Jagdeep S Chhokar: मतदाताओं के सामने लाए उम्मीदवारों का असली चेहरा, नोटा का दिलवाया अधिकार.. 81 की उम्र में हो गया निधन

एडीआर के को-फाउंडर और चुनाव सुधारों के अग्रणी प्रो. जगदीप एस छोकर का 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. पारदर्शी चुनाव, NOTA बटन और उम्मीदवारों की जानकारी उजागर करने जैसे ऐतिहासिक सुधार उनके योगदान से संभव हुए.

Jagdeep S. Chhokar
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 13 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:29 AM IST

चुनाव सुधारों के लिए समर्पित संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के को-फाउंडर और चुनावी पारदर्शिता के प्रबल समर्थक प्रो. जगदीप एस छोकर का शुक्रवार सुबह दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. वे 81 साल के थे. उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार, उनका शरीर लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज को रिसर्च के लिए दान कर दिया गया.

आईआईएम प्रोफेसर से चुनाव सुधारों के योद्धा तक
प्रो. छोकर आईआईएम अहमदाबाद में प्रोफेसर रहे. 1999 में उन्होंने चुनाव सुधारों को लेकर ADR की स्थापना की. उनकी सोच थी कि जैसे कंपनियों की बैलेंस शीट सार्वजनिक होती है, वैसे ही नेताओं का पूरा ब्योरा भी जनता के सामने होना चाहिए.

ADR की नींव और उद्देश्य
प्रो. छोकर और प्रो. त्रिलोचन शास्त्री सहित 11 प्रोफेसरों व छात्रों ने ADR की शुरुआत की. जिसका लक्ष्य था चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी और जवाबदेह बनाना. उनका मानना था कि लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब मतदाता को यह पता हो कि उसका उम्मीदवार कौन है, उस पर आपराधिक मामले हैं या नहीं, उसकी संपत्ति व देनदारियां क्या हैं.

सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची लड़ाई
ADR ने दिल्ली हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर कीं. नतीजा यह हुआ कि अब हर प्रत्याशी को नामांकन पत्र के साथ शपथपत्र (एफिडेविट) देना अनिवार्य है, जिसमें उसका आपराधिक और आर्थिक ब्योरा शामिल होता है. यह फैसला भारतीय चुनावी इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ.

बड़े सुधार जिनके पीछे छोकर रहे
प्रो. छोकर की अगुवाई में बीते दो दशकों में कई ऐतिहासिक बदलाव हुए जिसमें प्रत्याशियों की जानकारी सार्वजनिक करना, दोषी सांसदों और विधायकों की अयोग्यता सामने लाना, राजनीतिक दलों के आयकर रिटर्न सार्वजनिक कराना, पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाना, NOTA बटन की शुरुआत कराना, इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को रद्द कराने की कानूनी लड़ाई लड़ना शामिल रहा.

नोटा: जनता के ‘ना’ का अधिकार
2013 में चुनाव आयोग और सभी दल NOTA (None of the Above) के खिलाफ थे. लेकिन प्रो. छोकर ने इसे मतदाता का अधिकार मानते हुए कोर्ट में लड़ाई लड़ी. इसके बाद ईवीएम में नोटा का बटन शामिल हुआ. वे अक्सर कहते थे कि अब जनता को मजबूरी में किसी को चुनना नहीं पड़ेगा, मना करने का भी विकल्प है.

निरंतर संघर्ष और समर्पण
इंजीनियरिंग और रेलवे की नौकरी के बाद उन्होंने एमबीए और अमेरिका से पीएचडी की. रिटायरमेंट से पहले उन्होंने एलएलबी की पढ़ाई भी की, ताकि कोर्ट में जनहित याचिकाओं को गहराई से समझकर लड़ सकें. उनका मानना था कि अगर मतदाता सूची साफ-सुथरी नहीं होगी तो चुनाव की वैधता पर ही सवाल उठेगा.

‘शांत और निस्वार्थ कर्मयोगी’
राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव के अनुसार चुनाव सुधारों के बड़े काम के पीछे हमेशा प्रो. छोकर थे, लेकिन उन्होंने कभी श्रेय लेने की कोशिश नहीं की. उन्होंने बेहद शांत, संयत और निस्वार्थ भाव से उन्होंने लोकतंत्र की सेवा की.

अंतिम समय तक सक्रिय
2024 के चुनावों में भी जब फॉर्म 17 को लेकर विवाद उठा, तब सबसे पहले ADR और प्रो. छोकर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. यह उनकी लोकतंत्र के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है.

Read more!

RECOMMENDED