Muslim Second Marriage: मजहब से पहले अधिकार, दूसरी शादी के लिए पहली बीवी की इजाज़त जरूरी - केरल हाई कोर्ट

केरल हाई कोर्ट ने एक मुस्लिम शादी को लेकर फैसला दिया कि कानूनी रूप से पहली बीवी की इजाज़त के बगैर दूसरी शादी को रजिस्टर नहीं किया जा सकता.

gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 06 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 8:24 AM IST

केरल हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि कोई भी मुस्लिम पुरुष अपनी पहली पत्नी के रहते हुए, केरल विवाह पंजीकरण (सामान्य) नियम, 2008 के तहत अपनी दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन पहली पत्नी को सूचना दिए बिना नहीं करा सकता. 

जस्टिस पी.वी. कुन्हिकृष्णन ने 30 अक्टूबर को यह फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि पहली पत्नी को सूचना नहीं दी गई है, तो दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं हो सकता. यदि पहली पत्नी इस विवाह पर आपत्ति जताती है, तो रजिस्ट्रार को विवाह रजिस्ट्रेशन का अधिकार नहीं रहेगा. ऐसे मामलों में संबंधित पक्षों को सिविल कोर्ट से विवाह की वैधता का निर्धारण करवाना होगा.

किस मामले में आया फैसला
यह फैसला कन्नूर जिले के 44 वर्षीय व्यक्ति और उसकी कासरगोड निवासी 38 वर्षीय दूसरी पत्नी की याचिका पर आया. रजिस्ट्रार ने उनकी शादी के रजिस्ट्रेशन से इनकार कर दिया था, जिसके खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार पुरुष एक साथ चार बीवीयां रख सकता है.

मामले को लेकर कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि धर्म नहीं, संवैधानिक अधिकार सर्वोपरि होते हैं. हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में भी दूसरी शादी केवल उचित और न्यायसंगत कारणों पर ही की जा सकती है.

कब कर सकते हैं दूसरी शादी
जस्टिस कुन्हिकृष्णन ने कहा कुरान या इस्लामिक कानून किसी पुरुष को बिना पहली पत्नी की जानकारी और सहमति के दूसरी शादी करने की अनुमति नहीं देता. मुस्लिम पत्नी ऐसे मामलों में मौन दर्शक नहीं रह सकती. कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि अधिकांश मुस्लिम महिलाएं अपने पति की दूसरी शादी को स्वीकार नहीं करेंगी. जस्टिस कुन्हिकृष्णन ने कहा कि 99.99% मुस्लिम महिलाएं अपने पति की दूसरी शादी का विरोध करेंगी, जब पहली शादी अब भी वैध हो.

समानता और न्याय पर जोर
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस्लाम में एक पुरुष केवल तभी एक से अधिक शादियां कर सकता है, जब वह सभी पत्नियों का समान रूप से आर्थिक और भावनात्मक रूप से पालन-पोषण कर सके. यदि यह शर्त पूरी नहीं होती, तो दूसरी शादी इस्लामिक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं मानी जाएगी.

हाईकोर्ट ने अंत में याचिका को खारिज कर दिया क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने पहली पत्नी को मामले में पक्षकार नहीं बनाया था, जो एक गंभीर चूक थी. अदालत ने कहा कि यह गलती उनकी दलील को कमजोर बनाती है.

 

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