ऐसा मोड़ आ गया है जिसने सुप्रीम कोर्ट से लेकर राष्ट्रपति भवन तक को सक्रिय कर दिया है. दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर से भारी मात्रा में कैश बरामद होने के बावजूद उन्होंने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया है. और यही इनकार अब उन्हें ले जा सकता है महाभियोग की प्रक्रिया तक.
14 मार्च को दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में आग लगने की घटना हुई. इस हादसे की जांच के दौरान जब फायर ब्रिगेड और अन्य टीमें घर में पहुंचीं तो वहां बड़ी मात्रा में नकदी मिलने का खुलासा हुआ. मामला गंभीर था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक इन-हाउस जांच समिति ने इसकी जांच की.
समिति ने पुष्टि की कि जज के घर से नकदी बरामद हुई है. इसके बाद रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजय खन्ना को सौंपी गई. उन्होंने जस्टिस वर्मा को दो विकल्प दिए:
लेकिन जस्टिस वर्मा ने दोनों विकल्पों में से पहला ठुकरा दिया. उन्होंने कहा कि जहां से नकदी मिली, वह जगह सभी के लिए खुली थी. उन्होंने यह भी कहा कि यह सोचना कि यह कैश उन्होंने रखा था, “पूरी तरह से बेबुनियाद” है.
अब क्या होगा जब कोई जज इस्तीफा नहीं देता?
अगर कोई हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का जज स्वेच्छा से पद छोड़ने से इनकार करता है, तो भारत के संविधान के तहत 'महाभियोग' (Impeachment) की प्रक्रिया शुरू होती है.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 217 के तहत किसी जज को पद से हटाने के लिए दो ही आधार होते हैं: सिद्ध दुर्व्यवहार (Proven Misbehaviour) और अयोग्यता (Incapacity).
इस प्रक्रिया में क्या होता है?
जज यशवंत वर्मा का अगला कदम क्या हो सकता है?
जज वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया है. उन्होंने कहा है कि उन्हें फंसाया जा रहा है और बरामद कैश से उनका कोई लेना-देना नहीं है. हालांकि, दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी न्यायिक शक्तियां पहले ही वापस ले ली थीं और उन्हें बिना किसी कार्य के इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया.
अब, उनके खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है, जो भारत के इतिहास में बहुत दुर्लभ मामला होता है.
क्या हुआ था जब पहले भी किसी जज ने इस्तीफा नहीं दिया था?
भारत में अभी तक महाभियोग की प्रक्रिया कुछ ही बार चली है, लेकिन सिर्फ एक बार ही यह प्रक्रिया पूरी हुई वो भी बिना जज को हटाए.
जस्टिस वी. रामास्वामी (1993)- उनके खिलाफ लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन राजनीतिक मतभेदों के कारण दो-तिहाई बहुमत नहीं मिल पाया और वह पद पर बने रहे.
जस्टिस सौमित्र सेन (2011)- कलकत्ता हाई कोर्ट के जज थे. राज्यसभा ने उन्हें हटाने के लिए वोट किया, लेकिन उन्होंने महाभियोग से पहले ही इस्तीफा दे दिया.
इससे साफ है कि महाभियोग से पहले इस्तीफा देना आम है, लेकिन जस्टिस वर्मा ने इससे इनकार कर एक अलग और जटिल स्थिति पैदा कर दी है.
CJI का राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र क्यों?
जब कोई जज जांच समिति की रिपोर्ट के बाद भी इस्तीफा नहीं देता, तब चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को रिपोर्ट भेजनी होती है. यह इस बात का संकेत है कि अब यह मामला संसद तक जाएगा, और उच्च स्तर पर चर्चा होगी. CJI संजीव खन्ना ने ऐसा ही किया. उन्होंने रिपोर्ट और जज वर्मा के जवाब की कॉपी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेज दी है.
इस समय तक जस्टिस वर्मा के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है, क्योंकि सर्वोच्च न्यायिक पदों पर बैठे लोगों को विशेष सुरक्षा प्राप्त होती है. लेकिन अगर महाभियोग के बाद उन्हें दोषी पाया जाता है और पद से हटा दिया जाता है, तो उनके खिलाफ आपराधिक जांच और कार्रवाई का रास्ता खुल सकता है.